Baal Kavita on वाटिका
वाटिका
देखो यह वाटिका निराली ।
मन हरने वाली हरियाली ।।
झूम रही क्या डाली-डाली।
लगा सींचने में है माली ॥
पत्तों का हिलना है जारी ।
फूलों का खिलना है जारी ॥
महक रही हैं गलियाँ सारी।।
चहक रही हैं चिड़ियाँ प्यारी ।।
खिली चमेली फूला बेला ।
भारी है भौंरों का मेला ॥
खड़ा हुआ है क्या अलबेला ।
लिए फलों का गुच्छा केला ॥
रंग-बिरंगे सुंदर-सुंदर ।
चुन-चुन कर मैं फूल मनोहर ।।
लूँगा छिन भर में टोपी भर ।
दूँगा सबको हार बना कर ॥
रोज यहीं पर आता हूँ मैं।
खूब धूमता गाता हूँ मैं ।।
हवा प्रात: की खाता हूँ मैं ।
मनमाना सुख पाता हूँ मैं ॥
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