पुनरुक्ति-प्रकाश अलंकार Punarukti Prakash Alankaar
पुनरुक्ति-प्रकाश अलंकार
एक सब्द
बहु बार जहँ, परै रुचिरता अर्थ ।
पुनरुक्ती-परकास
सो, बरनै बुद्धि-समर्थ ॥
विवरण-भाव
को अधिक रुचिकर बनाने के लिए एक ही शब्द कई बार कहा जाए तो वहाँ पुनरुक्ति-प्रकाश अलंकार होता है, जैसे
.१-दोहा
बनि-बनि-बनि बनिता चलीं, गनि-गनि-गनि डगदेत ।
धनि-धनि-धनि अखियाँ, सुछवि सनि-सनि-सनि
सुख लेत।।
भरत बाहु
बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुँ
जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार।।
- (पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार)
तात
कपिन्ह सब निसिचर मारे।
महा महा
जोधा संघारे।।
महा
महा(पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार)
यह बृतांत
दसानन सुनेऊ।
अति बिषाद
पुनि पुनि सिर धुनेऊ।।
पुनि
पुनि(पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार)
लेकिन इससे
भाषा के साथ
साथ-
बात और
भी पेचीदा होती
चली गई।
साथ साथ
(पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार)
हँसते हैं
छोटे पौधे लघुभार -
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से
छोटे ही हैं
शोभा पाते।
हिल-हिल (पुनरुक्ति
प्रकाश अलंकार)
खिल-खिल(पुनरुक्ति प्रकाश
अलंकार)
मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना—बना
कितने जग रोज़
मिटाता;
बना—बना (पुनरुक्ति
प्रकाश अलंकार)
यह सोच
थका दिन का
पंथी भी
जल्दी—जल्दी चलता
है!
दिन जल्दी—जल्दी
ढलता है!
जल्दी—जल्दी(पुनरुक्ति प्रकाश)
रक्षाबंधन की सुबह रस की
पुतली
छायी है घटा गगन की
हलकी—हलकी
नहला के छलके—छलके निर्मल
जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी
करके
सूचना-अंग्रेज़ी
में इस अलंकार को 'टॉटोलोजी' (Tautology) कहेंगे । फारसी तथा उर्दू में 'तजनीस मुकर्रर' कहते हैं।
पुनरुक्ति
प्रकाश और वीप्सा अलंकार में अंतर
पुनरुक्ति
अलंकार द्वारा वक्तव्य की पुष्टि होती है और वीप्सा द्वारा मन का आकस्मिक भाव
स्पष्ट होता है। यही पुनरुक्ति अलंकार और वीप्सा अलंकार में अंतर होता है।
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