प्रभु का वास - ईश्वर पर एक गीत

 

प्रभु का वास

दूर से दूर पास से पास,

हे प्रभु! है तेरा ही वास।  

दृग में अंजन रूप निरंजन,

मन में रहता है भय-भंजन,

प्रात: - साँय की मधुर बेला में,

होता तेरा ही आभास।  

दूर से दूर पास से पास

हे प्रभु! है तेरा ही वास       

खिली लता के फूल-फूल में,

ऋजु नदी के कूल-कूल में,

कोमल शीतल मलयानिल में,

करता है तू ही उल्लास।  

दूर से दूर पास से पास,

हे प्रभु! है तेरा ही वास।  

उषा के प्यारे ओस कणों में,

निशा के न्यारे नक्षत्र गणों में,

नव शिशु के निष्पाप अधर में,

दिखता है तेरा मृदु हास।  

दूर से दूर पास से पास,

हे प्रभु! है तेरा ही वास।  

तुहिनाचल के तुहिन पटल में,

सरोवर के पवित्र कमल में,

प्रकृति के हर रूप-रूप में,

तेरा है स्वच्छंद विलास।   

दूर से दूर पास से पास,

हे प्रभु! है तेरा ही वास।  

मैं अकिंचन जग में तेरे,

कष्टों के हैं कितने फेरे,

काम-क्रोध की इस दुनिया में,

तेरा ही है बस इक आस।

दूर से दूर पास से पास,

हे प्रभु! है तेरा ही वास।

   

 

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