Chhatron Ke Liye By Avinash Ranjan Gupta

छात्रों के लिए
          प्रिय छात्रों आपने अपने शिक्षकों से, अभिभावकों से, माता-पिता से या अपने हितेषियों (Well Wisher) ये वाक्य सुने ही होगे कि आप ही देश का भविष्य हो, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करना सीखों, बड़ों की बातें मानना सीखों, मन लगाकर पढ़ना सीखों परंतु आज तक हो सकता है कि किसी ने आपको यह न बताया हो कि आखिर मन लगाया कैसे जाए? ऐसा क्या किया जाए जिससे ऊपर लिखी सारी बातें हम सभी छात्रवृंद दिलो-दिमाग से मनाने को तैयार हो जाएँ। अगर आप सचमुच चाहते हैं कि आपको अपने इन्हीं सवालों का जवाब मिल जाए तो मेरा विश्वास है कि यह लेख आपके काम आ सकता है।
          छात्रों सबसे पहले तो मैं आपको यह बता देना चाहता हूँ कि कोई काम नहीं करना चाहता। जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग आराम से जीवन व्यतीत करना चाहता है परंतु सुख-सुविधा के साधन जुटाने के लिए आपको काम करना ही पड़ता है। दूसरी तरफ समाज के हर एक क्षेत्र में जिस गति से ईर्ष्या भाव और प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही है कि मनुष्य कुछ कर दिखने की इच्छा से नहीं बल्कि पीछे न रह जाएँ इस भय से काम करता है। परंतु अगर हम सचमुच कुछ करना चाहते हैं तो उस काम के प्रति हमें अपने दिलो-दिमाग में रुचि जाग्रत करनी होगी और इस रुचि को ईंधन देने का काम करेगा उस काम की उपयोगिता।
1.     सबसे पहले आपको अपने दिमाग में यह बात बैठानी होगी कि किसी भी काम को करने में अनेक तरह की परेशानी आएँगी और मुझे उसका डट कर सामना करना है। चाहे ये गणित के सूत्र (Formula) हों, केमिस्ट्री के रिएकशन, फ़िजिक्स के सिद्धांत, बायोलॉजी के कठिन शब्द, आपके पेशे (Occupation) में आने वाले उतार-चढ़ाव या फिर जीवन के जंजाल। जब आप इन समस्याओं को सामना करते हैं तो आप अपनी असली दृढ़ता, शक्ति, बुद्धि और जुझारू प्रवृत्ति से परिचित तो होते ही हैं साथ ही साथ अनुभवी होने का सौभाग्य भी आपको प्राप्त होता है। किसी भी परिस्थिति में हम अनुभव का सृजन नहीं कर सकते बल्कि हमें अनुभव से होकर गुजरना पड़ता है। और आपको तो यह पता ही है कि इस दुनिया में सदा से अनुभवी लोगों की कद्र की जाती रही है।
2.     छात्रों को अपने पाठ्यक्रम की सारे विषय अच्छे नहीं लगते यह आज के जमाने का सबसे बड़ा सच है फिर भी छात्रों को विषय पढ़ने ही पड़ते हैं। फलस्वरूप उस विषय में उनके कम अंक आते हैं। ऐसे में छात्रों को चाहिए कि उस विषय को घर में आए हुए उस बिन बुलाए मेहमान की तरह समझें जिसके आगमन पर तो हम अटकले तो नहीं लगा सकते परंतु न चाहते हुए भी मेहमाननवाज़ी करते हैं सिर्फ ये सोचकर कि कुछ ही दिनों की बात है। ठीक उसी तरह हमें भी अनचाहे विषय का अध्ययन मन लगाकर करना चाहिए क्योंकि ये भी कुछ समय बाद हमारे पाठ्यक्रम से हट जाएँगे। भोजन की थाली में परोसी गई सारी खाद्य वस्तुओं में से  हो सकता है करेले की भुजिया कड़वी और नापसंद हो मगर सेहत के लिए लाभदायक होती ही है।
3.     छात्रों किसी को पीछे करने के उद्देश्य से नहीं बल्कि आत्म-विकास के लिए पाठ का गहन अध्ययन करें। आज के दौर में हमें बोला जाता है कि अगर हम अच्छे से नहीं पढ़ेंगे तो पीछे रह जाएँगे परंतु सच तो यह है कि किसी को पीछे करने के उद्देश्य से अगर हम पढ़ें तो हमार चैनों-सुकून गायब हो जाएगा। अगर आपको प्रतियोगिता करनी ही है तो खुद से कीजिए। हर दिन कुछ नया जानने की कुछ नया सीखने की कोशिश कीजिए। अपने रिकॉर्ड खुद तोड़कर नए कीर्तिमान बनाते जाइए।
4.     आज के युग में लगभग सभी कामों के पीछे का मूल उद्देश्य ज़्यादा से ज़्यादा लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और इसी होड़ में शिक्षक, छात्र और अभिभावक भी लग गए हैं। शिक्षक शिक्षा के व्यवसाय में लगा है। अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा केंद्रों में भेजकर उनमें निवेश कर रहे हैं ताकि भविष्य में सूद के साथ मूलधल को वसूल सके। और ऐसे माहौल में छात्रों का उद्देश्य भी ऐसी नौकरी प्राप्त करना होता है जिसमें तनख्वाह बहुत हो। परंतु एक जिम्मेदार शिक्षक होने के नाते मैं आपको यह बताना ज़रूरी समझता हूँ कि लक्ष्मी अपने साथ अलक्ष्मी को भी लाती है। लक्ष्मी के आने-जाने का कोई निश्चित समय नहीं होता है जबकि सरस्वती एक बार आ जाती है तो फिर कभी भी नहीं जाती। अगर हमने सरस्वती की साधना सार्वजनिक भलाई के उद्देश्य से की है तो लक्ष्मी के साथ-साथ यश भी प्राप्त होता है।
