अर्थ निर्णय के साधन BHasha Vigyaan

 

अर्थ निर्णय के साधन

विश्व की लगभग सभी भाषाओं में दो तरह के शब्द उपलब्ध होते हैं- एकार्थक तथा अनेकार्थक। एक अर्थ रखने वाले शब्द एकार्थक कहे जाते हैं, तथा एक से अधिक अर्थ होने वाले शब्द अनेकार्थक समझे जाते हैं।

साहित्य-दर्पणमें एकार्थक शब्दों के अर्थ-निर्णय के साधनों की तालिका प्रस्तुत की गई है, जिनकी कुल संख्या दस है। वे इस प्रकार हैं

(1) वक्ता,

(2) बोद्धा या श्रोता,

(3) वाक्य,

(4) अन्य सन्निधि,

(5) वाच्य,

(6) प्रस्ताव या प्रकरण,

(7) देश,

(8) काल,

(9) काकु तथा

(10) चेष्टा

 

(1) वक्ता

अर्थ-निर्णय का यह साधन अपनी विचित्र भूमिका निभाता है। यदि कोई कहे किमित्र! सन्ध्या हो गई तो इसका अर्थ वक्ता के अनुसार अलग-अलग रूप-रंग धारण कर लेता है। इस वाक्य को यदि कोई व्यापारी कहे, तो उसका अर्थ होगा कि अब दुकान बढ़ाने का समय आ गया है। यदि पुजारी कहे तो इसका अर्थ होगा कि मंदिर में दीपक जलाने का समय हो गया है। यदि विद्यार्थी अपने मित्र से कहे तो अर्थ होगा कि पढ़ना अब बंद करो। यदि मिल मालिक अपने कर्मचारियों से कहे तो अर्थ होगा कि काम बंद करो। सिनेमा का शौकीन व्यक्ति इस वाक्य से सिनेमा जाने का समय समझेगा। आशय यह कि भिन्न-भिन्न स्थिति के वक्ताओं के भेद से उक्त वाक्य से भिन्न-भिन्न अर्थ निकलेगा, यह इस उदाहरण से स्पष्ट है।

2. बोद्धव्य

श्रोता को ही बोद्धा कहते हैं। वक्ता के समान ही एकार्थक शब्दों के अर्थ निर्धारण में बोद्धा भी सहायक होता है। वक्ता द्वारा कही गई बात का अर्थ श्रोता अपने अनुसार तय कर लेता है, दूसरे के लिए उसका कोई मूल्य नहीं होता। यथा

स्वारथ सुकृत न श्रम वृथा देखि बिहंग बिचार।

बाज पराये पानि परि, तू पच्छीहि न मार॥

वस्तुतः यह दोहा राजा जय सिंह को लक्ष्य करके बिहारी ने लिखा था। इसका अर्थ जो उन्होंने समझा वह उन्हीं के लिए संभव था, जिसमें बिहारी ने उन्हें पक्षियों की हत्या न करने की सलाह दी थी। इस दोहे को यदि गौतम बुद्ध के पास लिखकर भेजा जाता तो उसका कोई अर्थ नहीं निकल सकता था।

3. वाक्य -  

स्वतंत्र या पृथक् रहने पर शब्द का जो अर्थ होता है, वह कभी-कभी वाक्य में आ जाने पर कुछ भिन्न अर्थ देने लगता है। यदि किसी से यह पूछा जाय कि कल तुम कटक  गए थे न? अथवा घर में माता-पिता कुशल से है न? तो इन वाक्यों में प्रयुक्त '' का अर्थ निषेध न होकर विधि अर्थ में ही समझा जाएगा। सामान्यतया '' निषेध सूचक होता है, लेकिन यहाँ उसका अर्थ निषेध नहीं होगा। कभी-कभी निषेध सूचक शब्दों को प्रयुक्त नहीं किए जाने पर भी वाक्य निषेध सूचक बन जाता है, यथा- तेरी हिम्मत! कि तू वहाँ जाएगी?

4. अन्य सन्निधि –

इसका अर्थ किसी दूसरे शब्द की समीपता से है। कभी-कभी 'वक्ता' या 'श्रोता' अर्थ-निर्धारण में असमर्थ सिद्ध होते हैं। ऐसे अवसरों पर इनके अलावा कोई दूसरा व्यक्ति या वस्तु अर्थ निर्णय करने में सहायक होती है। यथा-'कोयल मधु से उन्मत्त हो रही है। यहाँ 'मधु' का आशय 'वसन्त' से होगा। क्योंकि कोयल में मादकता 'वसन्त' से उत्पन्न होती है न कि 'मधु' से ।    अपने बेटे को अफसर के रूप में देख माँ के आँसू छ्लक पड़े। अतः कहा जा सकता है कि 'मधु' शब्द का सामीप्य ही अर्थ निर्णय में यहाँ प्रमुख भूमिका में है।

