Baal Kavita on दिल्ली


दिल्ली
दिल्ली की क्या कहें कहानी ।
है यह नगरी बड़ी पुरानी ॥
बड़े-बड़े सुख देखे इसने ।
बड़े-बड़े दुख देखे इसने ॥
कितने ही राजे-महराजे ।।
इसको जीत बजा कर बाजे ॥
मिट्टी में अब मिले हुए हैं।
खंडहर उनके किले हुए हैं।
कृष्ण यहाँ थे आते-जाते ।
भीम यहाँ थे गदा घुमाते ॥
वह भी एक समय था न्यारा ।
जो है हा! कर गया किनारा ।
इस युग में ही पृथ्वीराज थे।
जो दिल्ली के महाराज थे ॥
किन्तु उन्हीं के साथ विधाता !
टूटा सब दिल्ली से नाता॥
किए मुसलमानों ने हमले ।
जिसमें हाय नहीं हम सँभले ॥ ।
क्योंकि बैर था आपस में अति
मरी हुई थी सब ही की मति ॥
उनका भी अब गया जमाना।
हुधा 'ब्रिटिश' लोगों का आना।
लेकिन वे भी गए कूच कर ।
फिर से दिल्ली बसी उजड़ कर ।
दशा देख कर यह दिल्ली की ।
उसकी लोहे की किल्ली की ॥
यही शब्द हैं मुख पर आते ।
सब दिन नहीं बराबर जाते ।।
जिनको धन बल मिला हुआ है।
जिनसे सब जग हिला हुआ है ॥
उचित न है उनका इतराना ।
जाने कैसा लगे जमाना ।
जो सब भाँति तथा हैं हारे। ।
सदा रहें वे साहस धारे ॥
प्रभु माया सब की सुध लेती ।
है दिल्ली यह शिक्षा देती ॥


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