5.     छात्रों अगर आप मेरे कथन से सहमत हैं तो इस बात से भी सहमत होंगे कि सरस्वती की साधना में एक लंबा समय लगता है। इसके लिए आपको कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी और नियमों का पालन भी। छात्रों चलती कक्षा के दौरान (जब तक ज़रूरी न हो) लघुशंका के लिए कक्षा से न निकलें, ऐसे में पूरी कक्षा बाधित होती है शिक्षक सहित छात्रों का ध्यान भी विकर्षित होता है। कक्षा में पढ़ाए जा रहे पाठ को ध्यान से सुने भले ही आप इस पाठ को शिक्षा केंद्र में पढ़ चुके हों या पढ़ने वाले हों। पढ़ाई के दौरान उत्पन्न संदेहों की सूची बनाकर पुनर्वालोकन के समय शिक्षक से विनम्रतापूर्वक पूछ लें। पुरातन काल में भी शिष्य अपने गुरु के उपदेशों को सुनकर ही आत्मसात किया करते थे।
6.     बच्चों पढ़ाई-लिखाई बहुत ही आसान कार्य है। इसके लिए आपको कुछ पूर्व तैयारियां करने होंगी जैसे कक्षा में पढ़ाए जाने वाले अंश को पहले से पढ़कर आधार ज्ञान को आत्मसात करना और पाठ का जो अंश न समझ में आए उसकी सूची बनाकर कक्षा में शिक्षक से पूछ लेना। यदि आप चाहते हैं कि आप पढे पाठ को कभी भी न  भूलें तो आप उस पढ़े हुए पाठ को किसी को समझाने का प्रयत्न कीजिए और अगर कोई भी न मिले तो आईने के सामने खड़े होकर खुद को समझाए। यकीन मानिए वह पाठ हमेशा के लिए आपको याद हो जाएगा। 
7.     छात्रों आपको इस उद्देश्य से भी प्रेरित होकर पढ़ना चाहिए क्योंकि हमारे पूर्वजों ने अनेक गलतियाँ की हैं जिसका ब्योरा आज के इतिहास और भूगोल की पुस्तकें अच्छे से प्रदान करती हैं, जिसका खामियाजा हमारी ऊपर वाली को पीढ़ी भुगतना पड़ा था और अब हमारी बारी है तो क्यों न हम ये माने कि हमारे बाद इस पृथ्वी को हमें हमारी आनेवाली पीढ़ियों को सौंपना है। हम इस दुनिया में पैदा हुए यहाँ रहा, खाया, पीया तो क्यों न इसे सुंदर बनाने के लिए भी प्रयास करें। हर दिन होने वाले मौसम के परिवर्तनों, समाज में बढ़ने वाले असामाजिक गतिविधियों को केवल और केवल अच्छी शिक्षा से ही दूर किया जा सकता है।
8.     छात्रों भाषा की कक्षा को भी कम महत्त्वपूर्ण समझने की भूल न करें। हर कक्षा भाषायी कक्षा का उदाहरण हैं, जब तक आपका भाषा पर अच्छा अधिकार नहीं होगा तब तक किसी भी सूरत में आप अन्य विषयों को न तो अच्छे से समझ पाएँगे और न ही समझा पाएँगे। हमें यह कभी भी नहीं भूलना चाहिए की इस दुनिया में सबसे पहले भाषा आई थी बाद में अन्य विषय। इस लिहाज से भी भाषा की आवश्यकता  और महत्त्व सदैव बनी रहती है।
9.     बच्चों अन्य विषयों के साथ-साथ आपकी रुचि साहित्य में होनी ही चाहिए क्योंकि साहित्य ही एकमात्र ऐसा विषय है जो आपको भौतिक सुख से दूर आध्यात्मिक सुख की ओर लेकर जाता है। और आज तक जितने भी महान पुरुषों के नाम हम इतिहास के पन्नों पर पढ़ते हैं वे उच्च कोटी के साहित्य प्रेमी थे। साहित्य ही हमें प्रेरित करता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी सदाचारी और धैर्यवान बने रहने की सीख देता है।
10.                        छात्रों आप देश के भावी नागरिक हो जिसके कंधों पर देश का भार वहन करने की क्षमता होनी चाहिए। और अब आपका भी यही मानना होगा कि यह भार वहन करने की क्षमता आपमें उसी वक्त आ सकती है जब आप सुशिक्षित हों। आने वाले दिनों में ये मायने नहीं रखेगा कि आप किस धर्म, जाति या बिरादरी के हो बल्कि केवल आपके गुणों का ही अवलोकन किया जाएगा। मकान चाहे बड़ा हो या छोटा सिर वहीं झुकता है जिस घर से घण्टियों की मधुर ध्वनि आती है।

ये मेरा प्रयास है कि आप इससे लाभान्वित होकर सकारात्मक तरीके से अपने कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ें।
                                                                                अविनाश रंजन गुप्ता


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