प्रयोजनमूलक हिंदी को जानने की जरूरत क्या है?
प्रयोजनमूलक हिंदी को जानने की जरूरत क्या है?
आपके मन में प्रश्न उठ सकता है कि प्रयोजनमूलक हिंदी को
जानने की जरूरत क्या है। जब हम हिंदी भाषा को पढ़ना-लिखना जानते हैं, उसमें
रचित साहित्य रुचि से पढ़ते हैं तो फिर हमारा भाषा ज्ञान पर्याप्त है। ऐसी स्थिति
में प्रयोजनमूलक हिंदी हमारे लिए क्यों प्रासंगिक है? हाँ, यह सही है
कि किसी भाषा को लिखना-बोलना जानने पर आप उसके जानकार कहे जा सकते हैं, और उसका
साहित्य पढ़कर आप उस भाषा की विविध भाव-भंगिमाओं से परिचित भी हो सकते हैं। लकतु
साहित्य भाषा का एक पक्ष होता है। उसमें उस भाषा को बोलने वालों के जीवनानुभव, आशाएँ और
आकांक्षाएँ निहित होती हैं। पर यह उनके जीवन का एक पक्ष होता है। उनके जीवन का
दूसरा पक्ष होता है उनका सामाजिक व्यवहार, उनके
सामाजिक कार्यकलाप और इस व्यवहार और कार्यकलापों का माध्यम प्रयोजनमूलक भाषा होती
है। इसलिए भाषा का प्रयोजनमूलक पक्ष भी उसके साहित्यिक पक्ष से कम महत्त्वपूर्ण नहीं
होता। इस बात को आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं। बी.ए. के विद्यार्थी के रूप में आप
हिंदी, अंग्रेज़ी या कोअ अन्य भाषा पढ़ते हैं। भाषा के
पर्चे में पूछे गए व्याकरण संबंधी या साहित्य संबंधी सवालों के सही उत्तर देना
आपके लिए जरूरी है। लेकिन आपकी भाषा की ज़रूरत यहह्ल खत्म नहीं हो जाती। इतिहास, राजनीतिविज्ञान, वाणि, विज्ञान
अथवा अर्थशास्त्र् के प्रश्नपत्रें में पूछे गए सवालों का उत्तर देने के लिए भी
आपको एक माध्यम भाषा की जरूरत पड़ती है। यह माध्यम भाषा - चाहे वह अंग्रेज़ी हो या
हिंदी - आपको इतनी अच्छी तरह से आनी चाहिए कि आपने जो कुछ पढ़ा है, उसे समझ
सकें और परीक्षा में सही ढंग से उत्तर लिख सकें। यदि आप वाणिज्य के विद्यार्थी हैं
तो आपको जानना होगा कि प्राप्त होने वाली और अदा की जाने वाली धनराशियों के हिसाब-किताब
को ट्टलेखाकरण’ कहा जाता है। इसी तरह, जिस चैक को बैंक भुगतान करने के इंकार करता
है उसे ‘अस्वीकृत चैक’ कहा जाता है। आप यदि सामाजिक
विज्ञान के विद्यार्थी हैं तो भी यदि आपके सामने दो शब्द हैं- ‘राष्ट्रीयता’ और ’राष्ट्रवाद’। ये दोनों ही शब्द ‘राष्ट्र’ शब्द से बने हैं, लेकिन
दोनों के बीच का अंतर आपको पता होगा, तभी आप विषय को भली-भाँति समझ सकेंगे।
एक और उदाहरण लें। यदि आपको क्रिकेट मैच का आँखों देखा हाल
सुनाने का कार्य सौंपा जाता है तो जैसे ही आप इस ज़िम्मेदारी को सँभालेंगे तुरंत ही
आपको जरूरत होगी कि क्रिकेट खेल की तकनीकी शब्दावली और इस विषय की बातचीत का
मुहावरा आपको पता हो। इस तरह जो भाषा आपकी माध्यम भाषा है उसमें विषय-विशेष की
शब्दावली और बातचीत कहने का तरीका आपको पता होना चाहिए। यह जानकारी भी भाषा के
प्रयोजनमूलक स्वरूप की जानकारी है। इस तरह प्रयोजनमूलक भाषा की ज़रूरत हम सबको जीवन
