Baal Kavita on नकली और असली


 नकली और असली
नकली आँखें बीस लगा ले,
अंधा देख न सकता है।
मोटी पोथियाँ बगल दबा ले,
मूरख लेख न सकता है।
लदे पीठ पर नित्य सरंगी,
गदहा राग न कह सकता ।
चाहे जितना पान चबा ले,
भैंसो स्वाद न लह सकता ॥
नहीं चढ़ा कर कोरी कलई,
ताँबा बन सकता सोना ।
नहीं मोर के पांखें पाकर,
कौवे का मिटता रोना ॥
नकल व्यर्थ की करता है जो,
सदा अंत में रोता है।
बिना गुणों के नहीं जगत में,
मान किसी का होता है।


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