baal Kavita on पकड़ चाँद को यदि मैं पाता!

पकड़ चाँद को यदि मैं पाता!
पकड़ चाँद को यदि मैं पाता !
आसमान की ओर दिखाता ।
लख तारों का मन ललचाता ।।
पास हमारे आते ज्यो ज्यों उन्हें पकड़ता जाता ।
फिर मैं एक अनोखी आला ।
गूँथता उन तारों की माला ॥
सब के नीचे उसी चंद्रमा को गूँथ कर लटकाता !
उसे छिपा कर रखता दिन में ।
रगड़-रगड़ धोता छिन-छिन में।
मैल चंद्रमा का मिट जाता चकाचौंध हो जाता।
होती शाम रात जब आती।
अंधकार की बदली छाती ।।
चुपके से वह हार पहिन मैं बेहद धूम मचाता ।
अम्मा मुझे देख घबराती ।
मुन्नी मेरे पास न आती ॥
तरह तरह की बोल बोलियाँ सब को खूब छकाता ।
अगर जान वे मुझको पाते ।
मिलकर तुरंत पकड़ने आते ॥
हार उतार जेब में रखता अन्धकार हो जाता।
फिर जो मेरा कहना करता ।
मुझसे हर दम रहता डरता ।।

कभी कभी उसको भी खुश हो हार वही पहनाता ।

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