फौव्वारा Baal Kavita on फौव्वारा


फौव्वारा
देखो छूट रहा फौव्वारा।
बूँदों के क्या झुंड निकलते ,
मोती-से हैं आते ढलते ।
पर छूते ही छिन में गलते ।
पकड़ न कोई सकता कुछ भी,
चलता नहीं किसी का चारा ।
देखो छूट रहा फौव्वारा ॥
हँसता ही रहता है हर दम ,
चमक धूप में उठता चम चम ।
इसकी करें बड़ाई क्या हम ?
जड़ा मोतियों से चाँदी का
खड़ा पेड़-सा है अति न्यारा ।
देखो छूट रहा फौव्वारा ।।
हरी-हरी घासें लहराती ,
नाच-नाच क्या खूब नहातीं।
पल-पल में हैं भीगी जातीं।
बरसा की है लगी झड़ी-सी,
ओहो ! भीगा कोट हमारा ।
देखो छूट रहा फौव्वारा ॥
यदि मैं भी ऐसा बन जाता,
हँसता लड़कों में मिल गाता ।
औ असली मोती बरसाता ।
झरझर-झरझर करकर के नित,
भर देता धन से जग सारा ।
देखो छूट रहा फौव्वारा ।।





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