कृत्रिम भाषा Artificial Language

 

कृत्रिम भाषा Artificial Language

कृत्रिम शब्द का अर्थ

जो प्राकृतिक नहीं बल्कि जिसे मनुष्य ने स्वयं किसी प्राकृतिक वस्तु के अनुकरण पर बनाया हो, जैसे- कृत्रिम

दाँत, कृत्रिम सोना, कृत्रिम भाषा आदि।

कृत्रिम भाषा क्या होती है?

वैसे तो भाषा स्वाभाविक रूप में विकसित होती है। उसका निर्माण नहीं किया जाता। परंतु आधुनिक युग में कई कारणों से कुछ भाषाओं का निर्माण भी किया गया है। उन्हें कृत्रिम भाषा कहा जाता है।

कृत्रिम भाषा की आवश्यकता क्यों है?

इस में कोई संदेह नहीं कि आज विश्व को एक विश्वभाषा की आवश्यकता है। इस विश्वभाषा के न होने के कारण अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। भाषाओं की विविधता के कारण अधिक खर्च होता है और विचारों के आदान-प्रदान में बाधा उत्पन्न होती है।    

प्रचलित कृत्रिम भाषा कौन-सी है?

विश्वभाषा की मूल भावना से प्रेरित होकर ही डॉ. लुई जमेनहाफ (Louis Zomenholf) ने 1887 ईस्वी में संसार भर के लिए एस्पिरेन्तो भाषा का निर्माण किया था। इसका बहुत से देशों में प्रचार है और विज्ञापन संबंधी तथा कुछ अन्य विषयों की भी अनेक पत्रिकाएँ इस कृत्रिम भाषा में निकलती हैं । कुछ रेडियो स्टेशनों से कभी-कभी इस कृत्रिम भाषा में प्रोग्राम भी सुनने में आते हैं। संसार के अनेक शहरों की भाँति दिल्ली में भी इसके पढ़ाने की व्यवस्था है। इसके लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जो सारे संसार में इसके पूर्ण प्रचार के लिए प्रयत्नशील है।

अन्य कृत्रिम भाषा कौन-सी है?

एस्पिरेन्तो का ही एक विकसित रूप इडो (Ido) भाषा है। इसके अलावा इस प्रकार की भाषाएँ बनायी जा चुकी हैं, जिनमें नोवियल, इंटरलिंगुवा, ऑक्सिडेंटल आदि प्रमुख हैं।

कृत्रिम भाषाओं की समस्या

बोलचाल का स्वाभाविक आधार न होने के कारण इन भाषाओं का विशेष प्रसार या विकास देखने को नहीं मिलता। इस भाषा का अधिगम विशेष प्रयोजनों के उद्देश्य से होता है। ये भाषाएँ भावात्मक प्रक्रिया को उत्पन्न करने में अक्षम होती हैं।

भारत में कृत्रिम भाषा का अस्तित्व

भारतवर्ष में हिंदी-उर्दू विरोध का समाधान सोचते-सोचते एक कृत्रिम हिंदुस्तानी का निर्माण किया जाने लगा था परंतु स्वतंत्रता के बाद इस विरोध के क्षीण हो जाने के कारण इस का भी विकास नहीं किया जा सका।

भारतीय भाषाविदों का कृत्रिम भाषा में योगदान

भाषाविद सेस्यूर महादेव ने एस्पिरेन्तो मे कुछ सुधार करके एस्पेरान्तिदो की रचना की। भारत में भाषाविद सत्यभक्त जी ने इसी प्रकार की कृत्रिम भाषा की रचना की है।

कृत्रिम भाषाओं के भेद

 इस में कोई सन्देह नहीं कि आज विश्व को एक विश्व भाषा की आवश्यकता है। इस विश्व भाषा के न होने के कारण अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संघटनों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । इसी मूल भावना से प्रेरित होकर ही डा० लई जमेनहाफ (Louis Zomenholf) ने एस्पिरेन्तो का निर्माण किया था। इसका ही एक विकसित रूप इडो (Ido) भाषा भी है। परन्तु बोलचाल का स्वाभाविक आधार न होने के कारण इन भाषाओं का विशेष प्रसार या विकास देखने को नहीं मिलता। चोर या बच्चे भी कभी कभी कुछ कृत्रिम भाषाओं का निर्माण कर लिया करते है।

Comments