baal Kavita on सुनहली और काली

सुनहली और काली
चंदा तारे, सभी सिधारे,
आसमान कर खाली ।
हुआ सबेरा, मिटा अँधेरा,
पूरब छाई लाली ॥
कहीं रुपहली, कहीं:सुनहली ,
तन ऊषा ने जाली ।
दसों दिशा की, घोर निशा की,
सब कालिमा चुरा ली।
पड़ी दिखाई, अति मन भाई,
लची फूल से डाली।
लगीं बोलने, वहीं डोलने ,
उठ चिड़ियाँ मतवाली ।
ऊषा रानी, सुभग सयानी,
निकली ले दो थाली ।
जगे हुओं को मिली सुनहली,
सुप्त पड़ों को काली ॥


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