Patjhad Me Tooti Pattiyaan Zen Ki Den By avinash Ranjan Gupta


PATJHAR ME TOOTI PATTIYAN PAATH KA SHABDARTH click here

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एकदो पंक्तियों में दीजिए-
I 1 - शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
2 - प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं?
3 - पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?
II 4 - लेखक ने जापानियों के दिमाग मेंस्पीडका इंजन लगने की बात क्यों कही है?
5 - जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
6 - जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?
1.            उत्तर- शुद्ध सोना पूरी तरह से शुद्ध होता है और गिन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया हुआ होता है। इस मिलावट से सोना अधिक मजबूत और चमकीला बन जाता है।
2.            उत्तर- प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट उसे कहते हैं जिसमें व्यावहारिकता का मिश्रण होता है।   ये लोग आदर्शवादी तो होते हैं मगर इनमें व्यावहारिकता का भी पुट होता है।
3.            उत्तर- पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श वह है जो आदर्श को व्यावहारिकता के स्तर पर नहीं उतरने देते बल्कि  व्यावहारिकता को आदर्श के स्तर तक ले जाते हैं।
4.            उत्तर- लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात की है क्योंकि जापानी प्रगति और विकास की राह में अमेरिका से आगे निकालने की होड़ में दिन-रात लगे हुए हैं। 
5.            उत्तर- जापानी में चाय पीने की विधि  को चा-नो-यू कहते हैं । 
6.            उत्तर- जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की विशेषता है कि वहाँ पूर्ण शांति होती है,  उस स्थान की सज्जा पारंपरिक होती है। अत्यंत ही गरिमापूर्ण पद्धति से चाय बनाई अथवा दी जाती है और वहाँ तीन आदमियों से ज़्यादा को प्रवेश नहीं मिलता है।

लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
I 1 -  शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
II 2 -  चाजीन ने कौनसी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
3 -  टीसेरेमनीमें कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?
4 -  चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?

1.    उत्तर-  शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से की गई है क्योंकि शुद्ध सोने में जितनी शुद्धता और पवित्रता होती है उतनी ही शुद्धता और पवित्रता आदर्शवादी व्यक्ति में भी होती है जबकि व्यावहारिकता की तुलना  ताँबे से की गई है क्योंकि व्यावहारवादी लोग मौकापरस्त होते हैं। उनके हरेक कार्य में स्वार्थ की बू आती है। 
2.    उत्तर- चाजीन  ने बड़े सलीके से कमर झुकाकर अतिथियों को प्रणाम किया फिर बैठने की जगह दिखाई, अँगीठी सुलगाई बर्तनों को तौलिये से साफ़  किया। ये सारी  क्रियाएँ उसे अत्यंत ही गरिमापूर्ण ढंग  से पूरी कीं।
3.    उत्तर- टी-सेरेमनी में केवल तीन ही  आदमियों को प्रवेश दिया जाता था क्योंकि वहाँ अत्यंत ही शांत वातावरण में चाय पी जाती है। अधिक  आदमियों के होने से शांति भंग होने का खतरा बना रहता है।
4.    उत्तर- चाय पीने के बाद लेखक के दिमाग की रफ़्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ गई। थोड़ी देर में बिलकुल बंद भी हो गई। उन्हें लगा कि मानो वे अनंतकाल में जी रहे हों। उन्हें पूर्ण शांति का आभास होने लगा । उनके दिमाग से भूतकाल और भविष्य काल दोनों उड़ गए थे। वे केवल वर्तमान में थे। 


लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1 - गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।
2 - आपके विचार से कौनसे ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की संगिकता स्पष्ट कीजिए।
3 - अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब -
(1) शुद्ध आदर्श से आपको हानिलाभ हुआ हो।
(2) शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।
4 - ‘शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधीजी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।
5 - ‘गिरगिटकहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पलपल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंशगिन्नी का सोनाके संदर्भ में स्पष्ट कीजिए किआदर्शवादिताऔर ट्टव्यावहारिकताइनमें से जीवन में किसका महत्त्व है?
6 - लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्याक्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
7 - लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।

