शब्द-अर्थ का संबंध

 

शब्द-अर्थ का संबंध

अर्थविज्ञान

परिभाषा

शब्द-अर्थ का संबंध भाषा की आत्मा है। बिना इसके किसी भी प्रकार के भाषिक संसार की सृष्टि हो ही नहीं सकती है। अर्थविज्ञान भाषाविज्ञान (Linguistics) का अविभाज्य अंग है।

अर्थ क्या है?

किसी भी भाषिक इकाई (वाक्य, वाक्यांश, रूप, शब्द, मुहावरा आदि) को किसी भी इंद्रिय (प्रमुखत: कान, आँख) से ग्रहण करने पर जो मानसिक प्रतीति होती है, वही अर्थ है।

अर्थ की प्रतीति/बोध

अर्थ की प्रतीति दो प्रकार से होती है।

(क) आत्म-अनुभव से - अर्थात् स्वयं किसी चीज़ का अनुभव करके। उदाहरण के लिए चीनी मीठी होती है। में मीठी के अर्थ की प्रतीति स्वयं चीनी चखने से हो जाती है। पानी, गर्मी, धूप, ठंड के अर्थ की प्रतीति भी इसी प्रकार हो सकती है।

(ख) पर-अनुभव से - अनेक क्षेत्र ऐसे भी होते हैं जहाँ हमारी पहुँच नहीं होती, उस क्षेत्र से संबद्ध शब्दादि के अर्थ की प्रतीति के लिए हमें दूसरों के अनुभव या ज्ञान पर निर्भर रहना पड़ता है । उदाहरण के लिए, हममें से अनेक लोगों ने जहर नहीं देखा होगा, किंतु दूसरों से ऐसा सुन रखा है कि जहर का सेवन मृत्यु का कारण होता है। अतः जहर शब्द के अर्थ की प्रतीति का मूलाधार आत्म-अनुभव न होकर पर-अनुभव है। ऐसे ही आत्मा, ईश्वर, स्वर्ग, पाताल आदि।  

शब्द-अर्थ का संबंध

पानी कहने से पानी का ही बोध होता है, मिट्टी या काँच का नहीं। क्या पानी शब्द और पानी द्रव्य का कोई संबंध है? समाज ने पानी शब्द को या प्+आ+न+ई ध्वनियों के समूह को पानी द्रव्य के लिए संकेत या प्रतीक मान रखा है, इसलिए पानी कहने से उसी का बोध होता है, किसी और चीज़ का नहीं।

अर्थबोध के साधन

भारतीय परंपरा में अर्थबोध के आठ साधन माने गए हैं :

(१) व्यवहार- व्यवहार अर्थबोध का सबसे प्रमुख साधन है। समाज में तरह-तरह के व्यवहार से भाषा के अनेक शब्दों के अर्थ का हमें बोध होता है। कहने का आशय यह कि अपने से बड़ों द्वारा किए गए सभी कार्य व्यापारों को देख-देखकर छोटा बच्चा भी उसे अपनी क्षमतानुसार अपने जीवन में उतारता चलता है। शब्द और वस्तु के संबंध में यह ज्ञान भाषा के ग्रहण का प्रथम सोपान है।

(2) कोश- अर्थ की बोध-गम्यता के लिए कोश का भी आशय लेना पड़ता है। अज्ञात अथवा क्लिष्ट शब्दों के सरल अर्थ कुंडली मारकर कोश में बैठे रहते हैं। प्रत्येक कठिन शब्द का अर्थ जानने के लिए कोश की सहायता ली जाती है। यहाँ यह बात ध्यान से समझनी चाहिए कि व्याकरण शब्द के प्रयोग पक्ष को स्पष्ट करता है और कोश शब्द के अर्थ पक्ष को।

