Baal Kavita On तालाब


तालाब
काई ने डाला है डेरा।
बहुत बुढ़ापे ने है घेरा ॥
अति तालाब पुराना है यह ।
तालाबों का नाना है यह ॥
अगणित ईंटें फूट गई हैं।
सभी सीढ़ियाँ टूट गई हैं।
फिर भी भीड़ लगी है भारी ।
नहा रहे हैं शिशु नर नारी ॥
चाहे जितना यार नहाओ ।
किंतु मछलियों को न सताओ ॥
क्योंकि उन्हीं का यह प्रिय घर है ।
नहीं मगर का इसमें डर है ॥
गाएँ इसमें पीती पानी।
भैंसें हैं करतीं मनमानी ॥
कभी-कभी हाथी आता है।
जो अति कमलों को खाता है ।
जब सब प्राणी हैं सो जाते ।
चीते शेर रात में आते ।।
नहीं किसी के लिए मनाही।
सब करते हैं लापरवाही ।।
पर प्यारा तालाब पुराना ।
करता नहीं बुरा कुछ माना ।
रखता है नित निर्मल पानी।
हो मानों कोई गुरु ज्ञानी ।।


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