Baal Kavita गिरगिट
गिरगिट
वह बबूल पर चढ़ा हुआ है,
देखो तो गिरगिट कैसा !
रंग बदल देगा यह अपना,
रगड़ो पैसे पर पैसा ॥
देखो अभी लाल था बिल्कुल,
छिन में पर होगा काला ।
अगर फूल होता तो इसकी
लोग बना लेते माला ॥
हिला-हिला कर गर्दन मानों,
यही सोचता रहता है।
अपने को दुनिया की सब,
चीजों से उत्तम कहता है ।
किन्तु कहूँगा मैं अभिमानी.
समय व्यर्थ निज खोता है।
क्योंकि न कोई भी लड़का,
गिरगिट होने को रोता है।
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