Raidas Ke Pad Raidas By Avinash Ranjan Gupta

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प्रश्नअभ्यास
1 -निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन - जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद - सौंदर्य आ गया है, जैसे -  पानी, समानी आदि। इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए  -
उदाहरण : दीपक बाती
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(घ) दूसरे पद में कवि ने गरीब निवाजुकिसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
(ङ) दूसरे पद की जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरैइस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(च) रैदासने अपने स्वामी को किन - किन नामों से पुकारा है?
(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए  -
मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति, तुहीं, गुसईआ

क. पहले पद में भगवान और भक्त की तुलना चन्दन-पानी, बादल और मोर, चाँद और चकोर, दीप और बाती , मोती और धागा सोना और सुहागा से  की गई है।
ख.    तुकांत वाले शब्द
क.           पानी – समानी
ख.          मोरा- चकोरा
ग.              बाती- राती
घ.             धागा – सुहागा
ङ.            दासा – रैदासा

ग.    उदाहरण-
दीपक - बाती
मोती - धागा
स्वामी - दासा
चंद्र - चकोरा
चंदन  – पानी
घ.   दूसरे पद में गरीब निवाजु ईश्वर को कहा गया है। जिस व्यक्ति को ईश्वर की महिमा पर विश्वास होता है वह ईश्वर की कृपा से मोक्ष प्राप्त करता है। नीच से नीच व्यक्ति का भी उद्धार हो जाता है। समाज के ऐसे लोग जिनके स्पर्श से ही उच्च वर्ग लोग अपने आप को अपवित्र मानते हैं, ईश्वर की कृपा से उनका भी उनका भी समाज में सम्मान बढ़ जाता है।
ङ. इस पंक्ति का आशय यह है कि संसार में व्याप्त वर्ण और जाति व्यवस्था के कारण समाज के अनेक लोगों को अछूत होने की पीड़ा को सहन करना पड़ती है। समाज के कुछ आभिजात्य वर्ग के लोग इनके स्पर्श से अपने आपको अपवित्र मानते हैं। परंतु प्रभु के लिए सब समान हैं। प्रभु सदैव कर्म को ही प्रधानता देते हैं। उनके हिसाब से कर्म ही सच्ची पूजा है और वे कर्मठ व्यक्तियों के सारे दुख दूर कर देते हैं।
च.  रैदास ने अपने स्वामी को गरीब निवाजु, लाल, गुसाई, हरि, गोविंद नाम से पुकारते हैं।

2- नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए
(क) जाकी अंगअंग बास समानी
(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा
(ग) जाकी जोति बरै दिन राती
(घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
(ङ) नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै

क. इस पंक्ति का भाव यह है कि हमें अपनी संगति का चुनाव बहुत ही सोच-समझ कर करना चाहिए। संगति का असर हमारे व्यक्तित्व और कृतित्व पर पड़ता है। यहाँ पर रैदास ने अपनी संगति प्रभु से की है जिसे उन्होंने चंदन माना है और खुद को पानी। ऐसे तो पानी में कोई भी सुगंध नहीं होता है पर चंदन के संपर्क में आ जाने के बाद पानी भी सुगंधित हो जाता है।
ख.       कवि इस पंक्ति के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि हमारे जीवन का एक ही लक्ष्य होना चाहिए। और उस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु हमें हमेशा प्रयत्नशील रहना चाहिए। उन्होंने यहाँ पर एक पक्षी चकोर का उदाहरण दिया है जो चाँद का प्रेमी है। वह चाँद को निहारता रहता है। उसी प्रकार रैदास भी अपने प्रभु के दर्शन निरंतर करते रहना चाहते हैं।
ग.    यहाँ कवि स्वयं को बाती और प्रभु को दीपक मानते हैं। जिसकी ज्योति दिन-रात जलती रहती है। कवि कहते हैं कि उनके मन में अपने प्रभु के लिए अगाध प्रेम है जो दीपक कि तरह हमेशा प्रज्ज्वलित होती रहती है।
घ.   कवि यहाँ अपने प्रभु के गुणों का बखान करते हुए कहते हैं कि इस संसार का कोई भी ऐसा काम नहीं जो ईश्वर नहीं कर सकते  वो तो समाज में नीच से नीच लोगों को भी राजाओं जैसा सम्मान प्रदान करने में सक्षम हैं।
ङ. कवि ईश्वर की असीम कृपा का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि समाज में निम्न श्रेणी के लोग जिन्हें समाज में उचित स्थान नहीं मिल पाता है ईश्वर के दरबार में उनका स्वागत किया जाता है। कबीर, सैन  सधना, त्रिलोचन जैसे सामान्य लोगों को ईश्वर की कृपा से अमरत्व का वरदान प्राप्त हुआ।


3- रैदास की इन पंक्तियों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए
गृहकार्य


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