तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज शब्द
तत्सम, तद्भव, देशज,
विदेशज
विकास या उद्गम की दृष्टि से शब्द-भेद
इस दृष्टि से शब्दों को चार वर्गों में रखा गया है।
तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज
(क) तत्सम शब्द : (Sanskrit Words)
तत् (उसके) + सम (समान) = तत्सम
वैसे शब्द, जो संस्कृत और हिंदी दोनों भाषाओं में समान
रूप से प्रचलित हैं। अंतर केवल इतना है कि संस्कृत भाषा में वे अपने
विभक्ति-चिह्नों या प्रत्ययों से युक्त होते हैं और हिंदी में वे उनसे रहित होते
हैं, जैसे-
संस्कृत में –कर्पूरः, पर्यङ्कः, फलम्, ज्येष्ठ:
हिंदी में - कर्पूर, पर्यंक, फल, ज्येष्ठ
क्षत्रिय, क्षेत्र, ज्ञान, यज्ञ, मनुष्य,षष्टि, विषण्ण, कृपया, कृषि, फलत:, प्रात: इत्यादि।
विशेष द्रष्टव्य –
Ø जिन शब्दों में क्ष, ज्ञ, ष, ण आदि वर्णों का प्रयोग हो तो वे तत्सम शब्द ही कहलाते हैं।
Ø ‘ऋ’ और
इसकी मात्रा का प्रयोग भी केवल तत्सम शब्दों में ही संभव है।
Ø जिन शब्दों में विसर्ग ‘:’ का चिह्न आता है, वे तत्सम शब्द ही होते हैं।
Ø तत्सम शब्दों में कभी भी चंद्रबिंदु का
प्रयोग नहीं होता है।
Ø आधे ‘श’ से अगर किसी शब्द की शुरुआत होती है
तो वह तत्सम शब्द ही होता है, जैसे- श्याम, श्याली, श्वशुर इत्यादि।
Ø तत्सम शब्दों में ‘च, और ‘छ’ के पूर्व केवल ‘श’ ही आता है, जैसे- निश्चय,
निश्छल इत्यादि।
Ø नुक्ते के प्रयोग से बने शब्द तत्सम शब्द
नहीं वरन विदेशज शब्द होते हैं।
Ø अर्धचंद्राकार ‘ॕ’ का
प्रयोग भी तत्सम शब्द में न होकर विदेशज शब्दों में ही होता है।
(ख) तद्भव शब्द : Derived from Sanskrit words
तत् (उससे) + भव (होना या उत्पन्न ) = तद्भव
जब तत्सम शब्दों को ध्वनि और अर्थ के आधार पर यथारूप न
ग्रहण करके उसके परिवर्तित रूप को ग्रहण करते हैं तो उसे तद्भव शब्द कहते हैं। कई रूपों में वे उनके
(तत्सम के) समान नज़र आते हैं, जैसे -
कर्पूर > कपूर
क्षेत्र > खेत
पर्यङ्क > पलंग
पृष्ठ > पीठ
अग्नि > आग
विशेष द्रष्टव्य
ü प्राय: संस्कृत शब्दों में प्रयोग ‘क्ष’
वर्ण तद्भव में ‘ख’ वर्ण का रूप ले
लेता है, जैसे- क्षेत्र खेत, मक्षिका-
मक्खी, क्षीर खीर, क्षण छिन, भिक्षा भीख, इक्षु ईख ,
शिक्षा सीख, पक्ष पंख, लक्ष – लाख, कुक्षि कोख, लाक्षा लाख,
क्षुर, छुरा, अक्षि – आँख, परीक्षा परख, अक्षर आखर इत्यादि।
ü प्राय: संस्कृत शब्दों में प्रयोग ‘श’ वर्ण
तद्भव में ‘स’ वर्ण का रूप ले लेता है, जैसे- शाक साग, दश दस, शृंखला
साँकल, शृंगार सिंगार, श्वशुर ससुर, अश्रु आँसू, शिक्षा सीख, स्वश्रु
सास, श्वास साँस, श्रेष्ठ सेठ, शय्या सेज, शृगाल सियार,
शुष्क सूखा, श्रावण सावन, श्यामल
