अघ से शुरू होने वाले शब्द
अघ-Agha-वि० [सं०/अध् (पाप करना)+अच] १. अपवित्र । २.
दूषित। पुं० १.पाप । २. दुःख ३. व्यसन । ४. अघासुर।
अघ-कृच्छ-Agha kriccha-० मध्य० स०] दुष्कर्म के प्रायश्चित के
लिए किया जाने वाला एका व्रत।
अघघ्न-Agghan-वि० [अघ हुन् (हिंसा)+क] अघ या पाप नष्ट
करनेवाला। • पाप नाशक।पुं० विष्णु।
अघट
-Aghat- वि० [सं० अ-नही+ घट होना] १. जो
घटित न हो। न घटने या न होनेवाला २. सदा एक-सा रहनेवाला । ३. कठिन । ४. वेमेल । ५.
अयोग्य। वि० [हिं० अ+ घटना। (-कम होना)] कम न होनेवाला। जो घटे नहीं।
अघटन-Aghatan- [सं०/घट (चेप्टा)-ल्युट-अन, न० त०] घटित न होने की क्रिया या भाव । घटित न होना।
अघटित-Aghatit-वि० सं० २० त०] जो घटना के रूप में न हुआ हो
या न हो सकता हो। जो घटित न हुआ हो या न हो।
अघन-Aghan-वि० [सं० २० त०] १. जो घना या ठोस न हो। २. जो
गाढ़ा न हो। पतला।
अघभोजी-Aghabhoji- (जिन्)-वि० अच-/भुज् (खाना)+गिनि] १.
पाप कर्मों की कमाई खानेवाला। २. देवताओं.पितरों आदि को बिना उत्सर्ग किये भोजन
करनेवाला।
अघमर्षण-Aghmarshan-वि० [प० त०] पाप नाशक (मंत्र)। पुं०१. एक
मंत्र जो संव्योपासना के समय पापों से छुटकारा पाने के लिए पढ़ा जाता है। २. पापों
के नाश के लिए छिड़का जानेवाला जल।
अघमर्षण-कृच्छ-Aghmarshan Kriccha- [सं० कर्म० स० दे० 'अघ-कृच्छ।
अघवाना-Aghavaawana-स० सं० आघ्राणनाक तक] १. अघाने में
प्रवृत्त करना २. अघाने का काम किसी दूसरे से कराना।
अघाट-Aghaat-पुं० [देश॰] १. वह धार जो ठीक न हो। २. वह
भूमि जिसे बेचने का अधिकार उसके स्वामी को न हो।
अघाड़ा-Aghada-पुं० [? ] एक प्रकार का
विष नाशक पौधा।
अघात-Aghaat-पुं०-आघात । वि० [हिं०
अघाना] १. पेट भर। २. बहुत अधिक।
अघाती
(तिन्)-Aghatee-वि० [सं० घात+इनि, न० त०] घात या प्रहार न करनेवाला।
अघाना-Aghaana-अ० [सं० आघ्राणनाक तक] १. भरपेट भोजन करना।
छकना। मुहा०-अधाकर खूब जी भरकर। उदा०-रहिमन मूलहिं सींचित्री फूलहि फलहिं अपाय
।-रहीम। २. संतुष्ट या तृप्त होना । इच्छा पूरी होना। ३. जी भरना। ऊना। स० १. किसी
को अधाने (पूरी तरह से तृप्ति या संतुष्ट होने में) प्रवृत्त करना। २. थकाना।
(क्व०)।
अघारि-Aghari-पुं० [सं० अघ-अरि, ५०
त०] १. पाप का नाश करनेवाला। २. अघ नामक दैत्य को मारनेवाले, श्रीकृष्ण ।
अघाव-Aghava-पुं० [हिं० अवाना] १. अघाने (पूरी तरह से
तृप्ति या संतुष्ट होने) को क्रिया या भाव। पूर्ण तृप्ति। २.किसी बात से जी भर
जाने और फलतः उससे जी ऊबने का भाव।।
अघासुर-Aghasur-० [सं० अध-असुर, मध्य०
स०] कंस के सेनापति का नाम । अघ नामक दैत्य।
अघी
(चिन)-Aghi--नि. [सं. मघ---इनि] अघ अथवा पातकी।
अघेरना-Aghorana- • [देश॰] जौ का मोटा आटा।
अघोर-Aghora-वि० [सं० न० त०] जो घोर या भयानक न हो। २. न.
वि० घोर से भी बहुत अधिक, घोर और बुरा। अत्यन्त घोर । पुं०
१.शिव का एक रूप। २. इस रूप का उपासक एक पंथ या संप्रदाय । दे०'अघोर पंथ।
अघोरनाथ-Aghoranath- प० त०] शिव।
अघोर-पंथ-Aghorpanth-० [सं० अघोरपय] शिव का उपासक एक संप्रदाय
जो मद्य-मांस आदि का भी सेवन करता है।
अघोरपंथी-Aghorpanthi- [हिं० अघोर पंथी, अघोरपंथ , का अनुयायीं । औघड़।
अघोरा-Aghora-स्त्री० [सं० अघोरन अच्, टाम्] भाद्रकृष्ण चतुर्दशी ।
अघोरी-Aghori-पुं० [सं० अघोर-+-हिं० ई (प्रत्य॰)] अघोर पंथ
का अनुयायी। औघड़। विः धृणित वस्तुओं का सेवन, करनेवाला।
अघोष-Aghosh-वि० [सं० २० ब०] १. शब्दरहित। नीरव । २.
जिसमें ध्वनि अल्प हो। ३. जहाँ अहीरों की बस्ती या अहीर न हो। पुं० न० त०] व्याकरण
का वर्ण-समूह जिसमें क ख च छ ट ठ त थ प फ श स और ष है।
अघौघ-Aghough- [सं० अध-ओघ, प० त०]
वह व्यक्ति जिसने अत्यधिक पाप किये हों।
अघन्य-Aghanya-१० स० हुन् (हिंसा)+ यत् नि०, न० त०] ब्रह्मा।
अघ्रान
-Aghran- दे० 'आघ्राण'।
अघ्रानना
-Aghranana-स० [सं० आघ्राण] सूँघना ।
अघ्रेय-Aghreya-वि० [सं०/घ्रा (सूंघना)+यत्, न० त०] जो घ्रेय या सूँघने योग्य न हो।
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