DAV CMC Class VIII all Alnakaar Works
पाठ – 4
दोपहरी
अलंकार(अनुप्रास, उपमा, रूपक,
मानवीकरण) अपठित काव्यांश
1.
क. स सर्प सरीखी
ख. स साँझ समय
ग. च चमचम, चपला, चमकी
घ. ल लाली, लाल, लाल
2. अनुप्रास अलंकार को अच्छे से पढ़ने और समझने
के लिए-
3.
क. तरणि, तनूजा, तट, तमाल, तरुवर में ‘त’ वर्ण की
आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
ख. मधुर, मधुर, मुस्कान, मनोहर, मनुज में ‘म’ वर्ण की
आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
ग. देखि, दीन, दसा, करुना, करिकै, करुनानिधि में ‘द’ और ‘क’ वर्ण की
आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
4. उपमा अलंकार को अच्छे से पढ़ने एवं समझने के
लिए।
5. क. सड़कों के अत्यधिक गरम होने के कारण उनकी
तुलना अंगारों से की गई है।
ख. एक उपवन के अत्यधिक सुंदर होने के कारण उसकी तुलना
नंदनवन अर्थात् इंद्र देवता के वन से की गई है।
ग. पत्ररहित और गर्मी से झुलस जाने के कारण उन लंबे-लंबे
वृक्षों की तुलना हड्डियों के ढाँचे अर्थात् कंकालों से
की गई है।
घ. नीले गगन की निःशब्दता या स्थिरता के कारण उसकी तुलना हृदय के शांत होने से की जा
रही है।
6. रूपक अलंकार को अच्छे से पढ़ने एवं समझने के
लिए।
7. क. चरण (उपमेय) में कमल (उपमान) का अत्यधिक समानता के कारण उपमेय में उपमान का अभेद
आरोप किया गया है। अतः, यहाँ रूपक अलंकार है।
ख. पद (उपमेय) में पंकज (उपमान) का अत्यधिक समानता के कारण उपमेय में उपमान का अभेद
आरोप किया गया है। अतः, यहाँ रूपक अलंकार है।
ग. मन (उपमेय) में सागर (उपमान) का अत्यधिक समानता के कारण उपमेय में उपमान का अभेद
आरोप किया गया है। अतः, यहाँ रूपक अलंकार है।
8. मानवीकरण अलंकार को अच्छे से पढ़ने एवं समझने
के लिए।
9. क. कलियों को मनुष्य के समान दरवाजे खोलने और
मुसकाने की क्रिया करते दिखाया गया है। अतः, यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
ख. वनस्पतियों को मनुष्य के समान अलसाने और चेहरा धोने की
क्रिया करते दिखाया गया है। अतः, यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
ग. संध्या को परी के समान धीरे-धीरे उतरने की क्रिया करते
दिखाया गया है। अतः, यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
पाठ – 8
दोहे
अलंकार (उत्प्रेक्षा, श्लेष, यमक,
अतिशयोक्ति), अपठित
काव्यांश
1. उत्प्रेक्षा अलंकार को समझने के लिए।
2. क. ऊपर दी गई पंक्तियों में अर्जुन के क्रोध
से काँपते हुए शरीर (उपमेय) की कल्पना हवा के ज़ोर से जागते सागर (उपमान) से की गई है। यहाँ मानो
का भी प्रयोग हुआ है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
ख. ऊपर दी गई पंक्तियों में मेघों के आने की
तुलना (उपमेय) गाँव में सज-सँवरकर आने
वाले दामाद (उपमान) के साथ की गई है। यहाँ
ज्यों का भी प्रयोग हुआ है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
3.
श्लेष अलंकार को समझने के लिए।
4.
क. यहाँ ‘माली’ शब्द में श्लेष
अलंकार है तथा उपवन के संदर्भ में दो अर्थ हैं - बागवान तथा ईश्वर
ख. यहाँ ‘पट’ शब्द में श्लेष
अलंकार है तथा मंगन के संदर्भ में दो अर्थ हैं – कपड़ा तथा दरवाजा
5.
