पुराण Puran ka sampoorn adhyayan

 

पुराण शब्द का अर्थ

पुराण शब्द का शाब्दिक अर्थ है – बहुत प्राचीन काल का या पुरातन

पुराण शब्द की परिभाषा

पुराण वह महाकाव्य है जिसके अंतर्गत विभिन्न सर्गों और स्कंधों में सृष्टि के प्रारंभ और विकास की युग-युगांतरव्यापी कथा कही गई हो। उसमें ईश्वर के अवतारों या अवतारी पुरुषों, महात्माओं या ऋषि-मुनियों की अनेक कथाएँ ईश्वर के किसी विशिष्ट रूप के ऐश्वर्य के प्रतिपादन के निमित्त वर्णित की गई हों जिनके अंतर्गत भक्ति की महिमा तथा सज्जनों की विजय और दुर्जनों के पराभव के द्वारा सद्गुणों की समाज में प्रतिष्ठा की गई हो उसे ही पुराण कहते हैं।

पुराणों की शुरुआत कैसे होती है?

प्रायः पुराण का विकास किसी के प्रश्न के उत्तर में या शंकानिवारण के रूप में विविध आख्यानों के द्वारा होता है और अनेक आख्यान प्रतिपाद्य सिद्धांत की पुष्टि और देवी ऐश्वर्य की महत्ता का चित्रण करते हुए व्यवस्थित ढंग से समाप्त होकर कथा की शृंखला को आगे बढ़ाते हैं।

महापुराण क्या है?

जो आख्यान अत्यंत विस्तृत और महत्त्वपूर्ण होते हैं उन्हें महापुराण की संज्ञा दी जाती है-जैसे श्रीमद्भागवत महापुराण में मंगलाचरण से कथा प्रारंभ होती है और प्रत्येक अध्याय के उपसंहार में प्रसंग का निर्देशन होता है । साथ में पुराण-माहात्म्य का अनुकथन भी रहता है। बीच के वर्णन भी प्रायः वार्तालाप के रूप में होते हैं, परंतु उनमें किसी वस्तु, भाव, तथ्य या सिद्धांत का अत्यंत विशद रूप में विस्तार के साथ प्रतिपादन होता है ।

पुराणग किसे कहते हैं?

पुराणों की कथाएँ पढ़ने अथवा पढ़कर दूसरों को सुनानेवाला पंडित या व्यास पुराणग कहलाता है।

पुराण पुरुष किसे कहते हैं?

भगवान विष्णु को ही पुराण पुरुष कहते हैं। आम बोलचाल की भाषा में किसी वृद्ध व्यक्ति को भी पुराण पुरुष कह सकते हैं।

पुराणों की संख्या कितनी है?

पुराणों की संख्या अठारह है - -ब्रहापुराण, विष्णुपुराण, वायु या शिवपुराण, पद्मपुराण, देवी भागवत या श्रीमद्भागवत, नारदपुराण, मार्कण्डेयपुराण, अग्निपुराण, भविष्यपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, लिंग या नृसिंहपुराण, वाराहपुराण, स्कंदपुराण, वामनपुराण, कूर्मपुराण, मत्स्यपुराण, गरुड़पुराण और ब्रह्माण्डपुराण ।

उपपुराणों की संख्या कितनी है?

उपपुराणों की संख्या भी अठारह है, ये पुराणों के बाद बने माने जाते हैं - सनत्कुमार, नारसिंह, नारदी, शिव, दुर्वासा, कपिल, मानव, औशनस्, वरुण, कालिका, शांब, नंदा, सौर, पराशर, आदित्य, माहेश्वर, भार्गव और वाशिष्ठ ।

पुराणों के रचियता कौन हैं?

साधारणत:  वेद-मत्रों के संग्रहकर्ता वेदव्यास ही इन सब पुराणों के रचयिता माने जाते हैं।

पुराणों का विषय क्या होता है?

