आठवाँ वार – परिवार By Avinash Ranjan Gupta
आठवाँ वार – परिवार
कोशिश की मैंने कितनी बार,
विफल हुआ मैं बारंबार,
मोह न तुमसे होगा अब कम
मन मोह लिया तुमने हर बार।
रोता और सिसकता हूँ मैं,
दूर जब तुझसे होता हूँ मैं,
मैं से जब हम हम हो जाते,
तब जीता मैं फिर एक बार,
मन मोह लिया तुमने हर बार।
मेरे जीवन की ज्योति तुम,
दूर जो मुझसे होते हो तुम,
छाती मेरी धक् कर जाती,
दिल में दुख घर कर जाती,
काश! समझते तुम इक बार,
मन मोह लिया तुमने हर बार,
जाने कैसी घड़ी वो होगी,
मेरी मौत सामने खड़ी होगी,
मोह से विछोह तब भी न होगा,
चाहे देह में रूह न होगा,
फिर भी मेरे वत्सल और प्रेम,
मिलूँगा तुमसे फिर एक बार,
मन मोह लिया तुमने हर बार।
“परिवार से हुए
अल्पकालिक विछोह में पीड़ित के मनोभावों का लयात्मक विवरण।”
अविनाश रंजन गुप्ता
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