Dharm Ki Aad By Avinash Ranjan Gupta

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मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एकदो पंक्तियों में दीजिए-
1 - आज धर्म के नाम पर क्याक्या हो रहा है?
2 - धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या उघोग होने चाहिए?
3 - लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का कौन सा दिन सबसे बुरा था?
4 - साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है?
5 - धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं?

1.     आज धर्म के नाम पर आतंकवादी दहशत फैलाते हैं, नेता और धूर्त लोग दंगे-फसाद को बढ़ावा देते हैं।   
2.     धर्म के व्यापार को रोकने के लिए हमें दृढ़ता से धार्मिक उन्माद को रोकना पड़ेगा 
3.     स्वाधीनता आंदोलन के क्षेत्र में वह दिन सबसे बुरा था जब मुल्ला, मौलवियों और धर्माचारियों को स्वाधीनता आंदोलन में स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया   
4.     साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह  बात अच्छी तरह घर करके  बैठ गई है कि धर्म के सम्मान की रक्षा के लिए प्राण दे देना उचित है।   
5.     धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं – शुद्ध आचरण और सदाचार ।   



लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1 - चलतेपुरज़े लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं?
2 - चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं?
3 - आनेवाला समय किस प्रकार के धर्म को नहीं टिकने देगा?
4 - कौनसा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा?
5 - पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है?
6 - कौनसे लोग धार्मिक लोगों से अधिक अच्छे हैं?

1.    चलतेपुरज़े लोग मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग करते हैं। वे चाहते हैं  कि इन जाहिलों के बल के आधार पर उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। वे अपनी वाक्पटुता  के बल पर अपनी धर्म की दुकान चलाते हैं।    
2.    चालाक लोग साधारण आदमी के धर्म के प्रति निष्ठा, उनकी अज्ञानता, गरीबी  का लाभ उठाते हैं। धर्म के दुकानदार अपनी धूर्तता से साधारण आदमी को सदा गुमराह कर उनका लाभ उठाते रहते हैं। 
3.    वे लोग जो दूसरों को तीसरे से लड़ाकर धर्मात्मा बनते हैं तथा जो धार्मिक होने का ढिंढोरा पिटते हैं और चोरी-छुपे असामाजिक कार्यों को अंजाम देते हैं, इस प्रकार के धर्म को आनेवाला समय नहीं टिकने देगा। 
4.    आपका मन जिस धर्म को मानना चाहे, उस धर्म को आप मानें, और दूसरों का मन चाहे, उस प्रकार का धर्म वह माने। दो भिन्न धर्मों के मानने वालों के टकरा जाने के लिए कोई भी स्थान न हो। यदि किसी धर्म के मानने वाले कहीं ज़बरदस्ती टाँग अड़ाते हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा। 
5.    पाश्चात्य देशों में, धनी लोगों की अट्टालिकाएँ आकाश से बातें करती हैं जबकि गरीबों की झोंपड़ी उनकी दरिद्रता बखान करती है। यहाँ धनी शोषक वर्ग कहलाता है और गरीब शोषित वर्ग।
6.    वे लामज़हब और नास्तिक आदमी धार्मिक और दीनदार आदमियों से कहीं अधिक अच्छे और ऊँचे हैं, जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुखदुःख का खयाल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थसिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं।

लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1 - धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है?
2 - ‘बुद्धि पर मारके संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?
3 - लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए?
4 - महात्मा गांधी के धर्मसंबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
5 - सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है?

