Kabeer Ke Dohe Kabeer By Avinash Ranjan Gupta
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By Avinash Ranjan Gupta
प्रश्न—अभ्यास
1 - निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
1 - मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन
को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
2 - दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
3 - ईश्वर कण—कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
4 - संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ट्टसोना’ और ट्टजागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग
यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
5 - अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने
क्या उपाय सुझाया है?
6 - ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ’ - इस पंक्ति द्वारा
कवि क्या कहना चाहता है?
7 - कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता
स्पष्ट कीजिए।
1. मीठी वाणी बोलने से हमें अच्छा लगता है और मीठी वाणी सुननेवाले को और
भी अच्छा लगता है। इस संसार में शायद कोई भी ऐसा नहीं होगा जिसे मीठी वाणी न मोहती
हो। और जब हमें किसी कार्य को करने में आनंद की अनुभूति होती है तो हमारा तन और मन
दोनों असीम शीतलता का अनुभव करता है।
2. दीपक के प्रकाश से घना से घना अँधेरा भी नष्ट हो जाता है। ठीक उसी प्रकार
ज्ञान रूपी प्रकाश से हमारे अंदर विद्यमान ईर्ष्या, क्रोध, लालच जैसे अवगुण भी नष्ट हो जाते हैं।
3. ईश्वर कण-कण में व्याप्त हैं फिर भी हम उसे नहीं देख पाते क्योंकि हमारी
आँखों पर लालच, ईर्ष्या, द्वेष, क्लेश, भेद-भाव का मोटा
पर्दा जड़ा हुआ है।
4. संसार में अज्ञानी व्यक्ति सुखी है और ज्ञानी व्यक्ति अज्ञानी व्यक्तियों
के भविष्य की चिंता करके दुखी है। यहाँ सोना ‘अज्ञानता’ का प्रतीक है और जागना ‘ज्ञान’ का प्रतीक है। इन शब्दों का प्रयोग कर कबीर हमें यह बताना चाहते हैं कि लोग
अज्ञानतावश भौतिकता के बंधन में पड़कर अपने मानव-जीवन के लक्ष्य से भटक गए हैं। अर्थात
उन्हें मानव धर्म अपनाकर अपने जीवन को सही आयाम देना चाहिए।
5. कबीर ने अपने स्वभाव को निर्मल बनाने के लिए आलोचकों को अपने पास रखने
की सलाह दी है। आलोचक सदा हमारी खामियों के बारे मे हमें अवगत कराते रहेंगे जिससे हमें
यह ज्ञात होता रहेगा कि हममें क्या-क्या सुधार की आवश्यकता है। और अंत में हमारा स्वभाव
निर्मल बन जाएगा।
6. इस पंक्ति द्वारा कवि यह बताना चाहते हैं कि जो वास्तव में जो पंडित होते
हैं उन्हें ‘प्रेम’ शब्द
का व्यापक अर्थ भली-भाँति पता होता है। वे प्रत्येक प्राणी से प्रेम-पूर्ण व्यवहार
करते हैं। मानव धर्म ही उनके लिए सर्वोपरि होता है।
7. कबीर की उद्धृत सखियों की भाषा सधुक्कड़ी है। इस भाषा में पूर्वी हिंदी, ब्रज, अवधि, पंजाबी तथा राजस्थानी भाषा के शब्दों के मिश्रण के कारण इस भाषा को ‘खिचड़ी भाषा’ भी कहा जाता है। यह भाषा अत्यंत सरल और सुबोध
है। इस सखियों में कहीं-कहीं अनुप्रास अलंकार का प्रयोग भी किया गया है।
2 - निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
1 - बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
2 - कस्तूरी कुंडलि बसै,
मृग ढूँढै बन माँहि।
3 - जब मैं था तब हरि नहीं,
अब हरि हैं मैं नाँहि।
4 - पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा,
पंडित भया न कोइ।
1. प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर हमें यह बता रहे है कि राम का भक्त सर्वदा
राम के शरण में ही रहना चाहता है। वह किसी भी स्थिति में राम वियोगी नहीं होना चाहता।
विरह की स्थिति उसके लिए बहुत कष्टकारक होती है। यह विरह साँप की तरह होता है और यह
हमारे तन में ही बसता है। यह विरह रूपी साँप जब काटता है तो कोई भी मंत्र काम नहीं
आता है। इस विरह रूपी साँप के काटने पर मृत्यु
निश्चित है अगर किसी कारणवश मृत्यु न भी हो तो राम वियोगी पागल ज़रूर हो जाता है।
2. प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कबीर हमें ईश्वर की उपस्थिति के बारे में
बताते हुए यह कह रहे हैं कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त हैं। ईश्वर की खोज में यहाँ-वहाँ
भटकना सर्वथा व्यर्थ है। अपने कथन को पुष्ट करने के लिए कबीर एक ऐसे मृग का उदाहरण
प्रस्तुत कर रहे हैं जिसके नाभि में कस्तूरी
होता है और उस कस्तूरी से निकलने वाले सुगंध की खोज में मृग (हिरण) पूरे जंगल
में चौकड़ी भरती फिरती है। ठीक ऐसी ही स्थिति अज्ञानी मनुष्य की होती है। मनुष्य भी
ईश्वर की खोज में मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघरों और गुरुद्वारों में जाता है परंतु ईश्वर तो हमारे अंदर ही निवास
करते हैं।।
3. प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर हमें अहंकार की उपस्थिति और अनुपस्थिति
से होने वाले अंतर के बारे में बताते हुए यह कह रहे हैं कि मनुष्य के अंदर जब अहंकार
का निवास होता है तब तक ईश्वर से उसका संगम असंभव होता है। परंतु जैसे ही मनुष्य अपने
मन में मानवता रूपी दीपक प्रज्ज्वलित कर लेता है उसके अंदर से अहंकार का गमन हो जाता
है और उसके लिए ईश्वर की प्राप्ति रास्ता साफ़ हो जाता है।
4. प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर ने तथाकथित उन विद्वानों का उल्लेख किया है
जिन्होंने अनेक मोटे-मोटे ग्रंथ पढ़ डाले और मृत्यु को प्राप्त हुए मगर असल में पंडित
नहीं बन पाए। कबीर कहते हैं कि पंडित बनने के लिए मोटे-मोटे ग्रंथ पढ़ने की आवश्यकता
नहीं बल्कि ‘प्रेम’ रूपी
एक अक्षर ही काफी है।
3 - निम्नलिखित भाव
को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है -
(क) जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।
(ख) कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं
सकती।
(ग) पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहिए।
क.
चित्रकूट
में रमि रहे, रहिमन अवध—नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत
यह देस।।
ख.
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।
ग. रहिमन पानी राखिए, बिनु
पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।
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