जीने का ढंग Jeene Ka Dhang a poem By Avinash Ranjan Gupta

 

जीने का ढंग

मैं मानता हूँ कि...

न रूप है न रंग है,

न ही आकर्षक अंग है,

दुनिया जिसपे होती फिदा,

मेरा भाग्य उसमें तंग है।

पर मैं जानता हूँ कि...

मुझमें अथाह उमंग है,

सत्साहस की तरंग है,

जो किंचित न होता भंग है,  

साहस से ही जीती जाती है,

जीवन की हर एक जंग है।

मुझसे नहीं तुम खुदसे पूछो,

जिंदगी जीने का यही ढंग है!    

अविनाश रंजन गुप्ता

Comments