के सभी क्षेत्रों में पड़ती है।
प्रयोजन शब्द का अर्थ
‘प्रयोजन’ शब्द से तात्पर्य है कोई उद्देश्य अथवा लक्ष्य।
अतः प्रयोजनमूलक भाषा वह भाषा होगी जो किसी उद्देश्य विशेष से संबंधित हो। अतः, ‘प्रयोजनमूलक भाषा’ का तात्पर्य किसी प्रयोजन विशेष के लिए
इस्तेमाल होने वाली भाषा होता है। प्रश्न उठता है कि वह प्रयोजन क्या है? उत्तर
होगा, जीवन के विविध कार्य क्षेत्रें से संबंधित
प्रयोजन। आप जानते हैं कि दैनंदिन जीवन में हमारी विभिन्न भूमिकाएँ होती हैं, जैसे
पारिवारिक जीवन की भूमिका, व्यावसायिक जीवन की भूमिका। हमारा भाषा-व्यवहार
इस भूमिका के आधार पर निर्धारित होता है। अपने माता-पिता के रूप में या संतान के
रूप में या फिर पति-पत्नी के रूप में जो हमारा भाषा-व्यवहार होता है वह व्यवसाय के
क्षेत्र् में हमारे भाषा-व्यवहार से भिन्न होता है यानी जिस तरह की भाषा में हम अपने
माता-पिता से बात करते हैं, उस तरह की भाषा में अपने अध्यापक से अथवा सहयोगी-कर्मचारी
से बातचीत नहीं करते। पहले व्यवहार में अनौपचारिकता होती है, जबकि दूसरे
व्यवहार में औपचारिकता। इसके अलावा, आपने यह भी गौर किया होगा कि जब हम डक्चक्टर
से दवा लेने जाते हैं। या बैंक में खाता खुलवाने जाते हैं या फिर राशन कार्ड
बनवाने जाते हैं तो वहाँ हम जो बातचीत करते हैं उसकी भाषा में और अपने मित्र् अथवा
परिवारीजनों से मिलकर जो बातचीत करते हैं उस भाषा में काफी अंतर होता है। चिकित्सालय, बैंक अथवा
राशन कार्ड कार्यालय या ऐसे ही किसी अन्य कार्यालय में जिन लोगों से हमारा संपर्क
होता है, उनकी बातचीत में औपचारिकता के अलावा भी कोअ
खास बात होती है और वह खास बात होती है, उनकी विशिष्ट शब्दावली। उस स्थान अथवा कार्यालय
विशेष में कार्यरत सभी लोग जिस शब्दावली का व्यवहार करते हैं, वह उसके बाहर
आम जीवन में अक्सर प्रयुक्त नहीं होती। इस तरह, किसी
व्यवसाय अथवा कार्य क्षेत्र् के लोगों द्वारा उस व्यवसाय अथवा कार्य क्षेत्र् के
प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा प्रयोजनमूलक भाषा कहलाती है।
डक्चक्टर, वकील, वैज्ञानिक, पत्र्कार, व्यापारी आदि
के कार्य क्षेत्रें से संबंधित भाषा के विशिष्ट स्वरूप को प्रयोजनमूलक भाषा कहा
जाता है क्योंकि यह उनके व्यवसाय अथवा कार्यों के विशिष्ट प्रयोजनों के लिए
इस्तेमाल होती है। अतः यह नहीं समझना चाहिए कि किसी भाषा का प्रयोजनमूलक स्वरूप उस
भाषा के मूल रूप यानी शब्द-संरचना, पदावली अथवा अन्य व्याकरणिक रूपों से भिन्न
होता है, बल्कि भाषा के इस व्यापक रूप के भीतर ही
विद्यमान रहता है और उसके विविध क्षेत्रें में प्रयोग के आधार पर निऌमत होता है।
जैसे कानून और न्याय के क्षेत्र् में कार्यरत लोगों द्वारा प्रयुक्त भाषा रूप
विज्ञान के क्षेत्र् में प्रयुक्त भाषा रूप से अलग होगी।
प्रयोजनमूलक भाषा का अन्य नाम