 

5 वाच्य -  

इसका मतलब वक्ता के कथन से है। वाच्य से भी शब्दों का अर्थ निर्णित होता है, यथा

इति आवत चलि जात उत चली छसातक हाथ।

चढ़ी हिडौरें सी रहै लगी उसासनि साथ।।

इन पंक्तियों में कवि का लक्ष्य केवल यही बताना है कि प्रियतम के वियोग में नायिका अत्यन्त कृशगात या दुर्बल हो चुकी है। यह अर्थ उपर्युक्त पंक्तियों से वाच्य अर्थ वक्तव्य के वैशिष्ट्य के कारण ही प्राप्त होता है। कहने वाले का लक्ष्य इसी अर्थ की प्रतीति कराना है।

6. प्रस्ताव –

इसे ही प्रकरणभी कहते हैं। एकार्थक शब्दों के अर्थ-निर्णय करने में प्रकरण को प्रधान साधन माना गया है। वास्तव में प्रकरण के बिना अर्थ निर्णय संभव नहीं। प्रत्येक वाक्य का सुनिश्चित अर्थ प्रकरण के द्वारा ही बताया जा सकता है। प्रकरण के आधार पर शब्दों का अर्थ अलग-अलग हो जाता है। यदि यह कहा जाए कि सूर्यास्त हो गया है तो श्रमिक इसका अर्थ अपना काम बंद करने के पक्ष में लेगा, ग्वाला पशुओं को घर ले चलने का अर्थ लेगा, बच्चे पढ़ाई शुरू करने के पक्ष में इसका अर्थ लेंगे। इस प्रकार प्रकरण-भेद से ही उक्त वाक्य के अनेक अर्थ हो गए हैं।

7 देश –

देश का अर्थ 'स्थान-विशेष' से है। 'स्थान-विशेष' से भी अर्थ तय करने में सुविधा होती है, जैसे 'सिस्टर' शब्द को घर में भाई, बहन' के अर्थ में ग्रहण करता है। चिकित्सालय में मरीज 'सेवा सुश्रूषा करने वाली' के अर्थ में लेता है तथा विद्यालय में लड़कियाँ इसका आशय 'अध्यापिका' समझती हैं।

8. काल –

काल का अभिप्राय 'समय-विशेष' से है। यदि कोई व्यक्ति सुबह उठकर राम-राम जपता है, तो इसका अर्थ शुभकारी लिया जाता है। लेकिन यदि शव ढोते समय राम-राम' किया जाए तो उसका अर्थ करुणा-संवलित होगा।

9. काकु –

 काकु का अर्थ होता है - कंठ से विशेष प्रकार की ध्वनि निकालना साहित्य शास्त्रियों ने इसे ध्वनि-विशेषमाना है। अर्थ-निर्णय में इसकी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। यदि कोई व्यक्ति किसी से सामान्य तरीके में कहे कि भई! आजकल तुम खूब आनंद ले रहे हो।  तो इसका सीधा अर्थ यही होगा कि आनन्द लेने वाला व्यक्ति इस समय हर तरह की सम्पन्नता से युक्त होगा। लेकिन इसे ही यदि नाक-भौं घुमाकर तथा कंठ में आरोह-अवरोह उत्पन्न कर कहा जाए कि, 'भई! आज कल तुम खूब आनन्द ले रहे हो तो इस बार इसमें संशय उत्पन्न होगा कि उक्त व्यक्ति किस तरह के आनन्द का भोगी है।

10. चेष्टा -

कभी-कभी बिना कुछ मुँह से बोले केवल इशारे या संकेत आदि से ही अनेक कार्य संपादित कर लिए जाते हैं, उन्हें चेष्टा कहते हैं। यथा- कोई नायक किसी नायिका से मिलने का समय पूछना चाहता है, किंतु सखियों से चतुर्दिक घिरी होने के कारण नायक बात खुलने के डर से नायिका से कुछ बोल नहीं पाता। इधर नायिका, नायक के अभिप्राय को चुपचाप समझ जाती है। वह भी सखियों के भय से कि कहीं बात बिगड़ न जाय किसी पुष्प या अन्य वस्तु को अपनी मुट्ठी में बंद कर लेती है। मुट्ठी बंद करने की प्रक्रिया से नायक स्वयं समझ जाता है कि दिन समाप्त हो जाने अथवा सूर्यास्त के समय नायिका से मुलाकात होगी। बिहारी का निम्न दोहा चेष्टा का स्पष्ट साक्ष्य है-

लखि गुरुजन-बिच कमल सों सीस छुवायौ स्याम ।

हरि-सनमुख कर आरती हिये लगाई बाम ।।

 

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