गजब तमाशे दुनिया के….

 

गजब तमाशे दुनिया के….

देखो न इस दुनिया में,

गजब तमाशा होता है।

कोई किसी को माने अपना,

पर वह पराया होता है।

चंदा की ज्योति निकलकर,

पर्वत पर सो जाती है।  

पर्वत से बहता झरना,

नदी रूप अपनाती है।  

नदी है मिलती सागर में,

सागर बादल बन जाता है।

इस धरती की प्यास बुझाने,

बारिश बन गिर जाता है।    

देखो न इस दुनिया में,

गजब तमाशा होता है।

भौंरें शहद को माने अपना,

पर वह पराया होता है।

सबके तन ने यौवन छोड़ा,

अपनों ने है नाता तोड़ा,

इस नगरी की यही है रीत,

मन सदा रहता भयभीत,

जो पाओगे वो खोना है,

इक दिन ऐसा ही होना है,

मादकता में अंधा होकर,

ये मूर्ख मनुष्य इठलाता है।

कर्म स्तुत्य है मर्त्य सत्य है,

पर नहीं इसे कोई अपनाता है।

देखो न इस दुनिया में

गजब तमाशा होता है।

फूल गंध को माने अपना

पर वह पराया होता है।

अविनाश रंजन गुप्ता

 

 

 

 

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