Baal Kavita on महाविरे
महाविरे
माथ पर मत हाथ
रक्खो हर घड़ी।
है अजब औंधी
तुम्हारी खोपड़ी ।
खींचते हो बाल
की भी खाल क्यों ?
और करते आँख हो
यों लाल क्यों ?
कान मेरी बात को
देते अगर ।
आँख नीची कर
विदा लेते अगर ।
तो न सिर पर आज
पर्वत टूटता।
इस बुराई का न भंडा
फूटता ॥
नाक में दम आप
अपने कर लिया।
अब सदा को हाथ
उससे धो लिया ॥
हे रहा देखो कलेजा काँप-सा।
लोट सीने पर गया
है साँप-सा॥
आँख किससे जा
अचानक लड़ गई ?
डोल यह कैसी गले
में पड़ गई।
मूँछ क्या अब
सर्वदा को मुड़ गई ?
हाथ में आई भी
चिड़िया उड़ गई ।
अब फुलाते गाल
हो किसके लिए ?
पीठ पीछे ध्यान
हैं किसने दिए ?
पेट ही में बात
यह रहते धरे ।
पैर होगा पीटने
से क्या हरे?
है समय कस कर
कमर तैयार हो ।
मुँह न बाओ इस
तरह लाचार हो ।
सूखती है जान तो
थे किसलिए ।
साँप के मुँह में
बढ़ा अँगुली दिए !
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