Atithi Tum Kab Jaoge, Sharad Joshi By Avinash Ranjan Gupta



निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एकदो पंक्तियों में दीजिए-
1- अतिथि कितने दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है?
2- कैलेंडर की तारीखें किस तरह फड़फड़ा रही हैं?
3- पतिपत्नी ने मेहमान का स्वागत कैसे किया?
4- दोपहर के भोजन को कौनसी गरिमा प्रदान की गई?
5- तीसरे दिन सुबह अतिथि ने क्या कहा?
6- सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर क्या हुआ?
1.  अतिथि लेखक के घर पर पिछले चार दिनों से रह रहा है  
2.  कैलेंडर की तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से पंछी की तरह फड़फड़ा रही है।
3.  पति-पत्नी ने भीगी मुस्कान से मेहमान को गले लगाकर उसका स्वागत किया। रात के भोजन में दो प्रकार की सब्जियाँ, रायता और मीठी चीज़ों का भी प्रबंध किया गया।   
4.  दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की गई।   
5.  तीसरे दिन सुबह अतिथि ने लोंड्री में कपड़े देने को कहा क्योंकि वह अपने कपड़े धुलवाना चाहता था।   
6.  सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर डिनर के स्थान पर खिचड़ी बनने लगी। खाने में सादगी आ गई और अगर वह नहीं जाता तो उपवास तक रखना पड़ सकता था।   
 
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1- लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था?
2- पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए-
(क) अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।
(ख) अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोडे़ अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
(ग) लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें।
(घ) मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी।
(ङ) एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते।

1.  लेखक अतिथि को भावपूर्ण विदाई देना चाहता था। वह अतिथि का भरपूर स्वागत कर चुका था। प्राचीनकाल में कहा जाता था,“अतिथि देवो भव” लेखक ने इस कथन की मर्यादा रखी। वह चाहता था कि जब अतिथि विदा हो तब वह और उसकी पत्नी उसे स्टेशन तक छोड़ने जाएँ। वह उसे सम्मानजनक विदाई देना चाहता था।  
2.   
क.           लेखक के घर में जब अतिथि बिना सूचना दिए आ गया तो उसे लगा कि उसका बटुआ हल्का हो जाएगा। उसके हृदय में बेचैनी हो रही थी कि अतिथि का स्वागत किस प्रकार किया जाए। अपनी तरफ़ से लेखक ने अच्छी  खातिरदारी का हर संभव प्रयास किया। बावजूद इसके अतिथि जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। इतने दिनों की मेहमाननवाज़ी में लेखक का बटुआ बहुत हल्का हो चुका था।
ख.          आज के युग में अगर अतिथि बिना तिथि के आ जाए तो वह अपना देवत्व अधिकांश मात्रा में खो देता है और अगर कुछ दिन रहने के बाद भी वह जाने का नाम न ले तो वह अपना देवत्व पूर्णत: खोकर लापरवाह आदमी और बाद में राक्षस का रूप धारण कर लेता है।
ग.  सभी लोग अपने घर की स्वीटनेस को बरकरार रखना चाहते हैं परंतु बिना तिथि के आया हुआ अतिथि इस स्वीटनेस को बिटरनेस में तब्दील कर देता है। ऐसे में अतिथि को चाहिए कि समझदार बनते हुए कम से कम इतना विचार तो ज़रूर करे कि उसके आने से मेज़बान की दिनचर्या  में बदलाव आ गया है और यथासंभव भावपूर्ण विदाई लेकर चला जाए।  
घ. लेखक का मानना है कि यदि अतिथि एक-दो दिन के लिए ठहरे तो उसका आदर-सत्कार होगा परंतु अगर वह इस दिवस सीमा को पार करता है तो मेज़बान की सहनशीलता टूट जाती है।  मेज़बान दिन में कई बार मूक भाषा में अतिथि को गेट-आउटकहता है और आतिथ्य-सत्कार का मानो अंत-सा हो जाता है।
ङ.अतिथि को देवता के समान कहा गया है। यदि देवता मनुष्य के साथ ज़्यादा समय तक रहे तो उसका देवत्व समाप्त हो जाता है क्योंकि देवता थोड़े देर के लिए ही दर्शन देकर चले जाते हैं। मनुष्य और देवता में ईर्ष्या-द्वेष की भावना नहीं होती है परंतु यह तब तक ही संभव है जब तक समय सीमा को परिस्थितियाँ प्रभावित न करें।

लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1- कौनसा आघात अप्रत्याशित था और उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
2- ‘संबंधों का संक्रमण के दौर से गुज़रना’- इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं? विस्तार से लिखिए।
3- जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्याक्या परिवर्तन आए?

3.  मेहमानों का बिना बताए मेज़बान के घर चले आने का आघात अप्रत्याशित था और उनके द्वारा तरह-तरह की फरमाइशें इस आघात को और भी व्याघात पहुँचाता है। बिना तिथि के अतिथि के आने से एक तो लेखक की दिनचर्या में काफी परिवर्तन आया। दूसरा, लेखक और उसकी पत्नी के बीच भी अनबन होने लगी और सबसे महत्त्वपूर्ण तो यह कि अतिथि के आने से लेखक का बटुआ हल्का हो गया।  
4.  संक्रमणका अर्थ है- बदलाव। इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह कहना चाहते है कि अतिथि और उनके बीच का रिश्ता इसी संक्रमण के दौर से गुज़र रहा है जो धीरे- धीरे मधुरता से कड़वाहट में परिवर्तित हो रहा है। सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो गई है और अब यह तिरस्कार का रूप धारण करने वाला है।   
5.  जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया  तो लेखक के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन आए –
i.                 खाने का स्तर डिनर से गिरकर खिचड़ी तक आ पहुँचा।
ii.             लेखक अतिथि को गेट आउट कहने को भी तौयार हो गया।  
iii.         लेखक को अतिथि राक्षस के समान लगने लगा।
iv.          अब अतिथि के प्रति सत्कार की भावना लुप्त-सी हो गई। 
v.              भावनाएँ गालियों का स्वरूप धारण करने लगीं।

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