Baal Kavita on इन्द्रधनुष


इन्द्रधनुष
इन्द्रधनुष निकला है कैसा ।
कभी न देखा होगा ऐसा ॥
रंग-बिरंगा नया निराला ।
पीला लाल बैंगनी काला ॥
हरा और नारंगी नीला।
चोखा चमकदार चटकीला ॥
इस दुनिया से आसमान पर ।
पुल-सा चढ़ा हुआ है सुंदर ॥
है कतार मोरों की आला
या  बहुरंगी मोहन माला ॥
अटक गया है बादल में या ।
सूर्यदेव के रथ का पहिया ॥
पृथ्वी पर छाई हरियाली।
बहती ठंडी हवा निराली ॥
जरा जरा बूँदें झड़ती हैं।
नदियाँ क्या उमड़ी पड़ती हैं।
इन सब से है बढ़ कर इकला ।
वह जो इंद्रधनुष है निकला ।।
खड़ा स्वर्ग का सा दरवाजा ।
तू भी लख ले अम्मा ! आ जा॥

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