साहित्यकारों के अनुसार पुराणों मे पाँच बातें होती हैं -सर्ग अर्थात् सृष्टि, प्रतिसर्ग अर्थात् प्रलय और उसके उपरांत फिर से होनेवाली सृष्टि, वशों, मन्वन्तरों और वंशानुचरित की बातों का वर्णन , परन्तु कुछ पुराणों में इस प्रकार की बातों के सिवा राजनीति राजधर्म, प्रजा-धर्म, आयुर्वेद , व्याकरण, शस्त्र-विद्या, साहित्य, अवतारों देवी-देवताओं आदि की कथाएँ तथा इसी प्रकार की और भी बहुत-सी बातें मिलती हैं।

क्या अन्य देशों में पुराणों की प्रथा है?

चीन, यूनान या रोम के पुराण भी उपलब्ध हैं लेकिन उन्हें मिथ (Myth), कहते हैं। इसके अतिरिक्त जैन या बौद्ध पुराण भी उपलब्ध हैं।

 

 

 

 

 

 

 

काव्यशास्त्र

प्रबंध-काव्य-वह पद्य-रचना है जिसके छन्द कथासूत्रं की व्यवस्था से पिरोये रहते हैं, उसके छन्दों के क्रम को वदला नहीं जा सकता।

निवन्ध-काव्य-वह पद्य-रचना है जिसके अन्तर्गत छन्द किसी विचार-सूत्र या भावधारा से व्यवस्थित रहते हैं। इस रचना में भाव या विचार का विकास क्रमशः दिखलायी देता है, इसी की निवद्धता रहती है।

निर्बन्ध या मुक्तक काव्य-वह पद्य-रचना है जिसके छन्द स्वतःपूर्ण और स्वतन्त्र रहते हैं और किसी भी क्रम से संचलित किये जा सकते हैं । वे क्रम के किसी आन्तरिक नियम से बंधे नहीं होते हैं। प्रबंध-काव्य के भेद

प्रबंध-काव्य में संगठन कथानक के द्वारा किया जाता है। हम देखते हैं कि कहींकहीं तो किसी महापुरुप के जीवन की एक झाँकी तथा घटना ही वर्णित करना अभीष्ट होता है और कहीं-कहीं पूर्ण जीवन का व्यापक चित्रण मिलता है। इस दृष्टि से प्रबंध कान्य दो रूपों में देखा जा सकता है-एक महाप्रबंध और दूसरा खंड-प्रबंध या खण्डकाव्य । महाप्रबंध में पूर्णता के साथ जीवन के विविध अंगों और घटनाओं का विशद, व्यापक और सजीव चित्रण होता है। इसके लिए महाप्रबन्ध के नायक अथवा नायकों को उत्कृष्ट और उदात्त चरिन का होना आवश्यक है। महाप्रबंध के तीन रूप देखे जा सकते हैं :

१. पुराण, २. आल्यान, ३. महाकाव्य ।

१. पुराण

वह महाप्रबंध है जिसके अन्तर्गत विभिन्न सर्गो और स्कंधों में सृष्टि के प्रारंभ और विकास की युग-युगांतरव्यापी कथा कही गई हो। उसमें ईश्वर के अवतारों या अवतारी पुरुषों, महात्माओं या ऋषि-मुनियों की अनेक कथाएँ ईश्वर के किसी विशिष्ट रूप के ऐश्वर्य के प्रतिपादन के निमित्त वर्णित की गई हों जिनके अंतर्गत भक्ति की महिमा तथा सज्जनों की विजय और दुर्जनों के पराभव के द्वारा सद्गुणों की समाज में प्रतिष्ठा की गई हो उसे ही पुराण कहते हैं। पुराण अत्यंत विस्तृत महाप्रबंध है। इसमें अनेक स्कंध होते हैं और एक-एक स्कंध में अनेक अध्याय भी होते हैं। प्रायः पुराण का विकास किसी के प्रश्न के उत्तर में या शंकानिवारण के रूप में विविध आख्यानों के द्वारा होता है और अनेक आख्यान प्रतिपाद्य सिद्धांत की पुष्टि और देवी ऐश्वर्य की महत्ता का चित्रण

१. सर्गश्च प्रतिसंहारः कल्पो मन्वन्तराणि वंशविधिः । जगतो यत्र निवद्धं तत् विज्ञेयम्पुराणमिति ॥

