Samas by Avinash Ranjan Gupta


समास (Compound)
शब्द रचना
        हिंदी भाषा में शब्दों की रचना कई विधियों से होती है जिसमे से एक रचना विधि है - समास रचना। समास में दो या अनेक शब्दों के मेल से एक नए शब्द की रचना होती है,
जैसे - पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
समास के लाभ
        सामासिक शब्दों के प्रयोग से हम गागर में सागर भर सकते हैं क्योंकि इस विधि से हम वाक्यों के बीच में आए अनावश्यक विभक्तियों को हटा देते हैं जिससे कम शब्दों में भावों की अभिव्यक्ति या संप्रेषण का काम पूरा हो जाता है। उदाहरण के लिए दही में डूबा हुआ वड़ा की जगह पर दहीवड़ा  लिखकर एक शब्द में संप्रेषण पूरा हो जाता है।
समास का अर्थ
समासशब्द का शाब्दिक अर्थ होता है छोटा-रूपया संक्षिप्तीकरण। अतः, जब दो या दो से अधिक शब्द (पद) अपने बीच की विभक्तियों का लोप कर जो छोटा रूप बनाते हैं, उसे समास, सामासिक शब्द या समस्त पद कहते हैं।
जैसे रसोई के लिए घरशब्दों में से के लिएविभक्ति का लोप करने पर नया शब्द बना रसोईघर’, जो एक सामासिक शब्द है।
        किसी समस्त पद या सामासिक शब्द को उसके विभिन्न पदों एवं विभक्ति सहित पृथक् करने की क्रिया को समास का विग्रह कहते हैं जैसे- विद्यालय  विद्या के लिए आलय, ‘माता-पिता माता और पिता।
समास में दो पद होते हैं- पूर्वपद और उत्तरपद जैसे, दहीवड़ा  सामासिक शब्द में दही पूर्वपद और वड़ा उत्तरपद है।
समास के प्रकार:
समास छह प्रकार के होते हैं-
1. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
2. तत्पुरुष समास (Determinative Compound)
3. द्वन्द्व समास (Copulative Compound)
4.बहुब्रीहि समास (Attributive Compound)
5. द्विगु समास (Numeral Compound)
6. कर्म धारय समास (Appositional Compound)
1. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
अव्ययीभाव समास में प्रायः
1.   पहला पद प्रधान होता है।
2.   पहला पद या पूरा पद अव्यय होता है।
(
वे शब्द जो लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार नहीं बदलते, उन्हें अव्यय कहते हैं)
3.   यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयुक्त हो, वहाँ भी अव्ययीभाव समास होता है।
4.   संस्कृत के उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभव समास होते हैं।
उदाहरण
1.         यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार।
2.         यथाशीघ्र = जितना शीघ्र हो
3.         यथाक्रम = क्रम के अनुसार
4.         यथाविधि = विधि के अनुसार
5.         यथावसर = अवसर के अनुसार
6.         यथेच्छा = इच्छा के अनुसार
7.         प्रतिदिन = प्रत्येक दिन, हर दिन
8.         प्रत्येक = हर एक, प्रति एक
9.         प्रत्यक्ष = अक्षि (आँख) के आगे
10.   घर-घर = प्रत्येक घर, हर घर, किसी भी घर को न छोड़कर
11.   हाथों-हाथ = एक हाथ से दूसरे हाथ तक, हाथ ही हाथ में
12.   रातों-रात = रात ही रात में
13.   बीचों-बीच = ठीक बीच में
14.   साफ़-साफ़ = साफ़ के बाद साफ़, बिल्कुल साफ़
