Dayari Ka Ek Panna Seetaram Seksariya By Avinash Ranjan Gupta

DAYARI KA EK PANNA PAATH KE KUCHH SMARANEEY BINDU BY AVINASH RANJAN GUPTA

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एकदो पंक्तियों में दीजिए-
1 - कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्त्वपूर्ण था?
2 - सुभाष बाबू के जुलूस का भार किस पर था?
3 - विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
4 - लोग अपनेअपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर किस बात का संकेत देना चाहते थे?
5 - पुलिस ने बड़ेबड़े पार्कों तथा मैदानों को क्यों घेर लिया था?
1.  देश का स्वतंत्रता दिवस एक वर्ष पहले इसी दिन मनाया गया था और इस वर्ष भी उसकी पुनरावृत्ति कलकत्ता में थी इसलिए यह महत्त्वपूर्ण दिन था।   
2.  सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था । 
3.  बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने जैसे ही झंडा गाड़ा, पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया तथा लोगों को लठियाँ मार कर वहाँ से हटा दिया।    
4.  लोग अपने मकानों और सामाजिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर संकेत देना चाहते थे कि उनमें जोश और उत्साह है तथा वे अपने को आज़ाद समझकर आज़ादी मना रहे हैं।   
5.  आज़ादी मनाने के लिए पूरे कलकत्ता शहर में जुलूस तथा जनसभाओं व झंडारोहण का आयोजन किया गया था इसलिए पुलिस ने पार्कों और मैदानों को घेर लिया था ताकि जनता वहाँ जमा न हो सके।    
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1 - 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्याक्या तैयारियाँ की गईं?
2 - 'आज जो बात थी वह निराली थी’ - किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।
3 - पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर था?
4 - धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?
5 - डॉ॰ दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देखरेख तो कर ही रहे थे, उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फ़ोटो खींचने की क्या वजह हो सकती थी? स्पष्ट कीजिए।

1.    26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए कलकत्ता शहर में जगह-जगह-झंडे लगाए गए थे। शहर के कई स्थानों  पर जुलूस निकाले गए तथा झंडा फहराया गया। टोलियाँ बनाकर लोगों की भीड़ उस जगह पर  जुटने लगी जहाँ सुभाष बाबू के जुलूस को पहुँचना था।     
2.     आज का दिन निराला था क्योंकि स्वाधीनता दिवस मनाने की यह प्रथम  आवृत्ति थी। पुलिस ने सभा करने को गैर-कानूनी कहा था किन्तु सुभाष बाबू के आह्वान पर पूरे कलकत्ता में अनेक संगठनों के माध्यम से जुलूस व सभाओं की जोशीली तैयारी थी। पूरे शहर में राष्ट्रीय झंडा फहराया जा रहा था। ये सारी गतिविधियाँ प्रशासन को एक खुला चैलेंज था।  
3.    पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाला था कि कोई भी जनसभा करना या जुलूस निकालना कानून के खिलाफ़ होगा और सभाओं में भाग लेने वाले लोगों को दोषी माना जाएगा। कौंसिल ने नोटिस निकाला था कि मोनुमेंट के नीचे चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी।
4.    जब सुभाष बाबू को गिरफ़्तार कर लिया गया तो कुछ स्त्रियाँ जुलूस बनाकर चलीं। कुछ और लोग भी जमा हो गए।  पुलिस उनपर डंडे बरसाने लगी जिससे बहुत-से लोग घायल हो गए और जुलूस टूट गया। 
5.    जुलूस में घायल लोगों की फ़ोटो खींचकर अंग्रेज़ों के जुल्मों का पर्दाफाश किया जा सकता था। दूसरी बात ये फ़ोटो इस बात की साक्षी थीं कि बंगाल में भी स्वतंत्रता की लड़ाई हेतु बहुत काम हो रहा है।
लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1 - सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?
2 - जुलूस के लालबाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?
3 – ‘जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।यहाँ पर कौन से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
4 - बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुतसी स्त्रियाँ जेल गईं, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।