--काव्यमीमांसा । सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च ।। वंशानुचरितं विप्र लक्षणञ्च विदुर्बुधाः ।।

-देवी भागवत ।

 

काव्य के विविध रूप और उनका संक्षित परिचयं

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करते हुए व्यवस्थित ढंग से समाप्त होकर कथा को शृखला को आगे बढ़ाते हैं। जो अत्यंत विस्तृत और महत्त्वपूर्ण होते हैं उन्हें महापुराण की संज्ञा दी जाती है-जैसे श्रीमद्भागवत महापुराण में मंगलाचरण से कथा प्रारंभ होती है और प्रत्येक अध्याय के उपसंहार में प्रसंग का निर्देशन होता है । साथ में पुराण-माहात्म्य का अनुकथन भी रहता है। बीच के वर्णन भी प्रायः वार्तालाप के रूप में होते हैं, परंतु उनमें किसी वस्तु, भाव, तथ्य या सिद्धांत का अत्यंत विशद रूप में विस्तार के साथ प्रतिपादन होता है । पुराण के पात्र प्रायः प्रागैतिहासिक हैं। पात्रों के अलौकिक और आश्चर्यजनक कृत्यों का वर्णन बड़ा ही रोचक और कुतूहलवर्द्धक होता है।

भारतीय साहित्य में अठारह पुराण और अठारह उपपुराण माने गए हैं जिनके नाम ये हैं---अठारह पुराण-ब्रहापुराण, विष्णुपुराण, शिवपुराण, पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत, नारदपुराण, मार्कण्डेयपुराण, अग्निपुराण, भविष्यपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, लिंगपुराण, वाराहपुराण, स्कंदपुराण, वामनपुराण, कूर्मपुराण, मत्स्यपुराण, गरुडपुराण और ब्रह्माण्डपुराण ।

अठारह उपपुराण--ये पुराणों के बाद बने माने जाते हैं सनत्कुमार, नारसिंह, नारदी, शिव, दुर्वासा, कपिल, मानव, औशनस्, वरुण, कालिका, गांव, नंदा, सौर, पराशर, आदित्य, माहेश्वर, भार्गव और वाशिष्ट ।

 

२. आख्यान

आख्यान वह विस्तृत प्रबन्ध है जिसमें प्रेम, नीति, भक्ति, वीरता आदि के निरूपण के लिए काल्पनिक रोचक कथानक का सरस मधुर शैली में वर्णन होता है। इसके अन्तर्गत भी विभिन्न प्रसंग या खंड हो सकते हैं। आख्यान को प्रामाणिक-सा बनाने के लिए इसमें कतिपय ऐतिहासिक स्थानों और नामों का समावेश भी कर लिया जाता है। इसमें एक प्रधान या प्रमुख कथा मीर अन्य कुछ गौण कथाएँ संघटित रहती हैं। इसके प्रमुख भेद प्रेमाख्यान, नीत्याख्यान, साहसिक आख्यान आदि हैं। जैसे इन्द्रावती. मृगावती, नलोपाख्यान, ढोला मारूरा दूहा, छिताई वार्ता आदि । ३. चरित काव्य

किसी व्यक्ति का, विशेषरूप से वीर या महापुरुप का, घटनाक्रम के अनुसार जीवनचरित लिखा जाता है। इसका एक रूप आत्मचरितात्मक भी हो सकता है। हिन्दी में इस प्रकार के वहत से काव्य हैं। जैसे :-चौरसिंहदेव-चरित, जहाँगीर-जस-चंद्रिका, रतनबावनी, सूजान-चरित, छत्रप्रकाश । वे परिचयी काव्य भी इसमें ला सकते हैं जिनमें काव्यगत विशेपताएं विद्यमान हों। आत्मचरितात्मक काव्यों में से बनारसीदास जैन का 'अर्धकथानक' प्रसिद्ध काव्य है। ४. महाकाव्य

महाकाव्य के स्वरूप और धारणा का बहुत विवेचन हुमा है । पहले यहां पर हम

 