15.   आमरण = मरने तक, मरण पर्यन्त
16.   आसमुद्र = समुद्र पर्यन्त
17.   भरपेट = पेट भरकर
18.   अनुकूल = जैसा कूल है वैसा
19.   आजीवन = जीवन पर्यन्त, जीवन भर
20.   निर्विवाद = बिना विवाद के
21.   दरअसल = असल में
22.   बाकायदा = कायदे के अनुसार
2.तत्पुरुष समास (Determinative  Compound)
1.   तत्पुरुष समास में दूसरा पद (पर पद) प्रधान होता है अर्थात् विभक्ति का लिंग, वचन दूसरे पद के अनुसार होता है।
2.   इसका विग्रह करने पर कत्र्ता व सम्बोधन की विभक्तियों (ने, हे, ,अरे) के अतिरिक्त किसी भी कारक की विभक्ति प्रयुक्त होती है तथा विभक्तियों के अनुसार ही इसके उपभेद होते हैं।
उदाहरण  
(क) कर्म तत्पुरुष (को)
1.   कृष्णार्पण = कृष्ण को अर्पण
2.   नेत्र सुखद = नेत्रों को सुखद
3.   वन-गमन = वन को गमन
4.   जेब कतरा = जेब को कतरने वाला
5.   प्राप्तोदक = उदक को प्राप्त
(ख) करण तत्पुरुष (से/के द्वारा)
1.      ईश्वर-प्रदत्त = ईश्वर से प्रदत्त
2.      हस्त-लिखित = हस्त (हाथ) से लिखित
3.      तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित
4.      दयार्द्र = दया से आर्द्र
5.      रत्नजड़ित = रत्नों से जड़ित
6.      रोगपीड़ित = रोग से पीड़ित
7.      शोकाकुल = शोक से आकुल
8.      श्रमजीवी = श्रम से जीवी
9.      रसभरा = रस से भरा
10.मदमाता = मद से माता
11.मदान्ध = मद से अन्ध
12.कामचोर = काम से चोर
(ग) सम्प्रदान तत्पुरुष (के लिए)
1.   हवन-सामग्री = हवन के लिए सामग्री
2.   विद्यालय = विद्या के लिए आलय
3.   गुरु-दक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
4.   बलि-पशु = बलि के लिए पशु
5.   विधानसभा = विधान के लिए सभा
6.   पुत्रशोक = पुत्र के लिए शोक
7.   शिवार्पण = शिव के लिए अर्पण
8.   गोशाला = गो/गायों  के लिए शाला
(घ) अपादान तत्पुरुष (से पृथक्)
1.      ऋण-मुक्त = ऋण से मुक्त
2.      पदच्युत = पद से च्युत
3.      मार्गभ्रष्ट = मार्ग से भ्रष्ट
4.      धर्म-विमुख = धर्म से विमुख
5.      देश-निकाला = देश से निकाला
(ङ) संबंध  तत्पुरुष (का, के, की)
1.    मन्त्रि-परिषद् = मन्त्रियों की परिषद्
2.    प्रेम-सागर = प्रेम का सागर
3.    राजमाता = राजा की माता
4.    अमचूर =आम का चूर्ण
5.    रामचरित = राम का चरित
6.    अन्नदान = अन्न का दान
7.    श्रमदान = श्रम का दान
8.    आनंदाश्रम = आनंद का आश्रम
9.    पुस्तकालय = पुस्तक का आलय
10.  देशसेवा = देश की  सेवा
11.  हिमालय = हिम का आलय
12.  गंगाजल = गंगा का जल

 (छ) अधिकरण तत्पुरुष (में, पे, पर)
1.   वनवास = वन में वास
2.   जीवदया = जीवों पर दया
3.   ध्यान-मग्न = ध्यान में मग्न
4.   घुड़सवार = घोड़े पर सवार
5.   घृतान्न = घी में पका अन्न
6.   कविश्रेष्ठ  = कवियों में श्रेष्ठ
7.   आपबीती = आप पर बीती
8.   नरोत्तम = नर में उत्तम
3. द्वन्द्व समास (Copulative Compound)
1.   द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं।
2.   दोनों पद प्रायः एक दूसरे के विलोम होते हैं, सदैव नहीं।
3.   इसका विग्रह करने पर और’, अथवा याका प्रयोग होता है।
