Teesari Kasam Prahlaad Agrawaal By Avinash Ranjan Gupta


TEESARI KASAM PAATH KE KUCHH SMARANEEY BINDU BY AVINASH RANJAN GUPTA

TEESARI KASAM PAATH KA SHABDARTH click here


मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एकदो पंक्तियों में दीजिए-
1-‘तीसरी कसमफ़िल्म को कौनकौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?
2 - शैलेंद्र ने कितनी फ़िल्में बनाईं?
3 - राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए।
4 -‘तीसरी कसमफ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?
5 - फ़िल्मतीसरी कसमका निर्माण किसने किया था?
6 - राजकपूर नेमेरा नाम जोकरके निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?
7 - राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र  का चेहरा मुरझा गया?
8 - फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?

1.  -‘तीसरी कसमफ़िल्म को राष्ट्रपति स्वर्णपदक, बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएसन द्वारा  सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म चुना गया और मास्को फ़िल्म फेस्टिवल में भी इस फ़िल्म को  पुरस्कार मिला।    
2.  शैलेंद्र ने मात्र एक फ़िल्म तीसरी कसमबनाई।  
3.  राजकपूर ने संगम, मर नाम जोकर, अजंता, मैं और मेरा दोस्त, सत्यम् शिवम् सुंदरम् इत्यादि फ़िल्में बनाईं ।   
4.  इस फ़िल्म में राजकपूर ने हीरामन और वहीदा रहमान ने हीराबाई की भूमिका निभाई। ।   
5.  फ़िल्मतीसरी कसमका निर्माण शैलेंद्र ने किया था   
6.  राजकपूर नेमेरा नाम जोकरके निर्माण के समय यह सोचा भी नहीं था कि फ़िल्म का एक ही भाग बनाने में छह वर्षों का समय लग जाएगा।     
7.  तीसरी कसमकी कहानी सुनने के बाद जब राजकपूर ने गंभीरतापूर्वक अपने मेहनताने की अग्रिम राशि माँगी तो शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया। उन्हें अपने मित्र राजकपूर से ऐसी उम्मीद नहीं थी। 
8.  फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को उत्कृष्ट कलाकार मानते थे। वे मानते थे कि राजकपूर आँखों से बात करने वाले कलाकार हैं। 
 


लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1 - ‘तीसरी कसमफ़िल्म कोसैल्यूलाइड पर लिखी कविताक्यों कहा गया है?
2 - ‘तीसरी कसमफ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?
3 - शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?
4 - फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफ़ाई क्यों कर दिया जाता है?
5 - ‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’ - इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
6 - लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं?
7 - फ़िल्मश्री 420’ के गीतरातों दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँपर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की?

