Baal Kavita on ओस


ओस
प्यारी ओस, दुलारी ओस
सकुचीली सुकुमारी ओस
आ उँगली पर आ रे ओस
ओ हो! तू न बनी क्यों ठोस
छुआ नहीं और  हुई अलोप ।
है यह हँसी, खेल या कोप ।।
आएगी न हमारे हाथ ।
तो खेलेगी किसके साथ ॥
क्या न जानती थी तू बोल ।
यह तेरा सुंदर तन गोल ।
छूने को होंगे तैयार ।
तुझे करेंगे लड़के प्यार ॥
ज्यों तजने पर मछली नीर।
मर जाती पाती अति पीर ॥
उसी भाँति क्या पौधे घास ।
तज तू कहीं न करती वास ॥
यदि है यही अनोखी बात।
तो न छुऊँगा मैं तन पात ॥
सुख से तू फूलों पर फूल ।
मनमाना घासों पर झूल ।।
जिसने तुझे किया तैयार ।
तन में भर यह छटा अपार ॥
उस कारीगर को है धन्य !
पहुँचे उसे प्रणाम अनन्य ।





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