हिम्मत और मज़बूरी a Poem By Avinash Ranjan Gupta

हिम्मत और मज़बूरी
जब आबरू बेआबरू होती है,
तब इंसानियत रु-ब-रु होती है। 
और गलत को गलत न कह पाना,
चुप्पी साधकर गलत का साथ निभाना,
अपनी ही नज़रों में ज़लील करता है,
दिल में खुद से ही नफ़रत का घर करता है,
लेकिन मैं करूँ ......... 
मेरी हिम्मत पर मज़बूरियों का असर है,
लबों पर सच्चाई है पर अपनी गरीबी का डर है,
सच से शैतान सुधरते नहीं, यही सच है,
सच अकेला खड़ा है, ज़माना खराब इस कदर है। 
अब मैं क्या करूँ.........  
मेरे रूह की कमर झुक गई है,
और इसका सर कलम हो चुका है,
ये रसूख वालों की खंजर का ही कहर है,
जिसने मारा है इंसानियत को यही वह जहर है।
मैं तक़रीरें करता हूँ खुद से
और इस नतीजे पर आता हूँ
कि इक दिन ......... 
ताख पर रखी गैरत साथ लेकर जाऊँगा,
जिहाद करूँगा और शहीद हो जाऊँगा।      

                                                          अविनाश रंजन गुप्ता

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