1.    तीसरी कसमफ़िल्म की कथा फणीशवरनाथ रेणु की अत्यंत मार्मिक साहित्यिक रचना पर बनी थी। फ़िल्म की कथा में भावनाओं का उचित व सटीक वर्णन हुआ है इसलिए इसे फ़िल्म न मानकर सैल्यूलाइड पर लिखी कविता कहा गया है
2.     तीसरी कसमफ़िल्म को खरीददार नहीं मिल रहे थे क्योंकि फ़िल्म खरीददार अपने आर्थिक लाभ का हिसाब लगाकर ही फ़िल्म खरीदते हैं तथा व्यापारिक प्रवृत्ति वाले इस फ़िल्म की संवेदना व कलात्मकता को समझ नहीं पाए। दूसरी बात इस फ़िल्म का प्रचार भी नहीं हुआ था। 
3.    शैलेंद्र उत्कृष्ट कोटि के कवि थे। उनका मानना था कि कलाकार का कर्तव्य है कि वह दर्शकों पर उनकी रुचि की आड़ में उथलापन न थोंपे बल्कि दर्शकों की रुचियों का परिष्कार करें 
4.    फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफ़ाई कर दिया जाता है ताकि दर्शकों का भावनात्मक शोषण हो सके। इस प्रकार दर्शकों की संख्या व फ़िल्म की प्रसिद्धि दोनों को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। हर भावना को बढ़ा-चढ़ा कर प्रदर्शित कर फ़िल्म को अधिक व्यावसायिक बनाया जाता है।
5.    शैलेंद्र और राजकपूर में मित्रता थी। जब शैलेंद्र तीसरी कसमकी कहानी सुनाने गए तो कहानी सुनने के बाद उत्साहपूर्वक काम करना स्वीकार कर लिया। शैलेंद्र की कहानी ने राजकपूर की अभिनय कला को नए मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया। इयसलिए कहा गया है, “शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं।
6.    शोमैन से अभिप्राय उस कलाकार से है जो अपनी कलकारी और अभिनय की भिन्नता से विशाल फ़लक पर अपनी पहचान बनाकर दर्शकों के हृदय पर राज कर सके। राजकपूर इसी प्रकार के कलाकार थे। वे अभिनय कला की उन ऊँचाइयों तक पहुँच गए थे कि जिस भी किरदार को निभाते उसी में पूरी तरह समा जाते और अपनी अमिट छाप छोड़ देते।  
7.    संगीतकार जयकिशन का मानना था कि दर्शक दस दिशाएँ नहीं समझ सकते। वे तो मात्र चार दिशाएँ ही समझ सकते हैं। इसलिए शैलेंद्र को अपने गीत की उस पंक्ति में दस दिशाको बदलकर चार दिशाकरना चाहिए ।
लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1 - राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?
2 - ‘तीसरी कसममें राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है? स्पष्ट कीजिए।
3 - लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कितीसरी कसमने साहित्यरचना के साथ शतप्रतिशत न्याय किया है?
4 - शैलेंद्र  के गीतों की क्या विशेषताएँ हैं? अपने शब्दों में लिखिए।
5 - फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
6 - शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है - कैसे? स्पष्ट कीजिए।
7 - लेखक के इस कथन से कितीसरी कसमफ़िल्म कोई सच्चा कविहृदय ही बना सकता      था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।

1.    राजकपूर ने शैलेंद्र को पहले ही फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह कर दिया था। यह फ़िल्म भावनाप्रधान थी तथा शैलेन्द्र आदर्शवादी भावुक कवि। लेकिन शैलेंद्र को अपार धन-संपत्ति की कामना नहीं थी। वे तो एक अच्छी फ़िल्म बनाकर आत्मसंतुष्टि करना चाहते थे। या ऐसा कहा जा सकता है कि वे एक महान रचना का निर्माण करना चाहते थे।    
2.    राजकपूर एक उत्कृष्ट कोटि के कलाकार थे तथा उनका अभिनय चरमोत्कर्ष पर था। उनका व्यक्तित्व महिमामय था। फ़िल्म तीसरी कसममें उन्होंने देहाती भावुक गाड़ीवान की भूमिका को इस प्रकार निभाया कि फ़िल्म के पर्दे पर वे पूरी तरह से प्रेम की भाषा समझने वाले भोले-भाले गाड़ीवान ही लगते हैं। उस समय दर्शक उन्हें राजकपूर की तरह नहीं अपितु हीरामन की तरह मानते  हैं। वे पूरी तरह से हीरामन से एकाकार हो गए।   
3.    तीसरी कसमफ़िल्म फणीश्वरनाथ रेणु की रचना पर रची गई है। फणीश्वरनाथ रेणु एक महान साहित्यकार थे और साहित्य का अर्थ ही होता है जिससे सभका भला हो सबका हित हो। इस फ़िल्म में कथा की सभी बारीकियों का ध्यान रखा गया है। कथा में हीरामन और हीरबाई के दुख का मानवीय व सहज रूप चित्रित किया गया है। कहीं भी दर्शकों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया है। इसलिए लेखक ने ऐसा लिखा है कितीसरी कसमने साहित्यरचना के साथ शतप्रतिशत न्याय किया है
4.    शैलेंद्र ने अपने गीतों में सरल व सहज ढंग से भावनाओं को अभिव्यक्त किया है। उनके गीतों में कहीं भी क्लिष्टता नहीं है। उनके गीतों मेन जीवन की गहराई, साहित्य का सार और जीवन की उदात्तता झलकती है। इन्हीं कारणों की वजह से उनके गीत बहुत लोकप्रिय हुए।  
5.    शैलेंद्र उस समय और आज के व्यावसायिक प्रवृत्ति वाले निर्माताओं से काफी अलग थे। तीसरी कसमउनकी पहली और अंतिम फ़िल्म थी। वे एक साहित्यप्रेमी भावुक कवि थे। उन्होंने धन कमाने की इच्छा से यह फ़िल्म नहीं बनाई थी बल्कि वे तो एक महान रचना करना चाहते थे। उन्होंने हीरामन और हीरबाई नामक पात्रों के माध्यम से प्रेम की महानता का बखान किया है। इसी वजह से उनकी फ़िल्म को कई पुरस्कार भी मिले।
6.    शैलेंद्र गीतकार थे और भावुक कवि भी। व्यक्तिगत जीवन में उनके भावों और विचारों में सागर-सी गहराई थी। उनके आदर्श और भावनाएँ उनकी रचनाओं में झलकते हैं। उन्होंने कभी भी धन-संपत्ति को महत्त्व नहीं दिया। यही सादगी और प्रेम-भावना उनकी फ़िल्म में भी दिखाई पड़ती है। इस फ़िल्म में कहीं भी दर्शकों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया है।
7.    लेखक का यह कथन उपयुक्त है कि तीसरी कसमफ़िल्म कोई सच्चा कविहृदय ही बना सकता था। इसका कारण यह है कि यह भाव प्रधान कथा है। इस फ़िल्म में मूल से लेकर अंत तक केवल सादगी को ही उकेरा गया है जो केवल एक कवि हृदय के पास ही हो सकता है। और सबसे बड़ी बात इस फ़िल्म को धन कमाने की इच्छा से नहीं बनाया गया था जिसकी वजह से कहीं भी किसी भी प्रकार की अश्लीलता का प्रदर्शन नहीं किया गया है। इस वजह से यह फ़िल्म एक विशिष्ट स्थान ग्रहण करने में सक्षम होती है।    
लिखित
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1 - - - - वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्मसंतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।
2 - उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।
3 - व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।
4 - दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।
5 - उनके गीत भावप्रवण थे - दुरूह नहीं।