जीवन के विविध क्षेत्रों में व्यवहार में लाए जाने वाले
भाषा रूप के कारण प्रयोजनमूलक भाषा को व्यावहारिक भाषा भी कहा जाता है। अंग्रेज़ी
में यह Functional
Language कहलाती है।
अतः, ध्यान रखना चाहिए कि प्रयोजनमूलक हिंदी अथवा
व्यावहारिक हिंदी एक-दूसरे का पर्याय है।
प्रयोजनमूलक भाषा का विकास क्षेत्र
जैसे-जैसे नए-नए क्षेत्रों में भाषा का प्रयोग बढ़ता है, वैसे-वैसे
भाषा में उन क्षेत्रों के अनुरूप प्रयुक्तियाँ विकसित होती हैं। इन प्रयुक्तियों
से ही भाषा का प्रयोजनमूलक स्वरूप निर्धारित होता है। आपके मन में प्रश्न उठा होगा
कि ‘प्रयुक्ति’ क्या है? चलिए
चर्चा करते हैं।
‘प्रयुक्ति’ क्या है?
‘प्रयुक्ति’ शब्द ’प्रयुक्त’ से बना है। प्रयुक्त का अर्थ है
बार-बार प्रयोग में लाया हुआ यानी लगातार प्रयोग किया जाने वाला भाषा का जो रूप
जिस क्षेत्र में लगातार प्रयुक्त होता है, उसे क्षेत्र विशेष की प्रयुक्ति कहा जाता है।
हिंदी में वस्तुतः यह शब्द अंग्रेज़ी के Register शब्द के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होता है।
‘प्रयुक्ति’ की आवश्यकता
शब्दों के अर्थ विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न होते हैं, जैसे ‘पद’ शब्द कविता में
छंद विशेष के लिए प्रयुक्त होता है, आम बोलचाल में इसका अर्थ पैर से है, व्याकरण
में इसका अर्थ अभिव्यक्ति से संबंधित है और प्रशासनिक क्षेत्र में इसका अर्थ ओहदे
से है।
Cell पशुओं या पौधे का लघुत्तम सजीव अंश; कोशिका
जेल या पुलिस थाने में क़ैदी को रखने की कोठरी
रसायनों की प्रक्रिया या प्रकाश आदि द्वारा विद्युत उत्पन्न
करने वाला यंत्र; सेल
प्रयुक्ति के क्षेत्र
हिंदी भाषा की प्रमुख वतर्मान प्रयुक्तियाँ निम्नलिखित हैं -
1- सामान्य व्यवहार या बोलचाल की हिंदी
2- साहित्यिक हिंदी
3- वाणिज्य और व्यापार के क्षेत्र में हिंदी
4- वैज्ञानिक और तकनीकी हिंदी
5- कार्यालयी हिंदी
6- विधि के क्षेत्र में हिंदी
7- सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में हिंदी
8- संचार माध्यमों में हिंदी
9- विज्ञापन के क्षेत्र में हिंदी
वाणिज्य और व्यापार के क्षेत्र में हिंदी
वाणिज्य और व्यापार का क्षेत्र् जीवन का बड़ा ही व्यापक और महत्त्वपूर्ण
क्षेत्र् होता है। इसका संबंध समाज के सभी वर्गों के व्यक्तियों से होता है। दूसरी
ओर, इसका विस्तार किसी भाषा-भाषी क्षेत्र् विशेष तक ही सीमित न
होकर अंतर्देशीय तथा अंतर्राष्ट्रीय भी होता है। हिंदी काQ़ी समय से
देश की संपर्क भाषा के रूप में प्रयुक्त होती रही है और इस संपर्क की सर्वाधिक
जरूरत व्यापार के क्षेत्र् में रही है। इसलिए इस क्षेत्र् की शब्दावली और बात कहने
का ढंग काQ़ी हद तक परंपरागत है। साथ ही औद्योगिक
प्रगति के युग में अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य और व्यापार की भाषा अंग्रेज़ी होने के