1.    सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की विशेष भूमिका थी। कलकत्ता शहर की अनेक महिला समितियों ने इस स्वतंत्रता समारोह में भाग लिया। भारी पुलिस व्यवस्था की परवाह किए बिना शहर के अलग-अलग भागों से स्त्री दलों ने जुलूस में भाग लिया। मोनुमेंट पर स्त्रियों ने निडर होकर झंडा फहराया। स्त्रियों को भी कई स्थानों पर भारी मात्रा में गिरफ़्तार किया गया, उनपर लठियाँ चलाई गईं । यहाँ तक कि सुभाष बाबू के गिरफ़्तारी के बाद भी स्त्रियाँ लालबाज़ार तक आगे बढ़ती रही।
2.    जुलूस के लालबाज़ार आने पर भीड़ बेकाबू हो गई थी तथा पुलिस लोगों पर डंडे बरसा रही थी। लोगों को पकड़-पकड़ कर लॉकअप में भेजा जा रहा था। इतनी बड़ी संख्या में कभी भी स्त्रियों की गिरफ़्तारी नहीं हुई थी। लोगों का जोश थमने का नाम नहीं ले रहा था। इधर पुलिस गिरफ़्तार करती थी तो उधर से नया दल नारे लगाता हुआ बढ़ा आता था। लोग घायल हो गए थे, कितनों के खून बह रहे थे परंतु जोश-उत्साह में कोई कमी नहीं दिख रही थी।    
3.    यह देश की स्वतंत्रता संग्राम की गाथा का वह भाग है जहाँ हर व्यक्ति आज़ादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर था। अंग्रेज़ों ने अपना कानून बनाकर आंदोलन, जुलूस तथा सभाओं को गैर-कानूनी घोषित किया था किंतु अत्याचारी प्रशासन की इन घोषणाओं का जनमानस पर कोई असर नहीं हुआ। देशवासियों ने सत्ता की ज़बरदस्ती व कानून व्यवस्था को मनाने से इंकार कर दिया था।
4.    सुभाष बाबू के नेतृत्व में कलकत्तावासियों ने स्वतंत्रता दिवस मनाने की ज़ोर-शोर से तैयारी की हुई थी। मोनुमेंट के पास झंडा फहराने और आज़ादी की शपथ लेने के लिए शहर के समस्त भागों से जुलूस निकल पड़े। असंख्य स्त्रियों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। पुलिस लोगों की उमड़ती भीड़ को काबू नहीं कर पा रही थी। आंदोलनकारियों पर लठियाँ बरसाई गईं । लोगों ने अपना खून बहाया, गिरफ्तारियाँ दीं लेकिन उनके जोश में कमी नहीं आई। लोगों का जोश कलकत्ता के इतिहास में इतने प्रचंड रूप में पहले कभी नहीं देखा गया था।  
लिखित
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1 - आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया।
2 - खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।

1.    इस कथन का आशय यह है कि पूरे भारत में यह माना जाता था कि स्वतंत्रता संग्राम में कलकत्ता हमेशा से उदासीन रहा है परंतु आज़ादी की पहली वर्षगाँठ मनाने के लिए कलकत्तावासियों में भरपूर उत्साह था। दूसरी तरफ़ प्रशासन ने इन जुलूस और जन-सभाओं का दमन करने के लिए इन गतिविधियों को गैर-कानूनी घोषित कर दिया था। इतनी अटकलें लगने के बावजूद हज़ारों की संख्या में स्त्री-पुरुषों ने इसमें भाग लिया था। लोगों का जोश कलकत्ता के इतिहास में इतने प्रचंड रूप में पहले कभी नहीं देखा गया था। इस विशाल आंदोलन के बाद भारतवासियों की सोच कलकत्ता के प्रति बदल गई।    
2.    इस कथन का आशय यह है कि पुलिस ने नोटिस निकाला था कि सभा तथा जुलूस नहीं निकाले जा सकते। लेकिन सुभाष बाबू की अध्यक्षता में कौंसिल ने नोटिस निकाला था कि मोनुंनेट के नीचे झंडा फहराया जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सर्वसाधारण को इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए खूब प्रचार किया गया था। एक तरह से यह आंदोलन सरकार और कलकत्तावासियों के बीच खुली लड़ाई थी।          


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