यमक अलंकार को समझने के लिए।
6. क. यहाँ ‘कनक’ का प्रयोग दो बार हुआ है जिसके के दो अर्थ हैं- सोना और धतूरा। अतः यहाँ यमक
अलंकार का प्रयोग हुआ है।
ख. यहाँ ‘मनका’ का प्रयोग दो
बार हुआ है जिसके दो अर्थ हैं- मोती और मन का। अतः यहाँ यमक अलंकार
का प्रयोग हुआ है।
ग. यहाँ ‘धोती’ का प्रयोग दो
बार हुआ है जिसके दो अर्थ हैं- वस्त्र और धोना। अतः यहाँ यमक अलंकार
का प्रयोग हुआ है।
7.
अतिशयोक्ति अलंकार को समझने के लिए।
8. क.
ऊपर दी गई पंक्तियों में कहा गया है कि महारणा प्रताप एक बड़ी नदी के किनारे खड़े
होकर यह सोच रहे हैं कि चेतक उस पार कैसे जाएगा? इसी दौरान चेतक
नदी के उस पार खड़ा था। सोचने में लगने वाले समय के अंदर चेतक का उस पार हो जाना
अतिशयोक्ति है इसलिए यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।
ख.
ऊपर दी गई पंक्तियों में कहा गया है कि म्यान से तलवार निकलते ही शत्रुओं के प्राण
निकल गए। तलवार का म्यान से निकलते ही दुश्मनों की जान निकल जाना अतिशयोक्ति है
इसलिए यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।
पाठ –
13
सूर और तुलसी के पद
अलंकार
पुनरावृत्ति
1. क. ‘त’ एवं ‘ब’ वर्ण
ख. ‘अ’ एवं ‘म’ वर्ण
अनुप्रास
2.
क. चोटी
नागिन
लोटना
सी
ख. रघुवर छबि
(सूर्य का प्रकाश)
रघुवर छबि (श्रीराम का रूप)
चमक
समान
3. क. खिलौना
चंद्र
ख. चरण
सरोज
रूपक
4.
क. बीजों को मनुष्य के समान आँखें मीचने और
चादर ओढ़ने की क्रिया करते दिखाया गया है। अतः, यहाँ
मानवीकरण अलंकार है।
ख.
यहाँ फूलों और कलियों को मनुष्य के समान
हँसने
और मुसकाने की क्रिया करते दिखाया गया है।
अतः, यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
मानवीकरण
5. क. मानवीकरण, पुनरुक्ति प्रकाश
ख. उपमा
ग. अनुप्रास
घ. मानवीकरण
ङ. अनुप्रास
च. अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश
छ. उपमा
ज. रूपक
6. क.
मुदित महिपति मंदिर आये, सेवक सचिव सुमंत बुलाये।
यहाँ
‘म’ और ‘स’ वर्ण की
आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
ख.
कर कमल-से कोमल हैं।
इस उदाहरण में ‘कर’ (हाथ) – उपमेय है, ‘कमल’ – उपमान है, ‘कोमल’ – साधारण धर्म है एवं ‘सा’ – वाचक शब्द है। अतः, यहाँ उपमा अलंकार है।
ग.
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
ऊपर दिए गए उदाहरण में राम रतन को ही धन
बताया गया है। ‘राम रतन’ – उपमेय पर ‘धन’ – उपमान का आरोप है एवं दोनों में
अभिन्नता है। अतः, यहाँ रूपक
अलंकार है।
घ.
शरद आया पुलों को पार करते हुए,
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए।
यहाँ शरद ऋतु को मनुष्य के समान पल पार
करना और साइकिल चलाने की क्रिया करते दिखाया गया है। अतः, यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
पाठ –
18
बाल लीला
अलंकार(पुनरावृत्ति),
अपठित काव्यांश
1. क. दुखियों, द्वार ‘द’
ख. बेबस, बीच ‘ब’
ग. समर्थ, सहन ‘स’
घ. बाजे, बजा-बजाकर ‘ब’
अनुप्रास
2. क.