कारण आज इस क्षेत्र् में हिंदी में भी अंग्रेज़ी शब्दावली का भरपूर समावेश हुआ है।
उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्यों को पढ़िएः
‘लेखाकरण प्रणाली द्वारा समस्त वित्तीय कार्य व्यापारों को
लेखा बहियों में रिकार्ड कर लिया जाता है। लेखाकरण में दर्ज सारे लेन-देन के बिल
बीजक, रसीद, कैश मैमो
आदि के रूप में लिखित प्रमाण उपलब्ध होने चाहिए।’
यहाँ ’बहियाँ, लेन-देन’, ’बीजक’
आदि परंपरागत हिसाब-किताब की शब्दावली के साथ ही रिकार्ड’, ’बिल’, ’कैश
मैमो’ जैसे अंग्रेज़ी से लिए गए शब्द प्रयुक्त हुए हैं। लेकिन जब हम अखबार का बाजार
से संबंधित कालम पढ़ते हैं तो उनमें व्यापार की खास परंपरागत भाषा शैली भी दिखाई
देती है उदाहरण के लिए निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिएः,
‘अमर उजाला’ नई दिल्ली, 4 अक्टूबर
शेयरों में गिरावट और रूपये में कमजोरी के बीच स्थानीय आभूषण निर्माताओं की ओर से
सोने की माँग बढ़ने से सराफ़ा बाजार में सोना 555 रूपये महँगा होकर प्रति 10 ग्राम 32,030
रूपये पर पहुँच गया। औद्योगिक इकाइयों और सिक्का निर्माताओं की ओर से लिवाली बढ़ाए
जाने से चाँदी 450 रूपये महँगी होकर 39,400 रूपये प्रति किलोग्राम की हो गई।
वैज्ञानिक और तकनीकी हिंदी
हिंदी में विज्ञान की शब्दावली में प्राचीन संस्कृत शब्दों
के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक शब्दावली को ग्रहण किया गया है। हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कैलोरी
आदि ऐसे ही शब्द हैं। उदाहरण के लिए, निम्नलिखित वाक्यों को देखिएः
1 रसायनशास्त्र का एक मूलभूत नियम कहता है किसी, ‘रासायनिक पदार्थ की, उसके
शुद्ध रूप में रासायनिक संरचना सदैव एक ही रहती है।’ उदाहरण के लिए, पानी सदैव
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बना होता है जो 2:1 के अनुपात में संयुक्त होते हैं। पानी
का अणु बनाने के लिए भार के अनुसार दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग ऑक्सीजन संयुक्त
होते हैं। यह ‘स्थिर रासायनिक संरचना का नियम’ कहलाता है।
2 ऊष्मा अपने आप किसी ठंडे पदार्थ से गर्म पदार्थ की ओर नहीं
बहती यह ऊष्मा की गति का दूसरा नियम है।
कार्यालयी हिंदी
कार्यालयी हिंदी से तात्पर्य प्रशासनिक क्षेत्र में
प्रयुक्त हिंदी से है। प्रशासन का क्षेत्र चूँकि सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्र के
कार्यालयों के कामकाज से संबंधित है, अतः इस क्षेत्र में प्रयुक्त हिंदी को
कार्यालयी हिंदी कहा जाता है। इसके अंतर्गत, अऔपचारिक पत्र,
सूचना, अधिसूचना, निविदा, ज्ञापन, प्रेस विज्ञप्ति,
कार्यालय आदेश, अनुस्मारक, अंतर्विभागीय टिप्पणी, परिपत्र आदि आते हैं।
विधि के क्षेत्र में हिंदी
विधि की भाषा बहुत ही सतर्क और सुनिश्चित भाषा होती है, क्योंकि
