Swarg Me Meeting Avinash Ranjan Gupta


स्वर्ग में मीटिंग
आज सुबह जब मैंने आँखें खोली तो सब कुछ अजीब-अजीब-सा लग रहा था। मेरे कमरे की दीवारें नीली से सफ़ेद हो चुकी थीं। ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उच्च कोटि की सफ़ेदी करवाई हो। खिड़की-दरवाजे कुछ नज़र नहीं आ रहे थे। आँखों पर ज़ोर देने पर मुझे दिखा कि मुझसे कुछ ही दूर पर कुछ और लड़के खड़े थे जो मेरी ही उम्र के थे। ऐसा दृश्य देखकर मैं समझ गया कि मैं सपना देख रहा हूँ। अनेक कोशिश करने के बावजूद मेरा सपना टूट ही नहीं रहा था। मैं जागने की कोशिश कर रहा था पर न जाने क्यों नहीं जाग पा रहा था। वो लड़के मेरी तरफ अपने हँसमुख चेहरे के साथ बढ़ रहे थे। उनके फेसियल एक्स्प्रेसन को देखकर ऐसा लग रह था मानो वे बहुत दिनों से मेरी राह देख रहे थे।  वे मेरे पास आए मेरा स्वागत करते हुए कहा, “इस नई दुनिया में हम सब आपका हार्दिक अभिनंदन करते हैं सर ।” एक पल के लिए तो मैं भी हैरान हो गया कि इन्हें कैसे पता चला कि मैं एक टीचर हूँ? मैं कुछ और सोच पाता कि इससे पहले अपना भ्रम तोड़ने के लिए पलंग के बगल में रखे पानी के उस गिलास को ढूँढ़ने लगा ताकि मैं इस सपने से निकल कर जाग सकूँ।  तब मुझे पता चला जागते तो ज़िंदा इंसान हैं मैं तो मर चुका था। जी हाँ आपने सही पढ़ा मैं मर चुका था और अब में दूसरी दुनिया में था।
          मेरे साथ ऐसा क्या हुआ जो 28 साल की उम्र में ही मेरी मौत हो गई और मेरे साथ 17 और लड़के उनके साथ भी ऐसा क्या हुआ जो वो इतनी जल्दी पृथ्वी लोक से इस नवलोक में आए हैं। उनके और मेरे पिछले जीवन की कहानी आपको मैं इस कहानी के आगे हिस्से में बताऊँ या नहीं इसके लिए मैंने बहुत सोच-विचार किया। इसमें मुझे सबसे ज़्यादा सहायता जिससे मिली वो थी चाणक्य की ये नीति, “किसी भी काम को करने से पहले आप अपने आप से तीन सवाल करो, पहला, मैं यह क्यों कर रहा हूँ? दूसरा, इसका परिणाम क्या होगा? अंतिम और तीसरा, क्या मैं इसमें सफल हो पाऊँगा? जब आपको इन तीनों प्रश्नों के सकारात्मक (Positive) उत्तर मिल जाए तो अपने कार्य की शुरूआत बेहिचक करें।” मैं भी कहानी के शेष भाग में अपने और इन 17 लड़कों की पिछले जीवन का सार आप तक पहुँचाऊँगा।
          मुझे मिलाकर ये सभी लड़के पृथ्वीलोक के विभिन्न देशों से आए हुए थे। इनमें से कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर, फर्मासिस्ट, एक्सेंट ट्रेनर, व्यापारी, बैंक क्लर्क, टीचर, लैब अटेंडेंट, मार्केटिंग मेनेजर, पीज़ा डेलीवेरी बॉय, प्रोग्रामर और कोई चपरासी था। इन सबने खुदकुशी यानी आत्महत्या (Suicide) की थी मुझे छोड़कर। हालाँकि, मेरी मौत का कारण भी प्रेम ही था मगर अभी तक यहाँ के कानून के हिसाब से मेरी मौत को आत्महत्या में ही गिना जा रहा था।
          इन सबकी मौत एक पल की नादानी का अंजाम है। ये सब जिनसे प्यार करते थे उन्होंने किसी न किसी तरह इन्हें रिजेक्ट कर दिया था। इन्हें ये एहसास दिला दिया गया था कि इनके प्रतिद्वंदी इनसे काफी सुपीरियर हैं और ये इनफेरियर (प्रेमिकाओं के मतानुसार)। इन्फेरियोरिटी कॉम्प्लेक्स के शिकार ये सब अपने अपने जीवन से तंग आ चुके थे। इन्हें अब अपने जीवन का कोई भी उद्देश्य नज़र नहीं आ रहा था। इन्होंने अपने जीवन की सारी खुशियाँ एक ही जगह केंद्रित कर दी थी और उस खुशियों के दरवाजे बंद होते ही इन्होंने अपने जीवन के दरवाजे पर मौत को निमंत्रण दे दिया। चूकि, ये सब भले मानुष थे इसलिए इन्हें धरतीलोक पर अपने प्रियजनों को दिव्यदृष्टि से देखने का अवसर मिल सकता था केवल उस समय जब इनके बीच कोई ऐसा आदमी आए जिसने आजीवन निष्पक्षता से सभी कार्य किए हों वही व्यक्ति इन्हें धरतीलोक पर इनके परिजनों का सीधा प्रसारण मेरा मतलब है Live Telecast दिखा सकता है इसिलिए इन्हें बड़ी बेसब्री से मेरा इंतज़ार था।  