उदाहरण
1.         माता-पिता = माता और पिता
2.         दाल-रोटी = दाल और रोटी
3.         पाप-पुण्य = पाप या पुण्य/पाप और पुण्य
4.         अन्न-जल = अन्न और जल
5.         जलवायु = जल और वायु
6.         फल-फूल = फल और फूल
7.         भला-बुरा = भला या बुरा
8.         रुपया-पैसा = रुपया और पैसा
9.         अपना-पराया = अपना या पराया
10.   नील-लोहित = नीला और लोहित (लाल)
11.   धर्माधर्म = धर्म या अधर्म
12.   सुरासुर = सुर या असुर/सुर और असुर
13.   शीतोष्ण = शीत या उष्ण
14.   यशापयश = यश या अपयश
15.   शीतातप = शीत या आतप
16.   शस्त्रास्त्र = शस्त्र और अस्त्र
17.   कृष्णार्जुन = कृष्ण और अर्जुन
4. द्विगु समास (Numeral Compound)
1.   द्विगु समास में प्रायः पूर्वपद संख्यावाचक होता है तो कभी-कभी परपद भी संख्यावाचक देखा जा सकता है।
2.   द्विगु समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है अन्य अर्थ का नहीं, जैसा कि बहुब्रीहि समास में देखा है।
3.   इसका विग्रह करने पर समूहया समाहारशब्द प्रयुक्त होता है।
उदाहरण
1.         दोराहा = दो राहों का समाहार
2.         पक्षद्वय = दो पक्षों का समूह
3.         सम्पादकद्वय = दो सम्पादकों का समूह
4.         त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
5.         त्रिलोक या त्रिलोकी = तीन लोकों का समाहार
6.         त्रिरत्न = तीन रत्नों का समूह
7.         -त्रय = तीन संकलनों का समाहार
8.         भुवन-त्रय = तीन भुवनों का समाहार
9.         चैमासा/चतुर्मास = चार मासों का समाहार
10.   चतुर्भुज = चार भुजाओं का समाहार (रेखीय आकृति)
11.   चतुर्वर्ण = चार वर्णों का समाहार
12.   पंचामृत = पाँच अमृतों का समाहार
13.   पंचपात्र = पाँच पात्रों का समाहार
14.   पंचवटी = पाँच वटों का समाहार
15.   षड्भुज = षट् (छः) भुजाओं का समाहार
16.   सप्ताह = सप्त अहों (सात दिनों) का समाहार
17.   सतसई = सात सौ का समाहार
18.   सप्तशती = सप्त शतकों का समाहार
19.   सप्तर्षि = सात ऋषियों का समूह
20.   अष्ट-सिद्धि = आठ सिद्धियों का समाहार
21.   नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
22.   नवरात्र = नौ रात्रियों का समाहार
23.   दशक = दश का समाहार
24.   शतक = सौ का समाहार
25.   शताब्दी = शत (सौ) अब्दों (वर्षों) का समाहार
5. कर्मधारय समास (Appositional Compound)
1.   कर्मधारय समास में एक पद विशेषण होता है तो दूसरा पद विशेष्य।
2.   इसमें कहीं कहीं उपमेय उपमान का सम्बन्ध होता है तथा विग्रह करने पर रूपी शब्द प्रयुक्त होता है।
उदाहरण
1.         पुरुषोत्तम = पुरुष जो उत्तम , पुरुषों में है जो उत्तम
2.         नीलकमल = नीला है जो कमल
3.         महापुरुष = महान् है जो पुरुष
4.         घन-श्याम = घन जैसा श्याम
5.         पीताम्बर = पीत है जो अम्बर
6.         महर्षि = महान् है जो ऋषि
7.         नराधम = अधम है जो नर
8.         अधमरा = आधा है जो मरा
9.         रक्ताम्बर = रक्त के रंग का (लाल) जो अम्बर
