इस बदलते दौर में Is Badlate Dour Me By Avinash Ranjan Gupta
इस बदलते दौर में.....
इस बदलते दौर में ही है मैंने देखी,
चापलूसों की भरपूर शेख़ी,
दो गले लेकर चलते हैं ये,
और मिलाते हैं दही में सही।
लोभ और लाभ में ‘ज़मीर’ हो गया है स्वाहा,
कर देंगे ये स्याह को सफ़ेद,
या फिर सफ़ेद को स्याह।
जो बैठे हुए हैं ऊपर,
पैर हैं उनके हमारे कंधों पर,
सफलता का श्रेय मिले उन्हें ,
और विफलता का केवल हमपर।
इस पर भी संतुष्ट हैं हम,
जीवित तो है कम से कम,
पता नहीं कई बार मरते हैं,
पर कभी विद्रोह नहीं करते हैं।
और आगाज़ अगर किसी ने किया,
उसकी नष्ट हो गई दुनिया,
जिसका वह उपकार चाहता है,
वही दल उसे नासूर मानता है।
हाय रे दुनिया, कैसी होती जाती है,
इंसानों में पशुता समाती जाती है,
कौवे करते हैं हम पर अन्याय,
और हंस की वाणी ठकुरसुहाती है।
अविनाश रंजन गुप्ता
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