(३) व्याकरण - व्याकरण से भी अर्थबोध होता है। व्याकरण किसी भी भाषा को अनुशासन अथवा नियंत्रण में रखने का सर्वोत्तम साधन माना गया है। किसी भी भाषा को अच्छे से सीखने के लिए उसके व्याकरण का ज्ञान अपेक्षित है। भाषा के लिंग, वचन, धातु, कारक तथा किसी शब्द का मूल उत्स व्याकरण में ही सुरक्षित रहता है। मान लीजिए की कोई करना या जाना शब्द का अर्थ तो जानता है। लेकिन अगर उसे कहीं किया या गया शब्द मिल जाए तो उसे यह शब्द अर्थ जानने के व्याकरण के ज्ञान की आवश्यकता पड़ेगी।

(४) प्रकरण - कभी-कभी कुछ शब्द प्याज के छिलके की तरह अनेकार्थी होते हैं। ऐसी स्थिति में अध्येता यह निर्णय नहीं ले पाता, कि इन अनेकार्थी शब्दों में अमुक शब्द का किस स्थल पर कौन-सा अर्थ ग्रहण किया जाए। दुविधा की इस स्थिति में वाक्य शेष अथवा प्रकरण का सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए, ‘धातु का व्याकरण में एक अर्थ है, किंतु सामान्यतः सोना-चाँदी आदि धातुएँ हैं। इसी प्रकार गोली एक प्रकरण में बंदूक  की गोली है तो दूसरे प्रकरण में दवा की गोली, तीसरे संदर्भ में बच्चों के खेलने की गोली  इसी प्रकार  रस शब्द को लीजिए, जिसके अनेक अर्थ होते हैं, आनंद, शरबत, काव्य-रस, भोजन के छह रस आदि।

रस पीजिएगा? (शरबत)

रस काव्य की आत्मा है। (काव्य रस)

आंवले का रस गुणकारी होता है। (स्वरस)

आपकी बात में बहुत रस मिलता है। (आनंद)

मैं नमक कम खाता हूँ।

मैंने इस घर का नमक खाया है।

(५) व्याख्या - इसे विवृतिभी कहा गया है। बहुत से शब्दों का अर्थबोध व्याख्या के द्वारा ही कराया जा सकता है, जैसे- भाषाविज्ञान का अघोष, दर्शन का विशिष्टाद्वैत या साहित्यशास्त्र का ध्वनि', या सिद्ध कीजिए केशव रीतिकाल के प्रथम आचार्य हैं? या भूषण जातीय कवि हैं अथवा राष्ट्रीय? या निराला बहुवस्तुस्पर्शिनी प्रतिभा के कवि हैं। तो इन्हें एक शब्द में नहीं बता सकते। ऐसे अवसरों पर सम्यक् अर्थ-बोध के लिए उनकी व्याख्या आवश्यक होती है।

(६) उपमान उपमान का अर्थ है सादृश्य या समानता। अर्थात् कभी-कभी समान वस्तु दिखाकर या बताकर किसी शब्द का अर्थ समझा या समझाया जा सकता है। जैसे अगर किसी ने गाय देखी हो और सुन रखा हो कि नीलगाय गाय के ही समान होती है। अगर उसने जंगल में घूमते हुए एक ऐसे पशु को देखा जो गाय से समता रखती है तो वह सादृश्य मूलक ज्ञान के आधार पर समझ सकेगा कि वह जिस पशु विशेष को अभी देख रहा है वह नीलगाय ही होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि पहले से देखे गए या अनुभव के किए गए वस्तु के ज्ञान के या बोध के आधार पर अदृष्ट अथवा पहले से अनुभूत न किए गए वस्तु का ज्ञान ही उपमान कहलाता है।

(७) आप्तवाक्यकिसी वस्तु का यथार्थ चित्रण करने वाले को आप्त कहा जाता है और उसके द्वारा किया गया चित्रण अथवा कही हुई बात आप्त वाक्य के भीतर समझी जाती है। इस संदर्भ में महान, विद्वान, प्रसिद्ध, सिद्ध या पहुँचे हुए ऋषियों को लिया जा सकता है क्योंकि ये वर्षों के कठिन चिंतन तथा साधनाओं से यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर पाते हैं और इनकी कही हुई बातों पर किसी को अविश्वास नहीं होता है। ईश्वर, देवता-देवी, स्वर्ग-नरक का ज्ञान या वे विषय जो धर्मग्रन्थों पर आधारित हैं उसका ज्ञान सामान्य व्यक्ति को नहीं होता। अतः ऐसे महानुभावों को आप्त तथा उनकी कही हुई बातों को आप्त वाक्य कहा जा सकता है।