10.   कुमति = कुत्सित है जो मति
11.   कुपुत्र = कुत्सित है जो पुत्र
12.   दुष्कर्म = दूषित है जो कर्म
13.   चरम-सीमा = चरम है जो सीमा
14.   लाल-मिर्च = लाल है जो मिर्च
15.   कृष्ण-पक्ष = कृष्ण (काला) है जो पक्ष
16.   मन्द-बुद्धि = मन्द है जो बुद्धि
17.   शुभागमन = शुभ है जो आगमन
18.   नीलोत्पल = नीला है जो उत्पल
19.   मृगनयन = मृग के समान नयन
20.   चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
21.   राजर्षि = जो राजा भी है और ऋषि भी
22.   पकौड़ी = पकी हुई बड़ी
23.   मुख-चन्द्र = मुख रूपी चन्द्रमा
24.   वचनामृत = वचनरूपी अमृत
25.   भव-सागर = भव रूपी सागर
26.   चरण-कमल = चरण रूपी कमल
27.   क्रोधाग्नि = क्रोध रूपी अग्नि
28.   चरणारविन्द = चरण रूपी अरविन्द
29.   विद्या-धन = विद्यारूपी धन
6. बहुब्रीहि समास (Attributive Compound)
1.   बहुब्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता।
2.   इसमें प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ की प्रधानता रहती है।
3.   इसका विग्रह करने पर वाला, है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह आदि आते हैं।
उदाहरण
1.         गजानन = गज का आनन है जिसका वह (गणेश)
2.         त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके वह (शिव)
3.         चतुर्भुज = चार भुजाएँ हैं जिसकी वह (विष्णु)
4.         षडानन = षट् (छः) आनन हैं जिसके वह (कार्तिकेय)
5.         दशानन = दश आनन हैं जिसके वह (रावण)
6.         घनश्याम = घन जैसा श्याम है जो वह (कृष्ण)
7.         पीताम्बर = पीत अम्बर हैं जिसके वह (विष्णु)
8.         चन्द्रचूड़ = चन्द्र चूड़ पर है जिसके वह
9.         गिरिधर = गिरि को धारण करने वाला है जो वह
10.   मुरारि = मुर का अरि है जो वह
11.   आशुतोष = आशु (शीघ्र) प्रसन्न होता है जो वह
12.   नीललोहित = नीला है लहू जिसका वह
13.   वज्रपाणि = वज्र है पाणि में जिसके वह
14.   सुग्रीव = सुन्दर है ग्रीवा जिसकी वह
15.   मधुसूदन = मधु को मारने वाला है जो वह
16.   आजानुबाहु = जानुओं (घुटनों) तक बाहुएँ हैं जिसकी वह
17.   नीलकण्ठ = नीला कण्ठ है जिसका वह
18.   महादेव = देवताओं में महान् है जो वह
19.   मयूरवाहन = मयूर है वाहन जिसका वह
20.   कमलनयन = कमल के समान नयन हैं जिसके वह
21.   कनकटा = कटे हुए कान है जिसके वह
22.   जलज = जल में जन्मने वाला है जो वह (कमल)
23.   वाल्मीकि = वल्मीक से उत्पन्न है जो वह
24.   दिगम्बर = दिशाएँ ही हैं जिसका अम्बर ऐसा वह
25.   कुशाग्रबुद्धि = कुश के अग्रभाग के समान बुद्धि है जिसकी वह
26.   मन्दबुद्धि = मन्द है बुद्धि जिसकी वह
27.   जितेन्द्रिय = जीत ली हैं इन्द्रियाँ जिसने वह
28.   चन्द्रमुखी = चन्द्रमा के समान मुखवाली है जो वह
29.   अष्टाध्यायी = अष्ट अध्यायों की पुस्तक है जो वह
30.   वीणापाणि – वीणा है पाणि में जिसके
31.   चक्रपाणि – चक्र है पाणि में जिसके
32.   नरसिंह – सिंह है जिस नर में



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