संचार भाषा Sanchar BHasha

 

संचार भाषा

संचार क्या है?

संचार, मनुष्य की प्रथम आवश्यकता है। शिशु जन्म लेते ही सर्वप्रथम संचार के जरिये ही अपनी संवेदना प्रकट करता है। बच्चा रोकर चिकित्सक को अपने अस्वस्थ होने का अहसास कराता है। उसके पश्चात् भूख लगने पर वह रोकर ही माँ के समक्ष अपनी भावनाओं को प्रकट करता है। पेट में दर्द हो या नींद लग रही हो या फिर कोई दूसरी समस्या हो, बच्चा सिर्फ रोकर ही अपनी बात कहता। यह उसकी भाषाहोती है।

संचार के विविध रूप

दरअसल भाषासंचार का एक उपकरण है। यह भाषा विभिन्न रूपों में हो सकती है, किन्तु इसके अलावा भी संचार के लिए भिन्न-भिन्न भाषाओं का प्रयोग किया जाता है, जैसे ध्वनि के जरिये, चित्र के जरिये, इशारों के जरिये, संकेतों के जरिये, कूट-भाषा आदि।

ध्वनि के माध्यम से संचार

ध्वनि की संचारी भाषा में शब्दों का प्रयोग भी किया जा सकता है किन्तु शब्दों के बिना भी ध्वनि अर्थ संप्रेषित करती है । उदाहरण के लिए शहनाई की धुन शादी के आयोजन को संप्रेषित करती है, अरब देशों में बजाए जाने वाले संगीत से यह स्पष्ट पहचान होती है कि खाड़ी देशों के भौगोलिक क्षेत्र से संबंधित है, घंटी की धुन यह जाहिर करती है कि पूजा या आरती की जा रही है, नाल और मृदंग के स्वर दक्षिण भारत के द्योतक होते हैं। यानी मनोभावों के अनुरूप ध्वनि अपना अर्थ संचरित करती है।

चित्र के माध्यम से संचार

चित्रों की संचारी-भाषा को चित्रों के माध्यम को अभिव्यक्त किया जाता है। चित्र चाहे बच्चे बनाएँ किर कोई मशहूर चित्रकार बनाए, वह अपनी भावनाओं को ही अभिव्यक्त करता है। ये चित्र लक्ष्य-समूह तक भावनाओं को संचारित करने के लिए भाषा की भूमिका अदा करते हैं। कार्टून में प्रायः कार्टूनिस्ट अपनी भावनाओं को पाठकों तक पहुँचाते हैं। बचपन में खींचे गए छायाचित्र बरसों बाद भी उसकी भावनाओं को संप्रेषित करने में सक्षम होते हैं। चित्र भले ही मूक हों, उनका भावार्थ कुछ भी हो किन्तु वह प्रतिक्षण संचार की भूमिका में जुटे होते हैं। पहले जब बोलती फिल्मों का आविष्कार नहीं हुआ था तब मूक फिल्में ही भावनाओं को संचारित करती थीं और वे बेहद लोकप्रिय थीं। बोलती फिल्मों के बाद संचार ने विकसित रूप धारण किया। इसी तरह नक्शों की भाषा होती है जो मात्र लकीरों से अपनी बात कहती है। इन लकीरों के जरिये संदेश का संचार होता है।

गुप्त कार्यों के लिए संचार भाषा

गुप्त कार्यों के लिए कूट-भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसमें जिस लिपि का प्रयोग किया जाता है वह सार्वभौम नहीं होती जिससे हर व्यक्ति उसके संदेश को न जान पाए। मात्र लक्ष्य-समूह ही अर्थ को समझ सके। आज से कई बरस पहले तार भेजने के लिये मात्र बिंदुओं का प्रयोग किया जाता था और बिंदुओं की भाषा से संदेशों को संचारित किया जाता था। आज भी कंप्यूटर में व्हाट्सेप आने वाले संदेश एंड टू एंड एनक्रिप्शन तकनीक के साथ भेजे और प्राप्त किए जाते हैं।

विशिष्ट संचार भाषा

एक विशिष्ट किस्म की संचार भाषा है-घ्राण-संचार। मानव की तीन प्रमुख इन्द्रियों में से घ्राण-शक्तिका प्रयोग भी संचार के लिए किया जाता है। गंध के माध्यम से लोग अपने आस-पास की स्थिति का बोध कर लेते हैं, सूँघकर किसी खाद्य सामग्री की गुणवत्ता का पता लगा सकते हैं। सेना में स्निफर कुत्तों की मदद से विस्फोटक सामग्री का पता लगाया जाता है तो घटना स्थल पर अपराधी के किसी वस्तु को सूँघाकर अपराधी एवं उसके गुप्त स्थान का भी पता लगाया जाता है।

प्रागैतिहासिक युग में संचार

प्रागैतिहासिक युग में संचार के लिए शिलाओं का प्रयोग किया जाता था एवं उन पर शिलालेख लिखे जाते थे। सम्राट अशोक के युग में लौह-स्तंभों और विभिन्न वस्तुओं पर संदेशों का उत्कीर्णन किया जाता था। राजतंत्र में उद्घोषणाएँ कराने के लिए मुनादी कराई जाती थी। एक स्थान से दूसरे स्थान तक संदेश पहुँचाने के लिए हरकारे, दूत या फिर कबूतर या बाज की भी मदद ली जाती थी। 

वर्तमान युग में संचार

ज्यों-ज्यों विज्ञान ने विकास किया, त्यों-त्यों संचार के उपकरणों ने परिमार्जित रूप विकसित किया। टेलीफोन, सिनेमा, स्लाइड आदि उपकरण अब पुराने दौर की वस्तुएँ हो चुकी हैं। अब तो इंटरनेट, बेवसाइट, एस एम एस जैसी अत्याधुनिक तीव्रगामी संचार सुविधाएँ उपलब्ध हो चुकी हैं जिसने सम्पूर्ण विश्व को एक घर बना दिया है। आज संदेश को हजारों किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए कुछ क्षणों का समय लगता है। इससे न केवल जन संचार की प्रक्रिया विशिष्ट हुई है बल्कि उससे गति मिली है। वीडियो कांफ्रेसिंग को उपग्रह-संप्रेषण के जरिये घर बैठे देखा जा सकता है, जैसा कि क्रिकेट मैच प्रसारण में हम और आप देखते हैं। विज्ञान ने जनसंचार को अत्यन्त सरल और सुगम बना दिया है।

दृष्टिबधित तथा बधिर लोगों के लिए संचार

विकासशील सोच ने मनुष्य की इन्द्रियों के असफल हो जाने पर भी संचार को बरकरार रखने का कार्य किया है। प्राचीन युग में जहाँ नेत्रहीन पढ़ नहीं सकते थे, वहीं आज ब्रेल-लिपि के जरिये नेत्रहीन शिक्षा अर्जित कर रहे हैं और समाज के विकास में अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं। बधिर लोगों के लिए पहले जहाँ सांकेतिक भाषा का प्रयोग किया जाता था आज इसके साथ-साथ विकसित किए गए श्रवण यंत्र के जरिये उन तक संदेश को पहुँचाया जा सकता है।  

 

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