साँवला, शिर सिर, शत सौ, शलाका सलाई, श्वसुराल्य ससुराल, आश्रय आसरा, श्याली साली इत्यादि।
ü संस्कृत शब्दों में प्रयोग ‘व’ वर्ण
तद्भव में ‘ब’ वर्ण का रूप ले लेता है, जैसे- विकार बिगाड़, विष्ठा बीठ, वायु बयार, वानर बंदर, सर्व
सब, वत्स बच्चा, वैर बैर, यौवन जोबन, वृद्ध बूढ़ा इत्यादि।
ü संस्कृत शब्दों में प्रयोग ‘य’ वर्ण
तद्भव में ‘ज’ वर्ण का रूप ले लेता है, जैसे- शय्या सेज, भाग्नेय भांजा, यजमान जजमान, धैर्य धीरज,
सूर्य सूरज, कार्य काज, याचक जाचक, यशोदा जशोदा, यमुना जमुना, योगी जोगी, अद्य आज, कार्य काज इत्यादि।
ü संस्कृत शब्दों में प्रयोग ‘ं’ वर्ण
तद्भव में ‘ँ’ वर्ण का रूप ले लेता है, जैसे- दंत दाँत, संध्या साँझ,
चंद्र चाँद, वंश
बाँस, कंटक काँटा, ग्रंथि गाँठ, शृंखला साँकल, अंगुलि उँगली,
अंगुष्ठ अँगूठा, अंधकार अँधेरा इत्यादि।
नोट : नीचे तत्सम-तदभव शब्दों की सूची दी जा रही है। इन्हें
देखें और समझने की कोशिश करें
तद्भव को '>' चिह्न से व्यक्त करते हैं, यथा--दुग्ध
> दूध
(दुग्ध शब्द से व्युत्पन्न शब्द दूध है। दूध<दुग्ध (दूध शब्द दुग्ध शब्द से व्युत्पन्न
हुआ है)। इन्हें अपभ्रष्ट/अपभ्रंश शब्द भी कहा जाता है। हिन्दी में प्रचलित कुछ
तद्भव शब्द ये है-(संस्कृत भाषा के शब्दों से व्युत्पन्न तद्भव शब्द)
अंगूठा< अंगुष्ठ, अँधेरा< अंधकार, अंधा< अंध, आँख < अक्षि, आग < अग्नि, अटारी < अट्टालिका, आज < अद्य, आधा < अर्ध, आठ < अष्ट, आम < आम्र, आँसू < अश्रु , आसरा < आश्रय, अचरज < आश्चर्य, उँगली < अंगुलि, उजला < उज्ज्वल, उठाना उठाना < उत्थान, इकट्ठा < एकत्र, ईट < इष्टिका, ओठ ओंठ होठ
< ओष्ठ; ओष्ठ, कँवल < कमल, कछुआ < कच्छप, करो < कुरु, काँटा < कंटक, कंगन < कंकण, कपूर < कर्पूर, कान < कर्ण, काम < कर्म, काठ < काष्ठ, कुम्हार < कुम्भकार, काज < कार्य, किवाड़ < कपाट, कपूत < कुपुत्र, कुआँ कूआँ
< कूप, कोठा < कोष्ठ, कोढ़ < कुष्ठ, कोयल < कोकिल, चाँद < चन्द्र, चाक < चक्र, चिड़िया < चटका, खीर < क्षीर, खेत < क्षेत्र, गधा < गर्दभ, गाँठ < ग्रन्थि, गाँव < ग्राम, गाहक < ग्राहक, घर < गृह, घाम < घर्म, घी < घृत, चमार < चर्मकार, चाम < चर्म, चूना < चूर्ण, छेद < छिद्र, जांघ < जंघा, जीभ < जिह्वा, जेठ < ज्येष्ठ, जोगी < योगी, जोबन < यौवन, झीना < जीर्ण, ताँबा < ताम्र, ताव < ताप, तीन < त्रीणि, तुरंत <
त्वरित, थन < स्तन, थान < स्थान, डंडा < दण्ड, दाँत < दन्त, दसवाँ < दशम, दही < दधि, दूध < दुग्ध, दुबला < दुबल, दो < द्वौ, धीरज < धैर्य, धुआँ/धूआँ
< धूम्र, नंगा < नग्न, नित < नित्य, नींद < निद्रा, नेह < स्नेह, पक्का < पक्व, पत्ता < पत्र, पीठ < पृष्ठ, परख < परीक्षा, प्यास < पिपासा, फूल < पुष्प, बाँस < वंश, बाँह < बाहु, बहू < वधू, बाघ < व्याघ्र, बिगाड़ < विकार, बूढ़ा < वृद्ध, भंवर/भौंरा