आज मुझे अपने किए गए निष्पक्ष कर्मों पर बड़ा गर्व हो रहा। धरतीलोक पर लगभग सभी ने मुझसे यही कह रखा था कि तू अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा। और मैं हमेशा यही सोचकर संतुष्ट हुआ करता था कि मेरे कर्मों से ही मैं महान बनूँगा। कभी न कभी लोग मेरे कर्मों की प्रशंसा ज़रूर करेंगे।
ज़िंदगी बिता दी मैंने इसी गुमान में।
तमन्ना भी पूरी होती है दूसरे जहान में।
इन्होंने सबसे पहले अपनी-अपनी प्रेमिकाओं को देखना चाहा। सभी की प्रेमिकाएँ अपने-अपने नए प्रेमी के साथ मस्त थीं, कोई मल्टीप्लेक्स में फिल्म देख रही थी तो कोई, आइफिल टावर के सामने फोटो उठवा रही थी, कोई सी बीच में नहा रही थी तो कोई अपने प्रेमी के  साथ लेट नाइट रोमेंटिक बातें कर रही थी, कोई शॉपिंग मॉल में सैंडल खरीद रही थी तो कोई अपनी शादी की तैयारियों में व्यस्त थी। इनके कभी प्रेमी रहे युवक की मृत्यु के कुछ घंटे बाद ही इनकी ज़िंदगी सामान्य हो गई। मगर असर पड़ा था तो इनके परिवारों पर जो आज भी इनकी याद में खून के आँसू बहा रहे हैं। आज भी उनके दिलों में न इनके चिता की आग बुझ पाई हैं और न ही कब्र की गहराई भर पाई है। एक छोटी-सी भूल के कारण इन्होंने अपने परिवारवालों को इस कदर बेसहारा बना दिया है जिसकी भरपाई इस जनम में किसी भी कीमत पर नहीं की जा सकती। यह दृश्य देखते ही इनके मुख से अनायास ही निकल पड़ा, “मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।”
          मैं भी प्रेम की बलि ही चढ़ा हूँ पर मैंने ख़ुदकुशी नहीं की थी। यह बात तो तय है कि मैं भी प्रेम में था। उसके साथ अपने आने वाले जीवन को बिताने के सुंदर सपने देखा करता था। तरह-तरह की योजनाएँ बनाता कि यह  ऐसा करेंगे वो वैसा होगा ओर नजाने क्या-क्या। मगर सपने हकीकत मे बदलते उससे पहले ही उसकी ज़िंदगी में कोई और आ गया। देखते-देखते मेरे सारे सपने धुमिल हो गए। मेरी स्थिति देखकर मेरे दोस्तों को लग रहा था कि मुझे उसके नए प्रेमी से जलन हो रही है मगर ऐसा बिलकुल नहीं था। वास्तव में मुझे कभी जलन होती ही नहीं थी। बस अफसोस इस बात का हो रहा था कि मेरे पास ज़्यादा पास क्यों नहीं हुए? ताकि मैं भी अपने सपने पूरे कर पाता।  कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि सपने देखने और उसे सच करने का अधिकार उसी के पास है जिसके पास भले ही सोने का दिल न हो मगर उसके पास सोना बहुत हो। उसकी शादी एक सोने के व्यापारी के साथ तय हो गई। उसने मुझे अपनी ज़िंदगी से इस तरह निकाला जैसे कोई रेपर से चॉकलेट निकालने के बाद रेपर को फेंक देता है।