उसमें जो कुछ कहा जा रहा है उसका सीधा और उतना ही अर्थ निकलना अपेक्षित है जितना
कहने वाले या लिखने वाले का आशय है। इसलिए विधि के क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाली
लहदी में स्पष्टता आरै एकार्थकता नितांत रूप से आवश्यक होती है। यही कारण है कि
संदर्भ-विशेष के लिए निश्चित शब्द ही प्रयुक्त होते हैं, उसके लिए
पर्याय रखने की छूट नहीं होती। उदाहरण के लिए, निम्नलिखित
वाक्यों को पढ़िएः
‘3’ खंड ‘1’ के उपखंड ‘ख’ में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ किसी
राज्य के विधान मंडल ने, उस विधान मडं ल में पुनः स्थापित विधये कों
या उसके द्वारा पारित अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित
अध्यादेश में अथवा उस उपखंड के पैरा द्धपपपऋ में निऌदष्ट किसी आदेश, नियम, विनियम या
उपविधि में प्रयोग के लिए अंग्रेज़ी भाषा से भिन्न कोअ भाषा विहित की है वहाँ उस राज्य के राजपत्र् में उस राज्य के राज्यपाल
के प्राधिकार से प्रकाशित अंग्रेज़ी भाषा में उसका अनुवाद इस अनुच्छेद के अधीन उसका
अंग्रेज़ी भाषा में प्राधिख्नत पाठ समझा जाएगा।
यहाँ ‘उपखंड’, ’पुनः
स्थापित’, ’पारित’, ’प्रख्यापित’, ’उपविधि’ आदि
शब्दों का प्रयोग हुआ है, जो विधि के क्षेत्र् के अलावा अन्य किसी
क्षेत्र् में सामान्यतया प्रयुक्त नहीं होते। ये वस्तुतः विधि की तकनीकी शब्दावली
है और यहाँ इन शब्दों के स्थान पर इनका कोअ और पर्याय रखना उपयुक्त न होगा, क्योंकि
जो बात कही जा रही है उसका निऌदष्ट अर्थ के अतिरिक्त कोअ भी और अन्य अर्थ निकलना
अभीष्ट नहीं है।
सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में हिंदी
सामाजिक विज्ञान की भाषा की विशेषता उस क्षेत्र की विशिष्ट
शब्दावली होती है। इस क्षेत्र के अंतगर्त राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र्, अर्थशास्त्र्
और इतिहास आदि विषय आते हैं। इनकी शब्दावली संकल्पनाओं और विचारधाराओं पर आधारित होती
है और अपने भीतर विशिष्ट अर्थ समाहित किए
होती है उदाहरण के लिए, निम्नलिखित पैराग्राफ़ को पढ़िएः
राष्ट्रवादी इतिहास लेखन ने स्वतंतता संघर्ष को वैचारिक
आधार प्रदान करने और साम्राज्यवाद के आर्थिक नतीजों का विश्लेषण करने में महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभाई। हालाँकि, राष्ट्रवाद ने अपना
ध्यान बाह्य पक्ष अर्थात् भारत के साम्राज्यवादी शोषण पर ही केंद्रित किया और
आतंरिक पक्ष अर्थात् भारतीय समाज में विभिन्न वर्गों के पारस्परिक संघर्ष और वर्ग
शोषण पर कम ध्यान दिया। इस दूसरे पक्ष पर अपनी दृष्टि को केंद्रित करने का कार्य
मार्क्सवादी दृष्टि के प्रभाव के परिणामस्वरूप हुआ और यह 1940 के दशक के बाद
लगातार बढ़ता गया। इस नई दृष्टि ने ब्रिटिश
शासन की आर्थिक राष्ट्रीय समीक्षा को ही शामिल नहीं किया बल्कि इस समीक्षा को भारत में ब्रिटिश
