Baal Kavita on Spider मकड़ी


मकड़ी
मकड़ी देवी नाम हमारा,
तनना-बुनना काम हमारा
बिन चरखे के बिना रुई के,
सूत कातती हूँ मैं न्यारा ॥
बिन दीवालों का घर मेरा,
लगा हवा पर बिस्तर मेरा।
गाँव-गली क्या जंगल झाड़ी,
देखा है सब दर-दर मेरा ॥
चारु चन्द्रमा या नभ ऊपर,
चाँदी से रँगता मेरा घर।  
किन्तु सूर्य जब करता फेरा,
देता इसे सुनहला है कर ॥
सुघड़ पालने पर हूँ लेटी,
बड़ी चतुर माँ की हूँ बेटी ।
आज तुम्हें दूँगी मैं बुनकर ,
अति महीन तारों की पेटी ।।
जब न विदेशी थे व्यापारी ,
और भारत के सब नर नारी ।
सूत कातते थे महीन अति ,
तो होती थी कदर हमारी ॥
लोग मुझे करते थे पाला ,
लखते मेरा पतला जाला ।
चरखे चला-चला वैसा ही ,
करते थे अति सूत निकाला ॥
अब न मुझे मिलता है आदर,
जीती हूँ हाँ इस आशा पर ।
शायद बच्चे होश सँभालें,
फिर से काते सूत मनोहर ।।

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