 

पर जिनके रचयिता महान कवि होते हैं। (मिथ) जैसे-~-चीन, यूनान या रोम के पुराण, जैन या बौद्ध पुराण। विशेष-ऐसी कथानों में प्राय प्राकृतिक घटनाओ, मानव जाति की उत्पत्ति, सृष्टि की रचना, प्राचीन धार्मिक कृत्यो और सामाजिक रीतिरिवाजों के कुछ अत्युक्तिपूर्ण विवरण होते है, तथा देवी-देवताओं और बीर पुरुषो के जीवन-वृत्त होते हैं। ३. भारतीय धार्मिक क्षेत्र में, उक्त प्रकार के वे विशिष्ट बहुत बडे-बड़े काव्य-ग्रंथ, जिनमे प्राचीन इतिहास की बहुत-सी घटनाओं के साथ-साथ सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और लय, देवी-देवताओं, दानवों, ऋषिमहर्षियों, महाराजामों, महापुरुषों आदि के गुणों तथा पराक्रमों की बहुतसी बाते, और अनेक राजबशों की बशावलियाँ आदि भी दी गई हैं, और धार्मिक दृष्टि से जिनकी गणना पांचबे वेद के रूप मे होती है। विशेष-हिंदू धर्म मे कुल १८ पुराण माने गये हैं। प्राय सभी पुराणो में शेष सभी पुराणों के नाम और श्लोक-सस्याएँ थोडे-बहुत अन्तर से दी हैं। पुराणों के नाम प्राय ये हैं ब्रह्म, पन, विष्णु, वायु अथवा शिव, लिंग अथवा नूसिंह, गरुड़, नारद, स्कद,अग्नि, श्रीमद्भागवत अथवा देवी भागवत, मार्कण्डेय, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, बामन, वाराह, मत्स्य, कूर्म

और ब्रह्माण्ड पुराण। साहित्यकारो के अनुसार पुराणों मे पांच बाते होती है-सर्ग अर्थात् सृष्टि, प्रतिसर्ग अर्थात् प्रलय और उसके उपरांत फिर से होनेवाली सृष्टि, वशों, मन्वन्तरो और बशानुचरित की बातों का वर्णन , परन्तु कुछ पुराणो मे इस प्रकार की बातो के सिवा राजनीति राजमर्म, प्रजा-धर्म, आयर्वेद , व्याकरण, शस्त्र-विद्या, साहित्य, अवतारों देवी-देवताओं आदि की कथाएँ तथा इसी प्रकार की और भी बहुत-सी बातें मिलती हैं। पार्मिक हिंदू प्राय विशेष भक्ति और श्रद्धा से इन पुराणों की कथाएँ सुनते हैं। साधारणत वेद-मत्रों के सग्रहकर्ता वेदव्यास ही इन सब पुराणों के भी रचयिता माने जाते हैं। इन १८ पुराणो के सिवा १८ उप-पुराण मी माने गये हैं। और जैन तथा बौद्ध-धर्मों मे भी इस प्रकार के कुछ पुराण बने हैं। आधुनिक विद्वानों का मत है कि भिन्न-भिन्न पुराण भिन्न-भिन्न समयों में बने हैं। कुछ प्राचीन पुराणो के नष्ट हो जाने पर उनके स्थान पर उन्ही के नाम से कुछ नये पुराण भी बने हैं। और इनमें बहुत-सी बातें समय-समय पर घटती-बढ़ती रही हैं। ४. उक्त अन्यों के आधार पर १८ की सख्या का वाचक शब्द। ५ शिव ।

६. कापिण नाम का पुराना सिक्का। पुराण-कल्प-पु० - पुराकल्प। (दे०) पुराणग-पु०[स. पुराण/ गम् (जाना)+] १. पुराणो की कथाएँ पढ़ने अथवा पढ़कर दूसरों को सुनानेवाला पंडित या व्यास।

पुराणता-स्त्री० [स. पुराण+तल-टाप्] १ पुराण का भाव । २ बहुत

ही प्राचीन होने की अवस्था या भाव। (एन्टिक्विटी)

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