1.    उत्तर-  यह कथन पूर्णत: सत्य है कि गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। उन्होंने  नमक कानून तोड़ा, दांडी यात्रा की, असहयोग आंदोलन किया, स्वदेशी आंदोलन किया जो इस बात की पुष्टि करता है कि वे आदर्शवादी थे। उनके इसी आदर्शवादिता ने ही तो शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध लोगों को संगठित किया।  गांधीजी ने सत्य और अहिंसा जैसे शाश्वत मूल्य समाज को दिया है।
2.    उत्तर- मेरे विचार से ये मूल्य शाश्वत हैं- सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम, भाईचारा, त्याग, परोपकार, मीठी वाणी, मानवीयता इत्यादि। वर्तमान समाज में इन मूल्यों की प्रासंगिकता बनी हुई है। जहाँ- जहाँ और जब-जब इन मूल्यों में गिरावट आई है वहाँ तब-तब समाज का नैतिक पतन हुआ है। भले ही आज हम तकनीकी क्षेत्र में विकसित हो चुके हों पर अभी भी हम हर रोज़ इन मूल्यों के गिरावट से होने वाले कुपरिणामों को देख सकते हैं।
3.    गृह कार्य  ?
4.    उत्तर- गांधीजी ने सदा सत्य और अहिंसा की दुहाई दी है। अगर पाठ से अलग इस बात की चर्चा की जाए तो उन्होंने   सत्य और अहिंसा की व्याख्या करते हुए यह बात स्पष्ट कर दी कि यदि कोई गाय भागी जा रही है तथा कसाई उसे ढूँढ़ता हुआ आपसे पूछे कि आपने यहाँ से भागती हुई किसी गाय को देखा है, वह किस ओर गई है? इस अवसर पर सत्य बोलकर गाय की जान जोखिम में डालना गलत होगा। इस कथन से  स्पष्ट हो जाता है कि गांधीजी के आदर्श और व्यवहार में हमेशा शुद्ध सोना ही झलकता है।
5.    उत्तर- गिरगिट कहानी में इंस्पेक्टर का व्यवहार अवसर के अनुकूल अपने लाभ के लिए बदलता रहता था। वह हर प्रकार से उस अवसर का पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहता था। यह कोरी  अवसरवादिता आज की व्यावहारिकता का ही पर्याय है। आज ऊपरी तौर पर भले ही व्यवहारवादी सफ़ल होते दिखाई पड़ रहे हों, वे भले ही लाभ हानि की गणना कर स्वयं को ऊपर उठाते जा रहे हों पर इस प्रक्रिया में वे दूसरों को पीछे  धकेलते हैं और खुद आगे बढ़ते हैं। भले ही जिन्हें वो धकेल रहे हों वे कितने ही गुणवान क्यों न हों। दूसरी बात, इस प्रक्रिया में वे जीवन  मूल्यों को पूरी तरह से रौंद देते हैं। यदि समाज का प्रत्येक व्यक्ति आदर्शों की होली जलाकर आग सेंकने लगे तब तो समाज विनाश के गर्त में ही चला जाएगा। किसी भी समाज की उन्नति सही मायने में उस समय ही हो सकती है जब वहाँ शाश्वत मूल्यों का विकास हो रहा हो। जीवन मूल्यों और नैतिकता के विकास को ही सभ्यता का विकास माना जा सकता है। कोरी अवसरवादिता या व्यावहारिकता से समाज का पाटन होता है। अतएव मानव-उत्थान के लिए आदर्शवाद का ही महत्त्व है।
6.    उत्तर- लेखक ने अपने मित्र को मानसिक रोग के निम्नलिखित कारण बताए
- वे हमेशा अमेरिका से आगे निकला चाहते हैं।
- वे तनावग्रस्त स्थिति में काम करते रहते हैं।
- वे किसी भी काम को जल्दी से जल्दी पूरा करना चाहते हैं।
- उनके दिमाग में स्पीड का इंजन लगा हुआ है।
मैं इन कारणों से पूर्णत: सहमत हूँ। अत्यधिक काम का बोझ  और तनाव मनुष्य को मानसिक रूप से बीमार बना ही देता है।  
7.    उत्तर- लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए।  लेखक ने ऐसा कहा है क्योंकि उनके मतानुसार मनुष्य का अधिकांश समय या तो भूतकाल की बातों के बारे में सोचते हुए बीतता है या भविष्य की चिंता में। वह कभी भी वर्तमान का आनंद  नहीं ले पाता। जो बीत चुका है उस पर हमारा कोई अधिकार नहीं होता है और जो आया ही नहीं है उसकी चिंता कर कर हम अपना वर्तमान गवाँ देते हैं जबकि सत्य तो यह है कि अगर हम वर्तमान का निर्वाह सही तरीके से करे तो हमारा भूत और भविष्य दोनों ठीक हो जाएगा।


लिखित
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1 - समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
2 - जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तबप्रैक्टिकल आइडियालिस्टोंके जीवन से आदर्श धीरेधीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझबूझ ही आगे आने लगती है।
3 - हमारे जीवन की रफ़् तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
4 - सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों।

1.    उत्तर-  प्रस्तुत गद्यांश का आशय यह है कि आदर्शवादी लोग ही  समाज को बेहतर तथा स्थायी जीवन तथा  शाश्वत मूल्य देते हैं। वे बताते हैं कि लोगों के लिए जीने की कौन-कौन-सी राहें ठीक हैं जिससे समाज आदर्श रूप में रह सकता है।
2.    उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश का आशय यह है कि व्यावहारिक आदर्शवाद वास्तव में  व्यावहारिकता ही है उसमें आदर्शवाद कहीं नहीं रहता। यदा-कदा  व्यावहारिकता ही सामने उभर आती है और केवल लाभ-हानि और अवसरवादिता का पर्याय गठित करती है।
3.    उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश का आशय यह है कि जीवन की भाग-दौड़, व्यस्तता तथा आगे निकले की होड़ ने लोगों का सुख-चैन छीन लिया है। हर व्यक्ति अपने जीवन में अधिक पाने की होड़ में बेतहाशा भागा जा रहा है। इससे वे तनावग्रस्त होकर मानसिक रोग से पीड़ित हो रहे हैं। 
4.    उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश का आशय अदब और नम्रता का सांगोपांग करना है। चाय देने वाले चाजीन ने सबसे पहले बड़े सलीके से कमर झुकाकर अतिथियों को प्रणाम किया फिर बैठने की जगह दिखाई, अँगीठी सुलगाई बर्तनों को तौलिये से साफ़  किया। ये सारी  क्रियाएँ उसने अत्यंत ही गरिमापूर्ण ढंग  से पूरी कीं। ऐसे वातावरण में आकर ऐसा लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों।


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