Sapno Ke Se Din By Avinash Ranjan Gupta

SAPNO KE-SE DIN PAATH KA SHABDARTH click here


बोधप्रश्न
1. कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती - पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?
2. पीटी साहब की शाबाशफ़ौज के तमगोंसी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।
3. नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?
4. स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्त्वपूर्णआदमीफ़ौजी जवान क्यों समझने लगता था?
5. हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया?
6. लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?
7. लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्याक्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँतिबहादुरबनने की कल्पना किया करता था?
8. पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
9. विघार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
10. बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली दिनों की। अपने अब तक के स्कूली जीवन की खट्टीमीठी यादों को लिखिए।
11. प्रायः अभिभावक बच्चों को खेलकूद में ज़्यादा रुचि लेने पर रोकते हैं और समय बरबाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए -
(क) खेल आपके लिए क्यों ज़रूरी हैं?
(ख) आप कौन से ऐसे नियमकायदों को अपनाएँगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति
न हो?

1.                      यह बात पाठ के इस अंश से सिद्ध होती है- हमारे आधे-से अधिक साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। जब बहुत छोटे थे तब उनकी बोली कम समझ पाते थे। उनके कुछ शब्द सुनकर हमें हँसी आने लगती थी। परंतु खेलते तो सभी एक-दूसरे की बात खूब समझ जाते।
2.                      पीटी सर वैसे तो बहुर सख़्त अध्यापक थे। पीटी मास्टर के रूप में वो बच्चों को बहुत डराते थे। वे खाल खींचने के मुहावरे को भी सच कर देते थे। पर जब पीटी सर स्काउटिंग का अभ्यास करवाते समय नीली-पीली झंडियों को ऊपर-नीचे करवाते थे। गलती न करने पर वे शाबाश कहते थे। उनके मुँह से  शाबाश शब्द सुनकर लड़कों को ऐसा लगता था मानो फौज का तमगा मिल गया हो। पीटी सर का शाबाश कहना किसी चमत्कार से कम न था।
3.                      साधारणत: नई श्रेणी में जाने का लड़कों को बहुत चाव रहता है। उन्हें नई किताबें पढ़ने को मिलेंगी बड़ा मजा आएगा। पर ठीक इसके विपरीत लेखक की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी कि वे नई किताबें खरीद सकें। जैसे-तैसे उन्हें कॉपियाँ तो नई मिल जाती थीं पर किताबें पुरानी ही  पढ़नी पड़ती थीं। पुरानी किताबों से एक विशेष प्रकार की  गंध आती थी जिससे लेखक का मन उदास हो जाता था। दूसरी तरफ यह कारण भी हो सकता है कि ऊँची श्रेणी में जाने के बाद पढ़ाई और भी ज्यादा कठिन और शिक्षकों की उम्मीदें भी बढ़ जाया करती थी।
4.                      स्काउट परेड करते समय लेखक धोबी की धुली वर्दी पहनता, पोलिश किए हुए बूट तथा मोजे पहनकर स्वयं को फौजी जवान ही समझता था। पीटी मास्टर प्रीतमचंद स्काउटों को परेड करवाते समय लेफ्ट-राइट कहते थे और मुँह से सीटी बजाते थे। लेखक राइट टर्न, लेफ्ट टर्न या अबाउट टर्न सुनकर बूटों की एड़ियों को दाएँ-बाएँ मोड़कर ठक-ठक करके अकड़कर चलता था। उस समय लेखक को ऐसा लगता था मानो वह छात्र न होकर फौज का महत्त्वपूर्ण आदमी हो।
5.                      पीटी सर चौथी कक्षा को फारसी पढ़ाते थे। एक दिन जब बच्चे एक शब्द-रूप याद करके नहीं आए तो पीटी सर का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उन्होंने सभी बच्चों को मुर्गा बनने को कहा जिसमें कुछ बच्चे गिर पड़े। तभी हेडमास्टर शर्माजी वहाँ  आ गए। उन्हें सज़ा का यह ढंग बहुत बुरा लगा। वे पीटी सर पर क्रोधित हो उठे और दफ्तर में आकर उन्होंने पीटी सर को मुअत्तल कर दिया।
