मेरे पुत्र एक कविता By अविनाश रंजन गुप्ता

 

मेरे पुत्र

दो पौधे मेरी बगिया में,

एक है अग्रज एक अनुज,

स्नेह इनका है दृगशोभन ,

पहला श्री दूजा रामानुज।

पहला श्री दूजा रामानुज।

जड़ें पहुँचे सुदूर धरा में,

छाया दे अति भारी,

काया इनकी हो महिमामय,

बने ये पालनहारी।

बने ये पालनहारी।

शत आयु से सहस्र को जाएँ,

कालजयी का गौरव पाएँ,

गुण, शील और ज्ञान के साधक,

प्रभु चरणों में शीश झुकाएँ।

प्रभु चरणों में शीश झुकाएँ।   

कीर्ति व यश हो इनकी निधि,

मानवता के हों ये प्रतिनिधि,

काम-क्रोध से मुक्त रहें और

पाएँ जगत प्रसिद्धि।

पाएँ जगत प्रसिद्धि।

गुरु विश्वामित्र की भाँति पितृ

करते हैं बागबानी,

इन पौधों को पोषण देते,

सुनकर हृदय की वाणी।  

सुनकर हृदय की वाणी।

मेरे दोनों पुत्रों को समर्पित

अविनाश रंजन गुप्ता

 

 

  

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