मेरे घर में नहीं हैं ..... Not in my house Poem By Avinash Ranjan Gupta

 

मेरे घर में नहीं है...

मंथरा मेरे घर में नहीं है,

पड़ोस में है, रिश्तेदार में हैं,

फिर भी कुमंत्रणा और दुरभिसंधि बिखेरती रहती है,

और अंत:करण की सुख-शांति हरती रहती है।

कैकेयी मेरे घर में नहीं है,

पड़ोस में है, रिश्तेदार में हैं,

फिर भी मेरे पूतों पर अपना असर देती रहती है,

उनके रक्त संबंध को क्षीण करती रहती है।

रावण मेरे घर में नहीं है,

पड़ोस में है, रिश्तेदार में हैं,

फिर भी हममें वर्चस्व और श्रेष्ठता का दंभ भरता है,

विनीत, संतुष्टि और शालीनता से पल-पल दूर करता रहता है।

इंद्र मेरे घर में नहीं है,

पड़ोस में है, रिश्तेदार में हैं,

फिर भी मुझे चैन से जीने नहीं देता,

सीधे-सादे जीवन का सुख लेने नहीं देता।

धीरे-धीरे ये सब मेरे गृह में करेंगे प्रवेश,

भर देंगे मस्तिष्क में द्वेष और क्लेश,

अपनी वाणी से वाणी का प्रभाव करेंगे ह्रास,

उद्देश्यहीन जीवन होगा और हम बनेंगे काल के ग्रास। 

 

अविनाश रंजन गुप्ता

 

 

 

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