1.    इस कथन का आशय यह है कि राजकपूर ने शैलेंद्र को पहले ही फ़िल्म की असफलता से होने वाले खतरों के बारे में आगाह किया था फिर भी शैलेंद्र फ़िल्म बनाने के अपने फैसले पर कायम रहे। शैलेंद्र तो एक महान रचना का निर्माण कर आत्मसंतुष्टि चाहते थे। धन की लालशा तो उन्हें रत्ती भर भी नहीं थी।
2.    शैलेंद्र का मानना था कि लेखक का कर्तव्य होता है कि वह सामाजिक स्तर को ध्यान में रखते हुए समाजोपयोगी रचना करें। दर्शकों की रुचि की आड़ लेकर सस्ती और अल्पायु लोकप्रियता तथा धन अर्जित न करें। ऐसा होने पर समाज की अस्मिता और सांस्कृतिक मूल्यों का पतन होता है।         
3.    इस विचार का आशय यह है कि किसी भी प्रकार की व्यथा मनुष्य को आगे बढ़ने और अनुभव ज्ञान में मदद करती है। शैलेन्द्र स्वयं गीतकार थे। फ़िल्मी जगत से उनका अटूट नाता था। बावजूद इसके वे इस दुनिया के चकाचौंध में बिलकुल अंधे नहीं हुए। फ़िल्म निर्माण के खतरों को जानने के बाद भी वे अपने फैसले पर अटल रहे।
4.    इस कथन का आशय यह है कि इस फ़िल्म के खरीददार नहीं मिल रहे थे क्योंकि सभी खरीददार अपने लाभ का अनुमान लगाकर ही फ़िल्म खरीदते थे। व्यावसायिक प्रवृत्ति वाले खरीददार भावनाओं को नहीं समझ सकते। इस फ़िल्म की करुणा को समझने के लिए व्यवसायी हृदय नहीं एक संवेदनशील हृदय की आवश्यकता पड़ती थी।
5.    शैलेंद्र के गीत सरल और भावमय थे। ये गीत कठिन नहीं बल्कि इनमें भावों और विचारों की गहराई समाई हुई थी।


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