Baal Kavita on Watch घड़ी


घड़ी
चलते ही हरदम रहते हैं।
जाने क्या टिक टिक कहते हैं ?
हैं ये पक्के अपनी धुनके ।
अचरज कोई करे न सुन के ॥
करते हैं ये काम बड़े ही।
चलते रहते पड़े-पड़े ही ॥
आओ चलें इन्हीं के साथ ।
घड़ी के दोनों काले हाथ ॥
कल मैंने भी घड़ी मँगाई।
उसमें है जंजीर लगाई।
पड़ी जेब में बोल रही है।
समय हमारा तोल रही है ।
काम समय पर करते हैं जब ।
बाबू बन कर फिरते हैं तब ॥
हों न चित्त से न्यारे नाथ !
घड़ी के दोनों काले हाथ ॥


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