वाक्य की आवश्यकताएँ/लक्षण

 वाक्य की आवश्यकताएँ/लक्षण

अध्ययन बिंदु

वर्ण-शब्द-पद-पदबंध-उपवाक्य-वाक्य-प्रोक्ति

वाक्य की परिभाषा   आवश्यकताएँ/लक्षण

सार्थक शब्दों का समूह जो भाव को व्यक्त करने की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण हो। उसे वाक्य कहते हैं।

वाक्य की आवश्यकताएँ/लक्षण

वाक्य के लिए पाँच बातें आवश्यक हैं-

सार्थकता, योग्यता, आकांक्षा, सन्निधि और अन्विति ।

विशेष द्रष्टव्य - गौण रूप में पदक्रम

(1) सार्थकता का आशय यह है कि वाक्य के शब्द सार्थक होने चाहिए।

मैं प्रतिदिन मंदिर जाता हूँ।

सूर्य पूर्व दिशा से उगता है।  

तुम बहुत बक-बक कर रहे हो।

(यहाँ बक-बक निरथर्क शब्द होते हुए भए सार्थक शब्द का काम कर रहा है।)

(2) योग्यता से तात्पर्य यह है कि शब्दों (पदों) की आपस में संगति बैठे। शब्दों (पदों) में प्रसंगानुकूल भाव का बोध कराने की योग्यता या क्षमता हो, जैसे –

मुझे आग खाना अच्छा लगता है।

गाय हमें पनीर देती है।

वह पौधे को बालू से सींचता है।

कर्ण द्वारिका का राजा था।

महाभारत का युद्ध 22 दिनों तक चला।

भारत के दक्षिण में पाकिस्तान है।

विशेष द्रष्टव्य – बात, समाज, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि के विरुद्ध वाक्य नहीं होने चाहिए।

इन वाक्यों में शब्द तो सार्थक हैं, किन्तु आग खाना,  गाय का पनीर देना,  पौधे को बालू से सींचना नहीं होता, इसलिए शब्दों की परस्पर योग्यता की कमी है, अत: यह सामान्य अर्थ में वाक्य नहीं है। पर हाँ उलटबाँसी भले ही हो सकते हैं।

पानी बिच मीन (मछली) पियासी। (उलटबाँसी)

मोहि सुनि सुनि आवत हाँसी॥ 

आतम ग्यान बिना सब सूना, क्या मथुरा क्या कासी।

घर में बसत धरीं नहिं सूझै, बाहर खोजन जासी॥

मृग की नाभि माँहि कस्तूरी, बन-बन फिरत उदासी,

कहत कबीर, सुनौ भाई साधो, सहज मिले अविनासी॥  

(3) आकांक्षा का अर्थ है इच्छा। अर्थात् जानने की इच्छा’, अर्थात् अर्थ की पूर्णता,। वाक्य में इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वह पूरा अर्थ दे। उसे सुनकर भाव पूरा करने के लिए कुछ जानने की आकांक्षा न रहे ।

सुहाना रह गई। (कहाँ)

राहुल ने रख दिया। (क्या)

मोहन बातें कर रहा है। (किससे)

सुनीता ने कर दिखाया। (क्या, कैसे)

मनुष्य जी क्यों चुराए। (किससे)

 (4) सन्निधि या आसत्ति- का अर्थ है, समीपता। वाक्य के पदों के बीच अधिक अंतराल नहीं होना चाहिए। उपर्युक्त सभी बातों के रहने पर भी यदि एक शब्द आज कहा जाए, दूसरा कल और तीसरा परसों तो उसे वाक्य नहीं कहा जाएगा।

(5) अन्विति का अर्थ है व्याकरणिक दृष्टि से एकरूपता । अंग्रेजी में इसे Concordance कहते हैं। विभिन्न भाषाओं में इसके विभिन्न रूप मिलते हैं। यह समानरूपता प्रायः वचन, कारक, लिंग और पुरुष आदि की दृष्टि से होती है। हिंदी में क्रिया प्रायः लिंग, वचन, पुरुष में कर्ता के अनुकूल होती है। रमा गएन तो ठीक वाक्य है और न राम जा रही है’, क्योंकि यहाँ न तो रमाऔर गयेमें अन्विति है और न रामऔर जा रही हैमें ।

(6) पदक्रम – पदों का पदक्रम वाक्य के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वाक्य सार्थक और अर्थपूर्ण तभी होता है जब पदों का निश्चित क्रम हो, जैसे –

नौकर ने बच्चे को काटकर फल खिलाया।

नौकर ने फल काटकर बच्चे को खिलाया।

यहाँ ताज़ा गाय का दूध मिलता है।

यहाँ गाय का ताज़ा दूध मिलता है।

 

 

 

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