द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल , डायरी के पाने पाठ का सार
पाठ की पृष्ठभूमि
ऐन फ्रैंक
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अत्याचार के शिकार हुए लाखों यहूदियों में से एक
है। ऐन और उसका परिवार दो वर्षों तक अपने पिता के दफ़्तर के ऊपरी भाग में छुपा
रहा।वहीं उसने अपनी डायरी लिखी। ऐन फ्रैंक की मृत्यु एक यातना शिविर में हुई, उस समय वह 15 वर्ष की थी। युद्ध के बाद उसकी डायरी
बच गई। उसका अनुवाद सत्रह से भी अधिक भाषाओं में हुआ, जिसकी
वजह से ऐन दुनियाभर में मशहूर हो गई।
पाठ में
‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’ नामक ऐन फ्रैंक की डायरी के कुछ अंश दिए गए हैं। इसमें उन
अनुभवों का लिखित संकलन है जो ऐन फ्रैंक द्वारा दो सालों के अज्ञातवास के दौरान
लिखी गई थी। 1933 में फ्रैंकफर्ट के
नगरनिगम चुनाव में हिटलर की नाजी पार्टी जीत गई। तत्पश्चात् यहूदी-विरोधी प्रदर्शन
बढ़ने लगे। ऐन फ्रैंक का परिवार असुरक्षित महसूस करते हुए नीदरलैंड के एम्सटर्डम
शहर में जा बसा। लेकिन 1939 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत हुई और 1940 में
जब जर्मनी ने नीदरलैंड पर का कब्ज़ा कर
लिया तो नाजी सेना द्वारा यहूदियों के उत्पीड़न का दौर फिर से शुरू हो गया। इन
विषम परिस्थितियों के कारण 1942 के जुलाई महीने में फ्रैंक परिवार जिसमें
माता-पिता, तेरह वर्ष की ऐन, उसकी बड़ी बहन मार्गोट तथा दूसरा परिवार वानदान परिवार और उनका बेटा पीटर
तथा इनके साथ एक अन्य व्यक्ति मिस्टर डसेल दो साल तक गुप्त आवास में रहे। गुप्त
आवास मिस्टर ऑटो फ्रैंक का दफ्तर ही था और इनकी
सहायता उन लोगों ने की जो मिस्टर फ्रैंक के दफ्तर में काम करते थे। ऐन
फ्रैंक को तेरहवें जन्मदिन पर उसे एक डायरी उपहार में मिली थी और उसमें उसने अपने
सारे अनुभवों को एक गुड़िया-किट्टी को संबोधित करते हुए चिट्ठी की शक्ल में लिखी
है। ऐन अज्ञातवास में पूरा दिन-पहेलियाँ बुझाती, अंग्रेज़ी व
फ्रेंच बोलती, किताबों की समीक्षा करती, राजसी परिवारों की वंशावली देखती, सिनेमा और थिएटर
की पत्रिका पढ़ती और उनमें से नायक-नायिकाओं के चित्र काटते बिताती थी। वह मिसेज
वानदान की हर कहानी को बार-बार सुनकर बोर हो जाती थी और मिस्टर डसेल भी बहुत उबाऊ
बातें किया करते थे। हालाँकि, ऐन मात्र 13 वर्ष की ही है पर
वह परिपक्व है। इस बात की पुष्टि तब हो जाती है जब हम उसकी डायरी से तरह-तरह की
जानकारियाँ प्राप्त करते हैं जैसे- युद्ध
संबंधी जानकारी, 350 वायुयानों से 550 टन गोला-बारूद बरसाना,
हज़ार गिल्डर के नोट अवैध घोषित किए जाने पर उनके परिवार के सदस्यों
द्वारा लिए गए फैसले, हिटलर का घायल सैनिकों से बातें करना
और घायल सैनिकों में हिटलर से हाथ मिलाने का जोश, अराजकता का
माहौल, कार-साईकिलों की चोरियाँ, घरों
की खिड़की तोड़ कर चोरी, यातना शिविरों की वारदातें, एक रात उनके ही अज्ञातवास में सेंधमारो की सेंधमारी का वर्णन इसके अलावा
‘फ्री नीदरलैंड्स’ के सदस्यों की यहूदियों के प्रति आत्मीयता, चर्चिल का युद्ध के दौरान एक फ्रांसीसी गाँव में जाना तथा उस पर ऐन के
राजनैतिक विचार इस बात को स्पष्ट करते हैं कि वह परिपक्व बालिका थी। उसमें संयम का
भी गुण देखने को मिलता है तभी तो पीटर के प्रति अपने अंतरंग भावों को भी वह सहेज
कर केवल डायरी में व्यक्त करती थी। उसमें सहनशीलता थी तभी तो मिस्टर डसेल और मिसेज
वान-दान की ऊलजलूल बातों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करती है। उसकी चिंतनशक्ति
इतनी प्रौढ़ थी कि वह महिलाओं को प्रसव-पीड़ा सहने के कारण सम्माननीय मानती है।
उसकी मान्यता है कि एक औरत एक शिशु को जन्म देते समय जितनी पीड़ा झेलती है,
उतनी पीड़ा युद्ध में लड़ने वाले सिपाही मिलकर भी नहीं झेलते। इसलिए
औरतों को भी पुरुष के समान ही अधिकार और सम्मान प्राप्त होना चाहिए। 4 अगस्त 1944
के दिन किसी ने गेस्टापो को जो हिटलर की खुफिया पुलिस थी उन्हें ऐन फ्रैंक परिवार
के अज्ञातवास की सूचना दे दी और वे गिरफ़्तार कर लिए गए। इसके पश्चात् उन्हें यातना शिविरों में भेज
दिया गया जहाँ ओटोमेन फ्रैंक के अलावा सबकी मृत्यु हो गई। इस तरह ऐन फ्रैंक के
जीवन का दुखद अंत हो गया। इल्या इहरनबुर्ग के अनुसार यह साठ लाख यहूदियों की तरफ़ से
बोलनेवाली एक आवाज़ है। एक ऐसी आवाज़, जो किसी संत या कवि की
नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की की है और उसकी यह डायरी उस
ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज़ है।
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