6.                      लेखक और उनके साथियों को स्कूल कभी भी ऐसी जगह नहीं लगी जहाँ वे खुशी से जाएँ। चौथी कक्षा तक केवल कुछ लड़कों को छोड़कर सभी लड़के रोते और चिल्लाते ही स्कूल जाया करते थे। इसके बावजूद यही स्कूल उन्हें अच्छा लगने लगता जब स्काउटिंग का अभ्यास होता था। तब पीटी सर अपना रौद्र रूप का त्याग कर स्काउटों से नीली-पीली झंडियों को ऊपर-नीचे करवाते थे। अच्छा अभ्यास होने पर पीटी सर शाबाश कहते थे। यह शब्द छात्रों के लिए फौज के तमगे जीतने के बराबर था।
7.                      लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल की छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए कुछ इस प्रकार की योजना बनाते थे-
-      गणित के मास्टर दो सौ सवाल से कम न देते थे। लेखक सोचते  थे कि अगर दस सवाल भी रोज़ हल किए जाए तो 20 दिन में सारे सवाल हल हो जाएँगे पर ऐसा सोचते-सोचते छुट्टियों का एक ही महीना बचा होता था।
-      पहले वे दस-बीस दिन खेल-कूद में बिता देते थे। उसके बाद उन्हें पिटाई का डर सताने लगता।
-      पिटाई के डर को भुलाने के लिए लेखक योजना बनाते कि दस की जगह 10 की 15 सवाल भी रोज़ हल किए जा सकते हैं।
-      ऐसा हिसाब लगाते ही छुट्टियाँ और कम होती जाती।
-      कई साथी ऐसे भी थे जो पाठ को पूरा करने के बजाय मास्टरों की मार को ही सस्ता सौदा मानते थे।
-      छुट्टियों का काम पूरा न कर पाने की स्थिति में लेखक ओमा की तरह बहादूर बनने कि कल्पना करता।
8.                      पीटी सर का नाम प्रीतमचंद है- पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर के चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं।
-      बाह्य व्यक्तित्व – पीटी सर का कद ठिगना है। उनका शरीर दुबला-पतला पर गठीला है। उनका चेहरा दागों से भरा हुआ है। उनकी आँखें बाज़ के समान तेज़ हैं। वे खाकी वर्दी पहने रहते हैं। उनके पैरों में चमड़े के चौड़े पंजों वाले बूट होते थे।
-      कठोर स्वभाव- पीटी सर बहुत कठोर स्वभाव के हैं। उन्हें स्कूल में कभी भी किसी ने मुस्कराते हुए नहीं देखा था। बच्चों ने  उनके जैसा सख्त अध्यापक नहीं देखा था। किसी लड़के के द्वारा सिर इधर-उधर हिलाने पर वे शेर की तरह झपट पड़ते थे और  वे खाल खींचने के मुहावरे को भी सच कर देते थे। 
-      पक्षी प्रेमी- पीटी सर पक्षियों से बहुत प्रेम करते थे इसीलिए वो अपने पिंजरे में रखे दो तोतों को बादाम के दाने खिलाते थे।
9.                      छात्रों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियाँ –पाठ में बताया गया है कि स्कूल मे छात्रों को अनुशासन में रखने के लिए उन्हें भयभीत अवस्था में रखना बहुत ज़रूरी है। स्कूल के पीटी मास्टर अनुशासन छात्रों को प्रताड़ित करते थे। प्रार्थना के समय या कक्षा में किसी भी प्रकार की भूल चाहे वह अनजाने में ही क्यों न हो गई हो एक अपराध माना जाता था। गृहकार्य पूरा न कर कर लाने की स्थिति में छात्रों को शारीरिक दंड दिया जाता था। इससे छात्रों का स्वतंत्र विकास नहीं हो पाता था।
-      वर्तमान की स्वीकृत मान्यताएँ- वर्तमान छात्रों को शारीरिक दंड दिया ही नहीं जा सकता यह एक अपराध बन चुका है। सरकार ने इस पर मुहर भी लगा दी है। आज छात्रों के चतुर्दिग विकास के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। नई शिक्षा नीति प्रणाली जैसे सीसीई इसका ज्वलंत उदाहरण है।
10.             स्वयं करें।
11.             क - खेल-कूद सभी बच्चों के लिए ज़रूरी है। इससे शारीरिक और मानसिक दोनों विकास होता है। खेल-कूद एक प्रकार का व्यायाम भी है जिससे हमारा शरीर रोगरहित रहता है। खेल-कूद हमारे अंदर परस्पर सहयोग, सहनशीलता, संवेदना तथा मानवीयता आदि गुणों का भी संचार करता है।
ख - खेल-कूद के नियम- खेल के दौरान लड़ाई-झगड़ा बिलकुल नहीं करेंगे। खेल-कूद पढ़ाई की कीमत पर नहीं होगी। खेल को खेल की भावना से खेलेंगे। खेल-कूद का निर्धारित समय होना चाहिए।



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