          मगर दिल तो आखिर दिल ही है न मैंने अनेक तरह से उसे मनाने की कोशिश मगर उसकी आँखों में तो सोने की चमक थी। मेरी भावनाओं को वह कहाँ से देख पाती। अपने नए साथी को पाकर वह बहुत खुश थी और हालत मेरी खराब थी। रात को सोता और अचानक उठ जाता और फिर नींद आने पर भी नहीं सोता इस डर से कि कहीं सपने में वो फिर से न आ जाए। एक दिन तो हद ही हो गई मुझे नींद ही नहीं आ रही थी नींद न आने की वजह भी थी  और वजह यह थी कि उस दिन उसकी शादी थी। मेरा कमरा मुझे काट खाने को दौड़ रहा था। इसी कमरे में मैं उसकी यादों को पलकों में समेटे कभी चैन से सोया करता था आज वहीं मुझे घुटन-सी हो रही थी। मुक्त  हवा की तलाश में और गरम-गरम चाय पीने के लिए मैं  हाइवे के पास बन्नू की चाय दुकान तरफ हो लिया कि तभी तेज़ी से आती हुई एक ट्रक ने मुझे बड़ी बेदर्दी से रौंद डाला और बिना गति बदले निकल गया। मेरी प्रेमिका की तरह  इसने भी मुझे मुड़ कर नहीं देखा कि मैं ज़िंदा हूँ या मर गया? चूंकि, मेरी मौत आत्महत्या नहीं बल्कि एक हादसा थी इसीलिए मुझे यह मौका मिला कि मैं इन सबके साथ एक मीटिंग करूँ और उस मीटिंग में हुए चर्चे  को धरतीलोक तक पहुँचाऊँ ताकि युवकगण प्रेम में भ्रमित या धोखा होकर ऐसे कदम न उठाएँ।
          पेशे से मैं एक साहित्य का टीचर हूँ। माफ कीजिएगा साहित्य का टीचर था। अभी मेरे टीचरशिप को तीन साल भी पूरे नहीं हुए थे कि मैं सारे रिश्ते-नाते तोड़कर इस नवलोक में आ गया। और इन 27 लड़कों के साथ हुए मीटींग के मिनट्स मैं आपको बताना चाहता हूँ ताकि आप कोई भी ऐसा कदम न उठाएँ जिससे आपको और आपके परिवारवालों को बाद में हानि उठानी पड़े। 
          हमलोग प्रतिदिन के जीवन में देखते हैं कि बहुत बड़ा जन समुदाय यह दुहाई देता है कि संसार में प्रेम की काफी कमी है जिसके कारण प्रतिदिन अनेकोनेक अप्रिय घटनाएँ घटित हो रही है। पर हमारी इस मीटिंग में हमने पाया है कि रिश्ता चाहे दो देशों का हो दो राज्यों का हो दो परिवारों का हो या फिर दो लोगों का ही क्यों न हो प्रेम से ज़्यादा विश्वास की आवश्यकता  होती है। उदाहरण के लिए एक पिता अपने बेटे से बहुत प्रेम करता है परंतु वही बेटा जब अपने पिता के पास पैसे माँगने जाता है तो उसके पिता उससे अनेक सवाल कए बैठते हैं और उचित कारण न बताए जाने पर पिता अपने बेटे को पैसे भी नहीं देता है। जो इस बात को दर्शाता है क विश्वास की काफी कमी है। परंतु वही बेटा जब किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है तो पिता अपने बेटे के इलाज़ के लिए लाखों रुपए पानी की तरह बहा देता है जो इस बात को दर्शाता है कि पिता अपने बेटे से अगाध प्रेम करता करता है पर अपने बेटे पर विश्वास नहीं। किसी भी रिश्ते में विश्वास, वेल्यू, इज्ज़त और एक-दूसरे के प्रति समय का होना अनिवार्य है।
          हमें सच्चाई को ऐसे स्वीकार करना चाहिए जैसे कि वो है न कि वैसे जैसे कि हम चाहते हैं। वास्तव में हम सच्चाई को नहीं बदल सकते हैं मगर सच्चाई में इतनी ताकत हा कि वह हमें बदल सकती है। जब मेरे पास उसके नए साथी की खबर आई तो मैंने उस सच को स्वीकार न करके उस सच की आशा की जो मैं चाहता था नतीजा आपके पास है।
          कोई भी वस्तु इतनी सुंदर नहीं होती कि हर स्थिति में वह सुंदर ही लगे चाहे वह प्रेम ही क्यों न हो। आज मुझे मेरा और इन 27 युवकों का प्रेम असुंदर लग रहा है जिनकी अल्पायु मौत हो गई। असल में यह प्रेम नहीं बल्कि व्यापार था। जिस प्रकार व्यापारी भी अपनी चीज़ें उसे ही बेचता है जो उसकी सबसे ज़्यादा कीमत देने को तैयार हो ठीक उसी प्रकार हम सबकी प्रेमिकाओं किसी न किसी रूप में अपने आपको उसी के हवाले कर दिया जो उनकी ज़्यादा कीमत लगा सके। पहले कहा जाता था कि, “ कुछ लोग कीमत से नहीं किस्मत से मिलते हैं। ” पर अब तो यकीन सा हो चला है कि “कुछ लोग किस्मत से नहीं कीमत से ही मिलते हैं।”
