Baal Kavita on जब मैं कुछ बढ़ जाऊँगा


जब मैं कुछ बढ़ जाऊँगा
किसी पेड़ की डाली पकड़ कर
झट उस पर चढ़ जाऊँगा।
चिड़ियाँ चारों तरफ उड़ेंगी।
देख उन्हें सुख पाऊँगा।
चुन-चुन कर सुंदर कलियों को
माला कई बनाऊँगा ।
खुद पहनूँगा और साथियों
को सादर पहनाऊँगा।
डंडे पर तब नहीं चढूँगा
घोड़ा एक मँगाऊँगा।
उस पर चढ़ कर इस दुनिया ।
पताका पूरा पता लगाऊँगा।
एक बड़ी सीढ़ी बनवा कर
बादल तक पहुँचाऊँगा ।
बिजली यहाँ बाँध लाऊँगा
अम्मा को दिखलाऊँगा ॥
नहीं मास्टर का डर होगा
स्वयं गुरू बन जाऊँगा।
पर न किसी को कुरसी पर चढ़
बेंत कभी दिखलाऊँगा ।
लड़के मुझसे नहीं डरेंगे
और न उन्हें डराऊँगा ।
जो तुतली बोली बोलेगा
राजा उसे बनाऊँगा।
तब शायद मैं खेल खिलौने
खेल नहीं सुख पाऊँगा ।
खेलूँगा तो फिर लड़के का
लड़का ही रह जाऊँगा ।
हाँ, चरखे का चलन चला है
चरखा रोज चलाऊँगा।
मुन्नी की सब गुड़ियों को
खद्दर खासा पहनाऊँगा ॥
है यह भारतवर्ष हमारा
इसको मैं अपनाऊँगा।
इसके उड़ते तिनकों तक पर
अपनी छाप लगाऊँगा ।।
अपनी माँ का, मातृ-भूमि का
सच्चा पुत्र -कहाऊँगा।
एक बार दुनिया दहलेगी।
जब में कुछ बढ़ जाऊँगा ।


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