साम्राज्यवाद तथा विश्व पूँजीवादी व्यवस्था के ढाँचेगत विश्लेषण के अंतर्गत रखकर
विकसित भी किया गया।
यहाँ ‘राष्टव्रादी’, ’राष्ट्रवाद’, ’साम्राज्यवादी’, ’पूँजीवाद’, ’मार्क्सवाद’, वर्ग
शोषण आदि शब्दों पर गौर कीजिए। ये सभी पारिभाषिक शब्द हैं। इनका प्रयोग विशिष्ट
अर्थों में होता है और जरूरी नहीं कि यह
विशिष्ट अर्थ अपने मूल शब्द के अर्थ से सकारात्मक संगति ही रखे। ‘राष्ट्र’ से बना ‘राष्ट्रवाद’ शब्द आरै ट्टपूँजी’ से बना ‘पूँजीवाद’ इसी प्रकार के शब्द हैं। राष्ट्र से ही बना
राष्ट्रीय शब्द अच्छे अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसका तात्पर्य हातेा है देश-प्रेम, अपने राष्ट्र के प्रति निर्माणकारी, विकासपरक
भूमिका अदा करने की इच्छा । लेकिन राष्ट्र से ही बने ’राष्ट्रवाद’ में यह
पूरी तरह सकारात्मक दृष्टिकोण का अर्थ नहीं रखता। राष्ट्रवाद किन्हह्ल संदर्भो में
अंधराष्ट्रभक्ति यानी अन्य राष्ट्रों को अपने राष्ट्र से नीचे मानने की प्रवृत्ति
का भी सूचक होता है।
संचार माध्यमों में हिंदी
संचार माध्यमों के दो रूप हैंः 1- पत्र- पत्रिकाएँ 2-
इलेक्ट्रोनिक मीडिया। पहले माध्यम के अंतर्गत समाचार-पत्र- दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक
तथा विभिन्न प्रकार की पत्र्किाएँ आती हैं और दूसरे माध्यम के अंतर्गत रेडियो और
टेलीविजन। अतः भाषा की संचार माध्यमों संबंधी प्रयुक्ति में उसके मौखिक और लिखित, दोनों रूप
शामिल होते हैं। ये दोनों रूप समान होते हुए भी एक-दूसरे से काफी
भिन्न होते हैं।
उलटा पिरामिड शैली, स्तंभ लेखन, फीचर लेखन, छह ककार आदि ऐसे ही कुछ शब्द हैं,
इलेक्ट्रोनिक मीडिया – ड्राई एंकर, फोन इन, एंकर विजुअल्स, लाइव, एंकर पैकेज
विज्ञापन के क्षेत्र में हिंदी
विज्ञापन के क्षेत्र् का संबंध काफ़ी हद तक संचार माध्यमों
से होता है। पत्र्-पत्रिकाओं तथा रेडियो और टेलीविज़न पर
विज्ञापन पढ़ना, सुनना और देखना हमारी इतनी आदत बन चुकी है कि
यदि इनको बिल्कुल हटा दिया जाए तो हो सकता है कि थोड़े समय के लिए इनकी अनुपस्थिति
हमें महसूस होती रहे। संचार माध्यमों के अलावा, विज्ञापन के अन्य माध्यम हैं- दीवारों, मार्गों, चौराहों
आदि पर लगे बोर्ड और पोस्टर तथा सिनेमा का पर्दा । इस तरह, विज्ञापन के तीन रूप हैं द्ध1ऋ ख्रश्य द्ध2ऋ श्रव्य
द्ध3ऋ मुद्रित । टेलीविज़न और सिनेमा के पर्दे पर तीनों रूपों का
इस्तेमाल होता है, समाचार-पत्र्, पत्रिकाओं, बोर्डों
और पोस्टरों में पहले और तीसरे का तथा रेडियो पर दूसरे का।
इनमें भाषा के व्याकरण पक्ष को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता
है, जैसे –
हॉकिन्स लाइए 40% ईंधन बचाइए, बेटी छूएगी आकाश, बस
मौके की तलाश, ‘हम हाथ धोएँ ज़रूर बीमारी रहे कोसों दूर।
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