< भ्रमर, भीख < भिक्षा, भाई < भातृ, भूसा/भूसी
< भूषिका, भैंस < महिषी, माथा< मस्तक, मिट्टी < मृत्तिका, मुँह < मुख, मोती< मौक्तिक, मोर<मयूर, रात< राति, लाख <लक्ष, लुहार
लोहार < लौहकार, सच < सत्य, साग < शाक, सिंगार < शृंगार, सूत < सूत्र, हाथ < हस्त, हाथी < हस्ती
विशेष द्रष्टव्य
हेमचन्द्र ने तद्भव शब्दों को 'संस्कृत
योनि' शब्द कहा
है।
(ग) देशज शब्द/ आंचलिक शब्द Regional/Native
Words
वे परंपरागत शब्द जिनके बारे में निश्चित पता नहीं चल पाया
कि वे किस भाषा से उद्भूत होकर प्रचलन में आ गए हैं या वे लोक प्रचलित शब्द जो अपनी विशिष्ट पहचान बनाकर हमारी भाषा
में प्रयुक्त हो रहे हैं उन्हें ही देशज या आंचलिक शब्द कहते हैं। इनका संस्कृत से
कोई संबंध नहीं है, जैसे – खुरपा, गाड़ी, छाती, बाप, बेटा, पिल्ला, पगड़ी, खिड़की, तेंदुआ, कटोरा, खिचड़ी, डंगर, काँच, खादी, घपला, पेठा, टट्टू, कबड्डी, थोथा, धब्बा, ठेस, टीस इत्यादि।
(घ) विदेशज शब्द/ आगत शब्द Foreign
Words
जब कोई भाषा विदेशी भाषाओं के संपर्क में आकर उसके शब्दों
को भी अपने में समाहित कर लेती है, वैसे शब्दों को ही विदेशज शब्द/ आगत शब्द कहते हैं।
अंग्रेजी शब्द
स्कूल, डॉक्टर, स्टेशन, मास्टर, टीन, स्लेट, डिग्री, कोट, ग्लास, ऑफिस, प्रेस, कलक्टर, रजिस्ट्री, नोटिस, पेन, स्टील, रेल, फंड, कमिटी, मीटर, कंपनी, बॉक्स, बटन, कमीशन इत्यादि।
फारसी शब्द
अफसोस, अदा, आराम, आदमी, उम्मीद, कबूतर, कमर, खूब, जवान, दरबार, जोर, दुकान, दाग, मोजा, गर्म, कद्दू, दोस्त, गुल इत्यादि।
अरबी शब्द
अदना, अजनबी, इनाम, उम्दा, उम्र, एहसान, औसत, कसर, कसम, कीमत, खास, ख़त, खबर, ख्याल, गरीब, गुस्सा, जाहिल, जिस्म, जनाब, जालिम, तमाशा, तारीख, नतीजा, नशा इत्यादि।
तुर्की शब्द
उर्दू, बहादुर, चम्मच, काबू, कालीन, कैंची, कुली, चमचा, चेचक, चकमक, चोंगा, जालिम, तोप, तमगा, तलाश, बहादुर, मुगल, लाश, सौगात इत्यादि।
फ्रांसीसी शब्द
अंग्रेज़, कूपन, कारतूस
इत्यादि।
पुर्तगाली शब्द
गोदाम, गमला, आलपिन, कमरा, संतरा, अलमारी, कनस्तर इत्यादि।
चीनी शब्द
चाय, लीची इत्यादि।
पश्तो शब्द
पठान, मटरगश्ती, खर्राटा, अखरोट, गड़बड़, पटाखा, लुच्चा, भड़ास, गुंडा, अखरोट इत्यादि।
विशेष द्रष्टव्य
जिन शब्दों में नुक्ते का प्रयोग होता है वे विदेशज शब्द कहलाते हैं, जैसे – ज़रा, फ़न, तेज़, क़मर, मेज़, ज़ाली, ज़रूर, क़ाल, फ़र्ज़ आदि।
अर्धचंद्राकार ‘ॕ’ का प्रयोग भी विदेशज शब्दों में ही होता है,
जैसे- बॉल, मॉल, कॉलेज, डॉक्टर आदि।
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