1.    धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए, साहस और दृढ़ता के साथ, उद्योग होना चाहिए। शिक्षा का स्तर और भी अधिक उन्नत होना चाहिए, लोगों के बहकावे में नहीं आना चाहिए और धर्म का वास्तविक अर्थ समझना चाहिए।
2.    बुद्धि पर मारके संबंध में लेखक का विचार है कि समाज के चंद कुटिल लोग अपने स्वार्थ के लिए जनसमुदाय को धर्म के नाम पर भड़काते हैं, उन्हें गुमराह करते हैं। दूसरे संप्रदायों के प्रति जहर घोलते हैं। धर्म- मज़हब के नाम उनमें गलत धारणा भरी जाती है। इससे उनकी सोचने-समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है और वे अनेक रूपों में समाज के लिए खतरनाक बन जाते हैं।       
3.    लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना को अपने मन में जगाना चाहिए। धर्म और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो। वह, किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बने।
4.    महात्मा गांधी धर्म को सर्वत्र स्थान देते हैं। वे एक पग भी धर्म के बिना चलने के लिए तैयार नहीं थे। उनकी बात ले उड़ने के पहले, प्रत्येक आदमी का कर्तव्य यह है कि वह भलीभाँति समझ ले कि महात्माजी केधर्मका स्वरूप ऊँचे और उदार तत्त्वों ही का हुआ करता था। उनका धर्म शुद्ध पवित्र भावनाओं से पूर्ण था जिसमें सबके कल्याण की भावना निहित थी।
5.    सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना आवश्यक है क्योंकि हम ही इसी समाज की एक इकाई है। जब हम दूसरों  के कल्याण के लिए अपने आचरण में परिवर्तन लाएँगे तो दूसरे भी हमारे कल्याण के लिए अपने आचरण में परिवर्तन लाएँगे। ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज से अलग नहीं रह सकता इसलिए हमें समाज को सुकून से जीने लायक बनाने के लिए अपने आचरण में शुद्धता लानी ही होगी।  

लिखित
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1- उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझताबूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
2- यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए लोगों को लड़ानाभिड़ाना।
3- अब तो, आपका पूजापाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
4- तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!

1.    इस कथन का आशय यह है कि साधारण आदमी धर्म के बारे में कुछ नहीं जानता। उसमें सोचने-विचारने की ज़्यादा शक्ति नहीं होती है। वह अपने धर्म-संप्रदाय के प्रति अंधविश्वास रखता है। साधारण आदमी के इसी कमजोरी का फायदा समाज के चंद धर्म  के ठेकेदार उठाते हैं और उन्हें धर्म के नाम पर गुमराह कर देते हैं।
2.    भारत के धार्मिक नेता आम जनता के बुद्धि का शोषण करते हैं। धर्म के नाम पर ऐसे लोग अपनी रोटी सेंकने के लिए लोगों की शक्तियों का दुरुपयोग करते हैं। पहले आम जनता के बीच ईश्वर का नुमाइंदा बनकर अपने प्रति श्रद्धा उत्पन्न करते हैं और धीरे-धीरे खुद ही उस ईश्वर बन बैठते हैं।
3.    इस कथन का आशय यह है कि आने वाली पीढ़ी तकनीकी और धार्मिक स्तर पर तो काफी उन्नत होगी। ऐसे में वे लोग धार्मिक क्रियाओं को पूरी निष्ठा से संपादित करने का दिखावा करते हैं उनके ये दिखावेबाजी ज़्यादा दिन तक नहीं चलेगी। उस समय तो केवल उसे ही सच्चे मायनों में धार्मिक समझा जाएगा जो भले ही धार्मिक क्रियाओं को पूरी निष्ठा से संपादित न करे परंतु उसकी मनुष्यता कसौटी पर खरी उतरे।     
4.    इस कथन का आशय यह है कि धार्मिक व्यक्ति से वो व्यक्ति बेहतर है जो नास्तिक है क्योंकि ये दूसरों की खुशियों की कामना करते हैं। इनके आचरण से दूसरों के हृदय को ठेस नहीं लगती। इनके मतानुसार केवल ईश्वर की भक्ति  ईश्वरत्व नहीं है बल्कि मानव कल्याण का मार्ग धर्म का मार्ग है। मनुष्यता कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है और पशुता स्वार्थ की भावना को बढ़ावा देती है। अब तो यह मनुष्य को ही सोचना है कि वह किसे धर्म बनाए।

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