यहाँ ‘पीर’ का प्रयोग दो बार हुआ है जिसके
दो अर्थ हैं- श्रेष्ठ व्यक्ति और कष्ट। अतः यहाँ यमक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(श्रेष्ठ पुरुष वही कहलाता है जो दूसरों के कष्ट को
समझे)
ख. यहाँ ‘बेनी’ का प्रयोग दो बार हुआ है
जिसके दो अर्थ हैं- कवि का नाम और साँप की चाल। अतः यहाँ यमक अलंकार का प्रयोग हुआ
है।
(कवि बेनी कहते हैं कि राधा ने अपनी बेनी अर्थात् चोटी की सुंदरता साँप के
चाल से चुराई है।)
ग. यहाँ ‘फिरावै’ का प्रयोग दो बार हुआ है
जिसके दो अर्थ हैं- मन की गति पर नियंत्रण और मोती की गति पर नियंत्रण। अतः यहाँ
यमक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(कबीर हकते हैं, लकड़ी के मोतियों से बनी ये माला क्या तुम्हें सिखा सकती है कि यदि तुम्हें अपने मन की गति पर ही नियंत्रण नहीं
है, तो मोती की गति का नियंत्रण क्यों? अर्थात् मोती नहीं मन पर नियंत्रण रखना ज़्यादा
ज़रूरी है।)
यमक
3. क. दीपक के चरित्र जैसा ही कुपुत्र
का भी चरित्र होता है। दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने (कुपुत्र का बड़ा
होना और दीपक का बुझना) के साथ-साथ अँधेरा होता जाता है।
ख. राधा जी के पीले शरीर की छाया (झाँई)
साँवले कृष्ण पर पड़ने से वे हरित (हरे) लगने लगते है। दूसरा अर्थ है कि राधा की
छाया (झाँई) पड़ने से कृष्ण हरित (प्रसन्न) हो उठते हैं।
श्लेष
4. क.
यहाँ अयोध्या नगरी की सुंदरता का वर्णन करते हुए कहा जा रहा है कि दीयों के प्रकाश
से ऐसा लग रहा है कि यह गगन में विचरण करता हुआ स्वर्ग से मिलने जा रहा है।
ख.
यहाँ अयोध्या नगरी की अतिशय प्रशंसा करते हुए कहा जा रहा है
कि यहाँ औषधालय तो बने थे परंतु यहाँ का वातावरण इतना सुंदर,
स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक है कि कभी भी कोई बीमार ही नहीं पड़ा।
अतिशयोक्ति
5. क. ऊपर दी गई पंक्तियों में कवि कहता है
कि वह धतूरे (कनक) को ऐसे ले चला मानो कोई भिक्षुक सोना (कनक) ले जा रहा हो। यहाँ ज्यों
का भी प्रयोग हुआ है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
ख. नीला
जल आकाश का द्योतक है और गौर झिलमिल देह उगते हुए सूर्य के प्रकाश का द्योतक है
अर्थात् ऐसा लग रहा है कि नीले जल में कोई गोरी देह वाली युवती स्नान कर रही है। यहाँ ‘जैसे’ का भी प्रयोग
हुआ है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
ग. ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं
कि पंक्तियों में उत्त्तरा के अश्रुपूर्ण नेत्रों (उपमेय) में ओस जल-कण युक्त कमल (उपमान)
की संभावना प्रकट की गई है। वाक्य में ‘मानो’ वाचक
शब्द प्रयोग हुआ है अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उत्प्रेक्षा
6. क.
यहाँ कुहरा जीवन की समस्याओं का प्रतीक है और दीया उन समस्याओं से लड़ने के साहस का
प्रतीक है।
ख.
“जो चाँद दिल के बुझाए बैठे हैं” से तात्पर्य उन लोगों से हैं जिनमें योग्यता होते
हुए भी वे जीवन से निराश हो चुके हैं।
ग.
“उड़ते हुए जुगनू” से तात्पर्य उन बच्चों और किशोरों से हैं जिनमें अभी-अभी कुछ कर
गुजरने की चाहत पैदा हो रही है।
घ.
जुगनुओं को मुट्ठी में दबाने वाले और कोई नहीं बल्कि उनके ही घर के सदस्य
हैं जो जीवन से निराश हो चुके हैं।
ङ.
इस काव्यांश से हमें यह संदेश मिलता
है कि जीवन में मुश्किलें आती ही रहेंगी। हमें चाहिए कि हम अपनी पूरी ऊर्जा के साथ
उसका डट कर सामना करें।
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