Baal Kavita on Sweat पसीना
पसीना
बड़ा दुष्ट तू अरे पसीना !
कठिन हो रहा मेरा जीना ॥
रोम-रोम से निकला आता। ।
पल-पल पर मुझको नहलाता ।
पीता हूँ मैं ठंडा पानी।
फिर भी तू करता शैतानी ।।
नहीं निकलता ठंडा तन से ।
कम न किसी भी तू दुश्मन से ॥
यदि गर्मी में नहीं सताता ।
जाड़े में मेरे ढिग आता ॥
तो मैं अति तेरे गुण गाता।
तू भी सच्चा मित्र कहाता ।।
साथ समय पर जो न निभाता ।
बिना काम आकर लिपटाता॥
बड़ा दुष्ट वह बड़ा कमीना ।
ज्यों गर्मी का कड़ा पसीना ॥
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