हृदय रोग का इलाज़ डॉक्टरों के पास है। परंतु उसी हृदय में पनप रहे ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, अभिमान का इलाज़ किसके पास है? मुझे लगता था कि इसका इलाज़ प्रेम हैं मगर कहाँ तक यह सच लगता है यह जानने के बाद कि इसी प्रेम की बलि 28 लोग चढ़ चुके हैं। कहते हैं, “हथौड़ा भले ही अपना निशाना चूक सकता है मगर फूलों का गुलदस्ता नहीं।” इन सभी प्रेमियों ने पूरे के पूरे बगीचे उपहार के रूप मे अपनी-अपनी अप्सराओं को दे दिए होंगे। मैंने खुद ऐसा किया है मगर अंत में जीत सोने की ही हुई। इनके मौत ने भी उनमें थोड़ी-सी भी तब्दीली न कर सकी। ये तो यही बात हो गई कि खस्सी की जान जाए और खाने वाले कहे कि मज़ा नहीं आया। निष्कर्ष यही निकलता है कि आप उस समय तक कसी को बदल नहीं सकते जब तक वह खुद अपने-आपको बदलना नहीं चाहेगा।
          हम उस समय किसी भी काम को अच्छे से कर सकते हैं जब हम उस काम को अच्छे से जानते होंगे। मैं आप सबसे यह कहता हूँ कि दुनिया में कोई भी ऐसा आदमी नहीं है जो सभी कार्यों में सिद्धहस्त हो। किसी में कुछ अच्छा होता है तो किसी में कुछ। हमें चाहिए कि हम अपने आस-पास ऐसे लोगों को ही जगह दें जो वास्तव में हमारे उत्थान में मदद करें और हमारी भी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम भी उनके विकास में पूरा-पूरा सहयोग दें। मेरे दोस्तों ने मुझे उसके बारे में आगाह किया था। मगर मैंने ही उनकी बातों को नज़र अंदाज़ कर दिया था क्योंकि मैं गलत मोह में पड़ गया था और जो व्यक्ति मोह में पड़ा होता है उसपर किसी भी प्रकार का सलाह रूपी मंत्र काम नहीं करता। काश मैं उनकी बात मान लिया होता तो ज़िंदगी कुछ और ही होती। मेरा मतलब है ज़िंदगी होती।
          लोग मौत से डरते हैं ऐसा कहा जाता है। मगर अब मेरा मानना है कि भय तो ज़िंदगी का होता है मौत तो आनी  ही आनी है। मृत्यु ही इस जीवन का सबसे बड़ा सच है जिससे आज तक कोई भी नहीं बच पाया है। आज मैं जब दिव्य दृष्टि से अपने परिवार वालों को देखता हूँ कि मेरे माता-पिता मेरे भतीजे के साथ खेल रहे हैं तो मुझे जलन होती है कि मैं भी वहाँ हो सकता था मैं भी अपने भतीजे के साथ खेल सकता था। आज जब मेरी माँ मेरे फोटो के पास आकर रुक जाती है तो उसकी आँखें नम होने लगती है यह देखकर मेरी अंतरात्मा मुझे धिक्कारने लगती है। मेरे छात्र किसी दूसरे टीचर से साहित्य पढ़ रहे हैं। स्टाफ़ रूम में लगी मेरी फोटो पर धूल जाम चुकी है। स्टाफ़ ठहाके लगाते हैं और नए टीचर से मेरा परिचय यह कहकर देते है कि आवर लेट लिटेरेचर टीचर।
          हम 28 सभी दृष्टि से मानव की सटीक परिभाषा परिभाषित करने में सक्षम हैं। मगर एक छोटी-सी भूल ने हमारे उज्ज्वल भविष्य के सदा के लिए गुमनाम कर दिया। अगर हम धरतीलोक पर होते तो स्वाभाविक मृत्यु तक हम सब समाज को कुछ अच्छा देकर जाते। इतिहास के पन्नों में भले ही हम जगह बना पाते या नहीं किसी न किसी के दिलों मे ज़रूर बना लेते।       
अविनाश रंजन गुप्ता

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