हिंदी के विभिन्न नाम या रूप

 

हिंदी के विभिन्न नाम या रूप

हिंदी भाषा के विविध नाम क्यों है?

भारत की सबसे पुरानी लिपि ब्राह्मी लिपि है। इसी से देवनागरी लिपि और हिंदी भाषा विकसित हुई है। देवनागरी का सर्वप्रथम प्रयोग आठवीं शती के आसपास के शिलालेखों में मिलता है।

हिंदी भाषा का विकास क्रम

संस्कृत – पालि – प्राकृत – अपभ्रंस – अवहट्ट – प्राचीन/प्रारंभिक हिंदी

1.हिन्दवी/हिन्दुई/जबान-ए-हिंदी/देहलवी:

मध्यकाल में मध्यदेश के हिंदुओं की भाषा, जिसमें अरबी-फारसी शब्दों का अभाव है। सर्वप्रथम अमीर खुसरो (1253-1325) ने मध्य देश की भाषा के लिए हिन्दवी, हिंदी शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने देशी भाषा हिन्दवी, हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए एक फारसी-हिंदी कोश खालिक बारीकी रचना की, जिसमें हिन्दवी शब्द 30 बार, हिंदी शब्द 5 बार देशी भाषा के लिए प्रयुक्त हुआ है।

2. भाषा/भाखा :

विद्यापति, कबीर, तुलसी, केशवदास आदि ने भाषा शब्द का प्रयोग हिंदी के लिए किया है। 19वीं सदी के प्रारंभ तक इस शब्द का प्रयोग होता रहा है। फोर्ट विलियम कॉलेज में नियुक्त हिंदी अध्यापकों को 'भाषा मुंशी के नाम से अभिहित करना इसी बात का सूचक है।

3. रेख्ता :

मध्यकाल में मुसलमानों में प्रचलित अरबी-फारसी  शब्दों से मिश्रित कविता की भाषा, जैसे - मीर, गालिब की रचनाएँ)

4. दक्खिनी/दक्कनी :

मध्यकाल में दक्कन (भारत में नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित एक विशाल प्रायद्वीप) के मुसलमानों द्वारा फारसी लिपि में लिखी जानेवाली भाषा। हिंदी में गद्य रचना परंपरा की शुरूआत करने का श्रेय दक्कनी हिंदी के रचनाकारों को ही है। दक्कनी हिंदी को उत्तरी भारत में लाने का श्रेय प्रसिद्ध शायर वली दक्कनी (1688-1741) को है। वह मुगल शासक मुहम्मद शाह रंगीलाके शासन काल में दिल्ली पहुँचा और उत्तरी भारत में दक्कनी हिंदी को लोकप्रिय बनाया।

5. खड़ी बोली - खड़ी बोली की तीन  शैलियाँ -

- हिंदी/उच्च हिंदी/नागरी हिंदी/आर्यभाषा :।

नागरी लिपि में लिखित संस्कृत बहुल खड़ी बोली, जैसे-जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ।  

- उर्दू/जबान-ए-उर्दू/जबान-ए-उर्दू-मुअल्ला :

फारसी लिपि में लिखित अरबी-फारसी बहुल खड़ी बोली, जैसेसआदत हसन मण्टो की रचनाएँ।  

- हिन्दुस्तानी :

हिंदी-उर्दू का मिश्रित रूप व आम जन द्वारा प्रयुक्त, जैसे- मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ।  

 

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