(८) ज्ञान का सान्निध्य - प्रसिद्ध पद का सान्निध्य कभी-कभी किसी शब्द के अर्थ को जानने में मदद करते हैं, जैसे - उदाहरण के लिए, एक वाक्य लें : बासमती का भात श्यामजीरा से अच्छा होता है। इस वाक्य का पाठक बासमती और भात के सान्निध्य से समझ जाएगा कि श्यामजीरा किसी चावल का नाम है। अजा शब्द का यहाँ उदाहरण लिया जा सकता है। अजा शब्द के दो अर्थ हैं-बकरी तथा प्रकृति। यदि यह कहा जाए कि हरी-हरी घासों को अजा ने चर डाला, तो हरी घास तथा चरने के आधार पर अजा का अर्थ बकरी ही लिया जाएगा, प्रकृति नहीं। इसी प्रकार बेला, चमेली, गुलदाउदी, कचनार, बकुल, पारिजात कहने से यह बोध हो जाता है कि पारिजात भी कोई पुष्प-विशेष है।

(९) बलाघात (ओढ़ना-ओढ़ना),

(१०) सुरलहर (मोहन गया?,मोहन गया !),

(११) अनुवाद (Man = आदमी) आदि कई अन्य साधनों से भी अर्थबोध होता है।

पाश्चात्य मत पाश्चात्य चिंतकों ने अर्थ-बोध के मात्र तीन साधन माने हैं

1. प्रदर्शन या व्यवहार (Demonstration)

2. विवरण (Circumlocution)

3. अनुवाद (Translation)

प्रदर्शन अथवा व्यवहार - इसका अर्थ है, किसी वस्तु को बोध कराने के लिए उसी वस्तु को किसी व्यक्ति को दिखाकर उसका नाम बताना। अर्थ-बोध का यह भी सरल तरीका है। यदि किसी को गुलाब का बोध कराना हो तो उस व्यक्ति को गुलाब दिखाकर बताया जाए कि यह सुगन्धि बिखेरने वाला गुलाब पुष्प है वस्तुओं का बोध कराने के संदर्भ में छोटे बच्चों के लिए यह माध्यम सबसे आसान होता है।

विवरण - विवरण किसी वस्तु को प्रश्नोत्तर शैली में अथवा घुमा-फिरा कर समझाना ही विवरण कहा जाता है। उदाहरण के लिए यदि कोई विद्यार्थी ऊँट से परिचित न हो, तो अध्यापक उसे समझाने के लिए अनेक प्रश्न करेगा, जैसे- सबसे लंबी और दुबली-पतली टाँग वाले पशु का क्या नाम है? रेगिस्तान का जहाज किसे कहा गया है? किस जानवर की तीन पलकें होती है? आदि।

अनुवाद - अनुवाद पाश्चात्य विद्धानों द्वारा बताए गए अर्थ-बोध के साधनों में वस्तुतः अनुवाद ही महत्त्वपूर्ण साधन माना जा सकता है। विदेशी भाषाओं में व्यक्त विचारों तथा भावों की समझ के लिए अनुवाद का ही सहारा लेना पड़ता है। पाश्चात्य देशों के साहित्य, वैज्ञानिक आविष्कारों, रीति-रिवाजों, व्यापारों, राजनीतिक विचारों आदि को भली-भाँति समझने के लिए अनुवाद उत्तम माध्यम है। नाटककार शेक्सपियर तथा कालिदास को अनुवाद के माध्यम से ही एक दूसरे देशों में जाना जाता है। अनुवाद के लिए अपनी भाषा के साथ दूसरी भाषा का ज्ञान भी एक महत्त्वपूर्ण शर्त है।

 

 

 

 

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