Baal Kavita on गिलहरी


गिलहरी
बीच राह में बैठ गिलहरी,
देखो तो क्या खाती है।
भोली-भाली सूरत इसकी
मुझे बहुत ही भाती है ॥
उजले काले फूले-फले,
रोएँ कैसे सुंदर हैं।
बिल्कुल बच्चों के समान इस
के भी दो छोटे कर हैं।
चुपके-चुपके चल कर आओ,
देखें तो क्या खाती है।
ओहो ! यह तो सरसर सरसर
भागी पेड़ पर जाती है।
उधर गई वह ! उधर गई वह !
फुर्ती कैसी दिखलाती !
फुर्ती ही के कारण है यह,
मनमाना फिरती खाती ।।


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