Baal Kavita on Shadow मेरी छाया
मेरी छाया
अम्मा ने जब दीप
जलाया।
मैंने देखी अपनी
छाया ॥
मुझ-सी ही है सूरत
सारी।
बहुत मुझे वह
लगती प्यारी ।।
जब-जब मैं बिस्तर पर
जाता।
उसे प्रथम ही लेटा
पाता।
उसको कुत्ते काट न
सकते ।
उसको दादा डाँट सकते
॥
वह घटती-बढ़ती मनमाना ।
बना न कोई है पैमाना ।
साथ हमारा कभी न तजती ।
जब मैं भगता वह भी भागती ।।
एक रोज मैं उठा सवेरे ।
रहा उसे आलस ही घेरे॥
खेतों में बिखरे थे मोती।
पर थी वह घर में ही सोती॥
पूरब में जब निकला सूरज ।
वह भी आ पहुँची बिस्तर तज ।।
उसे साथ ले आया घर
में ।
उस-सा मित्र न दुनिया भर में ।
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