मेरा सपना किसने तोड़ा? By Avinash Ranjan Gupta

 मेरा सपना किसने तोड़ा?

मेरा सपना किसने तोड़ा?

मेरा सपना भीड़ ने तोड़ा,

उम्मीदों पर मारा कोड़ा।

कितनी सुंदर थी वह तन से,

मन से भी वह सुशील बहुत,

कितना प्रेम था मेरा उससे,

ये कविता है उसका सबूत,

पर मैं उसको पा न सका,

घर उसके साथ बसा न सका,

वो चली गई किसी और के संग,

पहन लाल शादी का जोड़ा।

मेरा सपना किसने तोड़ा?

मेरा सपना भीड़ ने तोड़ा,

उम्मीदों पर मारा कोड़ा।

बनना था मुझे कुशल चिकित्सक,

कोशिश मैंने की थी भरसक,

पर मेरी मेधा है सीमित,

आशाएँ थीं मुझसे असीमित,

फिर बना केंद्र मैं तानों का,

विविध-विविध उपमानों का,

लेकिन कौन ये बताए उनको,

मैंने नहीं, लक्ष्य ने मेरा साथ है छोड़ा।  

मेरा सपना किसने तोड़ा?

मेरा सपना भीड़ ने तोड़ा,

उम्मीदों पर मारा कोड़ा।

लोग गाते हैं गाथा उनकी,

जो जीत सदा ही जाते हैं,

लोग उनकी गाथा भी गाते हैं ,

जो लक्ष्य को अपने पाते हैं,

लेकिन वे लोग गए कहाँ ,

जो जीत से दूर रह जाते हैं,

इस नाते वे जग को ये बतलाते हैं,  

कि भाग्य ने उनसे मुँह है मोड़ा,  

मेरा सपना किसने तोड़ा?

मेरा सपना भीड़ ने तोड़ा,

उम्मीदों पर मारा कोड़ा।

हाँ भैया, मैं भी तो एक,

इसी भीड़ का हिस्सा हूँ, 

लाखों नहीं करोड़ों की तरह,

एक मामूली-सा किस्सा हूँ,

लेकिन क्या ये नहीं सच कि,

होती अगर यहाँ भीड़ बहुत कम,

सपने पूरे होते सबके,

और न होती आँखें नम,

क्या मेरी इन बातों का,

नहीं मूल्य है भी थोड़ा।  

मेरा सपना किसने तोड़ा?

मेरा सपना भीड़ ने तोड़ा,

उम्मीदों पर मारा कोड़ा।

अविनाश रंजन गुप्ता

 

 

 

 

 

Comments

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